कोलकाता हाईकोर्ट में अब सियासत हो रही है! पश्चिम बंगाल में इन दिनों कलक्ता हाई कोर्ट में घमासान मचा है। हाई कोर्ट के जस्टिस राजशेखर मंथा के खिलाफ वकील प्रदर्शन कर रहे हैं। जस्टिस के खिलाफ कई जगह पोस्टर्स लगाए गए जिसमें जस्टिस की तस्वीर के ऊपर ‘शेम’ लिखा गया। जस्टिस को कोर्ट में जाने से रोका गया, उनके साथ धक्कामुक्की की गई। प्रदर्शन में शामिल वकीलों ने कहा है कि वे जस्टिस मंथा की कोर्ट में नहीं जाएंगे। तमाम विवादों के बीच हाई कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस मंथा के समर्थन में आ गए हैं। इधर मामला सियासी हो गया है। आरोप है कि टीएमसी के समर्थन वाले वकील इस तरह की शर्मनाक हरकत कर रहे हैं। ममता बनर्जी की पार्टी पूरे मामले को उकसा रही है, तूल दे रही है। बीजेपी सारे घटनाक्रम का आरोप टीएमसी पर लगा रही है तो टीएमसी का कहना है कि इससे उनका कोई लेनादेना नहीं है। मामला पिछले साल 8 दिसंबर में शुरू हुआ। कलकत्ता हाई कोर्ट के न्यायाधीश राजशेखर मंथा ने पश्चिम बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी के खिलाफ पुलिस में दर्ज सभी 26 एफआईआर पर रोक लगा दी। सुवेंदु ने कोर्ट में याचिका दी थी कि उनके खिलाफ दायर एफआईआर को खारिज कर दिया जाए या केंद्रीय जांच ब्यूरो जैसी स्वतंत्र एजेंसी को ऐसे मामलों की जांच करने दी जाए। न्यायमूर्ति मंथा ने कहा कि सुवेंदु अधिकारी लोगों के चुने गए विपक्ष के नेता हैं और ऐसी परिस्थितियों में पुलिस या तो स्वयं या किसी के निर्देश पर उनके कार्यों को रोकने के लिए कदम नहीं उठा सकती है। इसके अलावा उन्होंने यह भी आदेश दिया था कि अदालत की पूर्व अनुमति के बिना कोई भी नई एफआईआर सुवेंदु अधिकारी पर दर्ज नहीं की जाएगी।
पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से कलकत्ता हाईकोर्ट में महाधिवक्ता एसएन मुखोपाध्याय ने एफआईआर के संदर्भ में इस तरह की राहत के औचित्य पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि सुवेंदु पहले ही कोर्ट में कवच का आनंद ले रहे थे। जिसके बाद न्यायमूर्ति मंथा ने कहा कि अदालत विपक्ष के नेता की एप्प्रिहेंशन को नजरअंदाज नहीं कर सकती है। उन्हें लोगों ने चुना है।
एडवोकेट अबू सोहेल ने जस्टिस मंथा के फैसलों को चुनौती देते हुए चीफ जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव और जस्टिस राजर्षि भारद्वाज की खंडपीठ का दरवाजा खटखटाया। उनकी याचिका को स्वीकार कर लिया गया। याचिकाकर्ता ने कहा है कि वह पूर्वी मिदनापुर जिले के नंदकुमार पुलिस स्टेशन में दर्ज एक मामले में पक्षकार है, जहां सुवेंदु अधिकारी के खिलाफ केस दर्ज किया गया था। अधिकारी को संरक्षण देने वाली एकल-न्यायाधीश पीठ का आदेश बिना उनका पक्ष सुने पारित कर दिया गया।
जस्टिस राजशेखर मंथा के आदेश की तृणमूल कांग्रेस ने आलोचना की। टीएमसी के राज्य महासचिव और पार्टी प्रवक्ता घोष ने आरोप लगाया कि न्यायमूर्ति मंथा सुवेंदु अधिकारी को संरक्षण दे रहे हैं जिसके कारण विपक्ष के नेता गैरजिम्मेदार हो गए हैं। उन्होंने कहा कि न्यायिक प्रणाली के प्रति मेरा पूरा सम्मान है। लेकिन जिस तरह से न्यायमूर्ति मंथा ने शुभेंदु अधिकारी को एफआईआर से सुरक्षा प्रदान की, वह अलोकतांत्रिक और पक्षपातपूर्ण था। इसने सुवेंदु अधिकारी को लापरवाह बना दिया, जैसा कि उनके कंबल वितरण कार्यक्रम में भगदड़ से स्पष्ट था। आसनसोल में हुई इस भगदड़ में तीन लोगों की मौत हो गई थी। उन्होंने यहां तक कहा था कि न्यायमूर्ति मंथा को इस घटना की जिम्मेदारी लेनी होगी।
टीएमसी ने ता ने यह भी आरोप लगाया था कि सुवेंदु अधिकारी किसी भी कानूनी मामले में हमेशा न्यायमूर्ति मंथा की पीठ के पास जाना पसंद करते हैं। उन्होंने कहा, ‘मैं न्यायिक प्रणाली की आलोचना नहीं कर रहा हूं। मैं सिर्फ एक विशेष मामले में न्यायाधीश के कुछ फैसलों पर आपत्ति जता रहा हूं।’ मामला सुप्रीम कोर्ट में दायर किया गया लेकिन सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि पहले हाई कोर्ट में ही जाइए।
इधर पश्चिम बंगाल सरकार को इस हफ्ते की शुरुआत में बड़ा झटका लगा। पूर्वी मिदनापुर जिले के कोंटाई में हुए कथित टेंडर घोटाले की केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से जांच कराने का आदेश हाई कोर्ट ने दिया। यह आदेश जस्टिस राजशेखर मंथा ने ही दिया। न्यायमूर्ति राजशेखर मंथा की एकल-न्यायाधीश पीठ ने रामचंद्र पांडा को जमानत दे दी। रामचंद्र पांडा को सुवेंदु अधिकारी का करीबी कहा जाता है। उन्हें पिछले साल 28 दिसंबर को घोटाले के सिलसिले में राज्य पुलिस ने गिरफ्तार किया था। रामचंद्र पांडा की पत्नी काकोली पांडा स्थानीय सहकारी समिति की अध्यक्ष हैं। उनकी शिकायत के आधार पर ही उनके पति को गिरफ्तार किया गया था। काकोली पांडा बेंच के सामने पेश हुईं और दावा किया कि उन्हें एक कागज पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया गया और फिर अपने पति के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने के लिए स्थानीय पुलिस स्टेशन ले जाया गया। दलीलें सुनने के बाद न्यायमूर्ति मंथा ने रामचंद्र पांडा को जमानत दे थी। मामले की सीबीआई जांच का आदेश देते हुए न्यायमूर्ति मंथा ने राज्य पुलिस को शिकायत की एक प्रति सौंपने का निर्देश दिया था।
जस्टिस मंथा के खिलाफ टीएमसी के कई नेताओं ने बयानबाजी की। तीन दिन पहले वकीलों के एक वर्ग ने न्यायमूर्ति राजशेखर मंथा की पीठ का बहिष्कार किया। कोर्ट के दरवाजे को घेरकर खड़े हो गए और जस्टिस को अंदर जाने से रोका। नतीजा यह हुआ कि न्यायमूर्ति मंथा की बेंच में 9 जनवरी की सुबह कामकाज ठप हो गया। उनके साथ धक्का-मुक्की की गई। दक्षिण कोलकाता के जोधपुर पार्क में जस्टिस मंथा के आवास और उसके आस-पास की जगहों की दीवारों पर जस्टिस मंथा के खिलाफ कई पोस्टर चिपकाए गए। पोस्टर्स में आरोप लगाया गया था कि जस्टिस मंथा शुभेंदु अधिकारी के पक्ष में काम कर रहे हैं। पोस्टरों जस्टिस मंथा की तस्वीर के ऊपर ‘शेम’ लिखा लिखा। इसमें टीएमसी के राष्ट्रीय महासचिव और पार्टी सांसद अभिषेक बनर्जी की साली मेनका गंभीर के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की कार्रवाई से रोक हटाने के उनके हालिया फैसले के लिए जस्टिस मंथा की आलोचना की गई है।
डेप्युप्टी सॉलिसिटर जनरल बिलवादल भट्टाचार्य ने न्यायमूर्ति मंथा की पीठ के बहिष्कार के मामले में कलकत्ता हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश प्रकाश श्रीवास्तव से संज्ञान में लेने की अपील की। टीएमसी के समर्थन वाले वकीलों के न्यायमूर्ति मंथा की पीठ के प्रवेश को रोकने और अन्य वकीलों को वहां प्रवेश करने से रोकने की घटना की सीपीआई (एम) के राज्यसभा सदस्य विकास भट्टाचार्य ने भी आलोचना की थी। न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव ने घटनाक्रम पर चिंता व्यक्त की। जस्टिस श्रीवास्तव ने कहा, मैं बार एसोसिएशन के अध्यक्ष को तलब करूंगा। मैं इस मामले को देख रहा हूं। एक न्यायधीश की बेंच का बहिष्कार कैसे किया जा सकता है?