हाल ही में बिहार में आईएएस वर्सेस शिक्षा मंत्री की एक घटना हुई थी! बिहार बेलगाम हो गया है। विपक्ष का तो काम ही है बात-बेबात बोलते रहना। सरकार की कमी तलाशना और उसे लेकर हंगामा खड़ा करना। लेकिन सरकार में शामिल दल ही जब आपस में बात-बात पर उलझने लगें। सरकार को बार-बार नीतियां बदलनी पड़े। अफसर मंत्रियों की बात न सुनें या मंत्री बेवजह अफसरों के काम में टांग अड़ाने लगें। इसे बेलगाम शासन ही तो कहा जाएगा! बिहार में हत्या, लूट, दुष्कर्म जैसी घटनाओं को छोड़ भी दें तो अभी शिक्षा विभाग में मंत्री और अफसर के बीच जो घमासान मचा हुआ है और इसे लेकर महागठबंधन के नेताओं के उल्टे-सीधे बयानों पर सरकार का मुखिया अंकुश लगाने में नाकाम हैं। आम आदमी इसे किसे किस नजरिए से देखता होगा। इसका अंदाजा लगा लीजिए! शिक्षा विभाग को सुधारने के लिए नियुक्त स्वभाव से सख्त और काम के प्रति कड़ियल रुख रखने वाले अपर मुख्य सचिव केके पाठक का दोष सिर्फ इतना है कि वे अपने अंदाज में काम कर रहे हैं। स्कूलों का स्थल निरीक्षण कर रहे हैं। ट्रांसफर-पोस्टिंग वे नियमों के मुताबिक करते हैं। मंत्री नियमों और तकनीकी बातों के उतने जानकार नहीं होते, जितने आईएएस अफसर होते हैं। मंत्री अगर निस्वार्थ भाव से काम करें तो नियमों के तहत होने वाले हर काम की वह तारीफ करेगा, न कि पीत पत्र भेज कर अफसर की फजीहत करेगा। मंगलवार से केके पाठक और शिक्षा मंत्री के बीच विवाद की शुरुआत हुई। मंत्री के पीए ने केके पाठक को पीत पत्र भेज कर उनकी कार्यशैली पर सवाल खड़े किए। अपनी पेशेवर जिंदगी में अब तक बेदाग रहे केके पाठक को यह बात नागवार लगी। बुधवार को उन्होंने न सिर्फ पीत पत्र का जवाब दिया, बल्कि पीए के शिक्षा विभाग में प्रवेश पर ही पाबंदी लगा दी। तिलमिलाए शिक्षा मंत्री अपने दल आरजेडी के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव से मिले। लालू ने उन्हें नीतीश के पास भेज दिया। नीतीश ने इस बीच केके पाठक को मंत्री के कारनामों की पूरी फाइल के साथ अपने आवास पर बुला लिया। वहां जो कुछ हुआ, उसके बाद इस विवाद पर विराम लग जाना चाहिए था, लेकिन महागठबंधन के नेता ही आपस में उलझ गए हैं।
शिक्षा मंत्री और केके पाठक के विवाद में वैसे तो आरजेडी और जेडीयू के नेता बयानों के जरिए उसी दिन से गुत्थमगुत्था हो रहे हैं, जिस दिन शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर और केके पाठक सीएम आवास पर अपना-अपना रोना रोने गए थे। तनातनी का आलम यह है कि आरजेडी एमएलसी और लालू यादव के परिवार के करीबी सुनील कुमार सिंह ने कहा कि नीतीश कुमार को जिस मंत्री को प्रताड़ित करना होता है, वहां केके पाठक जैसे अफसर को लगा देते हैं। केके पाठक अगर इतने काबिल अफसर हैं तो उन्हें मुख्यमंत्री सचिवालय का भार दे देना चाहिए। इससे एक ही विभाग नहीं, बल्कि सभी विभागों को वे ठीक कर सकेंगे। इस पर जेडीयू कोटे के मंत्री अशोक चौधरी ने कहा कि सुनील सिंह सिर्फ आरजेडी के नेता हैं। उनके बयान का कोई मतलब नहीं है। लालू यादव और राबड़ी देवी क्या बोलते हैं, यह महत्वपूर्ण है। हम सुनील सिंह जैसे नेताओं का नोटिस भी नहीं लेते हैं।
अशोक चौधरी का बयान आने के बाद सुनील सिंह हत्थे से उखड़ गए हैं। सुनील सिंह ने अशोक चौधरी को दलबदलू तक बता दिया। उन्होंने दावा किया है कि चौधरी अपने नेता नीतीश कुमार को भी धोखा देंगे। सुनील सिंह ने अपने फेसबुक पोस्ट में बिहार सरकार के अफसरों को डाकू अंगुलिमाल और डाकू खड़ग सिंह जैसा बताया है। बिहार के भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी पर सुनील सिंह ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा है कि वे हर दिन दल बदलते हैं। वे दलबदलू हैं। कई घाट का पानी पी चुके हैं। सुनील सिंह का गुस्सा ऐसा कि उन्होंने अशोक चौधरी पर यह भी आरोप लगा दिया कि कांग्रेस नेता राजो सिंह की हत्या में उनका नाम आया था। सुनील सिंह का दावा है कि 2015 से पहले अशोक चौधरी नीतीश का साथ छोड़ देंगे। उन्होंने यह भी याद दिलाया है कि अशोक चौधरी ने विधानमंडल में कभी राबड़ी देवी को भी अपमानित किया था। वे भरोसे के आदमी नहीं हैं। नीतीश कुमार को कभी भी धोखा दे सकते हैं। इस एपिसोड में जेडीयू के प्रवक्ता डॉ. सुनील सिंह ने भी एंट्री मार दी है। उन्होंने आरजेडी एमएलसी सुनील सिंह को चेतावनी दे डाली है। उन्होंने कहा है कि अगर ऐसा ही चला तो हमारे सब्र का बांध टूट सकता है।
हाल तक नीतीश कुमार के साथ रहे उपेंद्र कुशवाहा ने अब अपनी पार्टी आरएलजेडी बना ली है। उनका कहना है कि बिहार में शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह चौपट हो गई है। भविष्य में सुधार के संकेत नहीं दिखते। शिक्षा मंत्री शिक्षा विभाग का काम छोड़ दुनिया के तमाम काम कर रहे हैं। विभाग में मंत्री बनाम अधिकारी का झगड़ा चल रहा है। सीएम ने शिक्षा विभाग को राम भरोसे छोड़ दिया है। एक ओर सनकी अधिकारी है तो दूसरी ओर महासनकी शिक्षा मंत्री। दोनों में वर्चस्व की लड़ाई चल रही है। जन सुराज यात्रा पर बिहार के गांवों में घूम रहे चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर कहते हैं कि राज्य सरकार 40 हजार करोड़ रुपए शिक्षा व्यवस्था पर खर्च करती है। मंत्री या अधिकारी कुछ भी कहे, लेकिन शिक्षा व्यवस्था सुधरती नहीं दिख रही। दोनों इस जिद पर अड़े हैं कि मेरी बात ही सही। इससे नुकसान बिहार के बच्चों, शिक्षकों और स्कूल प्रबंधन का हो रहा है। नीतीश सरकार की शिक्षा व्यवस्था को आने वाले समय में काला अध्याय कहा जाएगा।