सामरिक रूप से जोशीमठ बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखता है! उत्तराखंड के जोशीमठ पर संकट लगातार गहरा गया है। 600 घरों में दरार आ गई है। प्रभावित लोगों को सुरक्षित स्थानों पर भेजने की तैयारी की जा रही है। जोशीमठ सामरिक रूप से काफी महत्वपूर्ण है। धार्मिक स्थल के रूप में इसकी अपनी अलग पहचान रही है। साथ ही, चीन सीमा के पास स्थित होने के कारण इसका अलग महत्व हो जाता है। आज जब जोशीमठ पर संकट गहराया हुआ है तो प्रधानमंत्री कार्यालय से लेकर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी तक स्थिति की समीक्षा में जुटे हुए हैं। जोशीमठ को बचाने के लिए कवायद शुरू कर दी गई है। जोशीमठ बद्रीनाथ, हेमकुंड साहिब जैसे प्रसिद्ध तीर्थ स्थल और अंतरराष्ट्रीय स्कीइंग के लिए प्रसिद्ध होली का प्रवेश द्वार माना जाता है। शहर आपदा का दंश झेल रहा है। घरों, सड़क से लेकर खेतों तक बड़ी-बड़ी दरारें आ रही हैं। सैकड़ों लोगों के बेघर हो गए हैं। हजारों लोग विस्थापन का दंश झेलने को मजबूर हैं। उत्तराखंड चीन की सीमा से सटा राज्य है। चीन की 345 किलोमीटर लंबा बॉर्डर क्षेत्र उत्तराखंड से सटा है। इसमें से प्रदेश के चमोली जिले से चीन की करीब 100 किलोमीटर सीमा लगती है। सीमा रेखा पर भारत अपनी स्थिति को मजबूत बनाने के लिए लगातार कार्य कर रहा है। इसमें जोशीमठ सबसे महत्वपूर्ण है। जोशीमठ की दरारों ने भारतीय सेना की तैयारियों और बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन की चिंताएं बढ़ा दी हैं। रक्षा मंत्रालय की ओर से इस संबंध में समीक्षा शुरू हो गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सीएम पुष्कर सिंह धामी के साथ स्थिति की समीक्षा की है।
जोशीमठ में मकान से लेकर सड़क तक पर दरारों को देखा जा रहा है। भारतीय सेना के लिए यह क्षेत्र रणनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। जोशीमठ- मलारी बॉर्डर रोड पर भी कई जगहों पर बड़ी दरारें देखने को मिल रही हैं। यह सड़क देश को चीन सीमा से सीधे जोड़ती है। इन दरारों के कारण सेना की गाड़ियों के मूवमेंट पर भी प्रभाव आने की उम्मीद की जा रही है। जोशीमठ- मलारी सीमा रोड मलारी टैक्सी स्टैंड के पास धंस रही है। जोशीमठ में करीब 604 घरों में दरारें आई हैं। यहां से लोगों को निकालने का कार्य शुरू कर दिया गया है। लोगों को सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट किया जा रहा है। इस स्थिति ने लोगों की चिंता बढ़ाई है। स्थायी निवास की बात शुरू हो गई है। लेकिन, सरकार अभी लोगों को सुरक्षित बनाने की दिशा में काम करती दिख रही है।
देश के सीमांत जिले चमोली के जोशीमठ से बदरीनाथ की दूरी 46 किलोमीटर है। बदरीनाथ से आगे का रास्ता चीन सीमा की तरफ जाता है। चीन सीमा पर घुसपैठ की चुनौती हमेशा बनी रहती है। इसको देखते हुए केंद्र सरकार ने बॉर्डर पर सड़कों का नेटवर्क तैयार करा रही है। बदरीनाथ हाइवे के चौड़ीकरण का कार्य भी चल रही है। इसके पीछे की रणनीति सड़क को चौड़ी और सुविधाजनक बनाने की है। संकट के समय में तेजी से और सहजता के साथ सीमा तक संसाधनों को पहुंचाने के लिए यह व्यवस्था की गई है।
चमोली जिले में स्थित जोशीमठ और बदरीनाथ धाम है। बदरीनाथ धाम जाने के लिए जोशीमठ का ही रास्ता पकड़ना होती है। हर साल लाखों श्रद्धालु बदरीनाथ धाम का दर्शन करने आते हैं। जोशीमठ की स्थापना आदि शंकराचार्य ने की थी। आदि शंकराचार्य ने द्वारका, पुरी और श्रृंगेरी के साथ जोशीमठ को स्थापित किया था। पहले इसका नाम पहले ज्योतिर्मठ था। किंवदंती है कि आदि शंकराचार्य ने किशोरावस्था में कल्पवृक्ष के नीचे तप किया था। इसके बाद देश के चारों कोनों में मठों की स्थापना की गई। जोशीमठ में कई अन्य मंदिर प्रसिद्ध हैं। भगवान नरसिम्हा का मंदिर यहां अवस्थित है। यहां कल्पवृक्ष भी है। इसे 1200 साल पुराना माना जाता है। चार धाम की यात्रा पर जाने वाले केदारनाथ, बदरीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री जाने वाले पर्यटक श्रद्धालु जोशीमठ में रुकते हैं। दुनिया भर में प्रसिद्ध फूलों की घाटी और स्कीइंग स्थल औली का रास्ता भी जोशीमठ से होकर जाता है।
जोशीमठ का सामरिक महत्व भी है। चीन सीमा से लगने वाले नीति और माणा घाटी जाने के लिए भारतीय सेना एवं आइटीबीपी के जवान जोशीमठ से होकर गुजरते हैं। जोशीमठ का उल्लेख स्कंदपुराण के केदारखंड, विष्णु पुराण और शिवपुराण में है। जोशीमठ के इलाके के लोगों में एक मान्यता है कि जोशीमठ केदरानाथ धाम और बदरीनाथ धाम के साथ गायब हो जाएगा। भविष्य में केदार मंदिर में इसकी फिर उत्पत्ति होगी। जोशीमठ से तपोवन की दूरी 10 किलोमीटर है। वहां पर गर्म पानी निकलता है।
जोशीमठ का इलाका पर्यटकों से सालों भर गुलजार रहता है। चार धाम की यात्रा हो या हेमकुंड साहिब के दर्शनार्थी, हर कोई जोशीमठ से होकर गुजरता है। धार्मिक आस्था का केंद्र होने के साथ-साथ फूलों की घाटी को देखने भी बड़ी संख्या में लोग यहां पहुंचते हैं। देश की आजादी के बाद सेना के बेस कैंप के रूप में भी जोशीमठ का तेजी से विकास किया गया। अभी जिस प्रकार की स्थिति है, उसको देखते हुए कई अहम सवाल खड़े हो गए हैं। एनएच 58 पर चौड़ी दरारें आ गई हैं। कई स्थानों पर राष्ट्रीय राजमार्ग धंस गया है। ये दरारें किसी बड़े खतरे का संकेत दे रही हैं। इस रास्ते से बदरीनाथ धाम से लेकर भारत-चीन सीमा के अंतिम गांव तक लोग जाते हैं।
जोशीमठ प्राचीन समय में हुए भूस्खलन वाले स्थल पर बसा हुआ है। यहां तेजी से शहरीकरण हुआ। नीचे जमे पत्थरों पर दबाव बढ़ा तो जोशीमठ के ढलान में पत्थरों के सड़कने का मामला बढ़ा। शहरीकरण ने प्राकृतिक जल निकासी को बाधित किया है। इससे ढलान के पत्थरें सड़की हैं। 2 जनवरी का जोशीमठ में पानी का बहाव शुरू हुआ तो दरारें बढ़ने लगी। 12 साल पहले इसी तरह के एक एक्विफर फटने से कस्बे में पानी बहा था और जमीन के धंसने का मामला सामने आया था। एक्वीफर भूमिगत जल संसाधन हैं। जोशीमठ में अंधाधुंध निर्माण के कारण इन जगहों से पानी निकल रहा है, जिससे ऊपर की जमीन धंस गई है। खेत और सड़कों के साथ-साथ हाईटेंशन बिजली लाइन के पोल भी टेढ़े हो रहे हैं। माल्टा और सेब के पेड़ जमीन में धंस रहे हैं।
जोशीमठ में बढ़ रही दरारों के लिए स्थानीय लोग नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (एनटीपीसी) की तपोवन-विष्णुगढ़ 520 मेगावाट जलविद्युत परियोजना के लिए 12 किलोमीटर लंबी सुरंग को भी जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। वर्ष 2021 में इस परियोजना पर अचानक बाढ़ आ गई थी, जिसमें 200 लोग मारे गए थे। स्थानीय लोगों का कहना है कि जोशीमठ के पास पंचर एक्विफर सुरंग के भीतर रिसाव से स्थिति बिगड़ रही है। हालांकि, जोशीमठ की इस स्थिति का बड़ा कारण अस्थिर नींव पर कई वर्षों से बड़े पैमाने पर हो रहा निर्माण कार्य है। पहले भी एक एक्विफर फटने से जमीन धंसने की समस्या सामने आई थी।
वर्ष 1970 के दशक में अलकनंदा नदी में कई बार बाढ़ आई। इस कारण जोशीमठ में जमीन के धंसान और घरों में दरार पड़ना शुरू हुआ। अलकनंदा नंदी की बाढ़ ने जोशीमठ समेत अन्य स्थानों पर तबाही मची थी। तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने 8 अप्रैल 1976 को गढ़वाल के तत्कालीन मंडलायुक्त महेश चंद्र मिश्रा की अध्यक्षता में कमेटी का गठन किया। इस कमेटी में लोक निर्माण विभाग, सिंचाई विभाग, रुड़की इंजीनियरिंग कॉलेज के स्पेशलिस्ट, जियोलॉजिस्ट और स्थानीय प्रबुद्ध लोगों को शामिल किया गया था। इस कमिटी ने इलाके का स्थल निरीक्षण किया। तमाम बिंदुओं की समीक्षा की और आज की स्थिति के बारे में पहले ही चेता दिया था।
महेश चंद्र मिश्रा की अध्यक्षता में गठित विशेषज्ञों की कमेटी ने संभावित खतरे को लेकर सरकार को सचेत करते हुए अपने सुझाव दिए थे। मिश्रा कमिटी ने जोशीमठ में पानी की निकासी के पुख्ता इंतजाम करने की अनुशंसा की थी। साथ ही, अलकनंदा नदी से होने वाले कटाव की रोकथाम करने के सुझाव भी दिए थे। हालांकि, इस पर कोई अमल नहीं किया गया और अंधाधुंध विकास की योजनाएं चलती रही। आज की स्थिति यह सबसे बड़ा कारण है।