लंपी वायरस के बारे में दिनों दिन नई नई खबरें सामने आती जा रही है! देश के लाखों गोवंश को अपनी चपेट में लेने वाला लंपी वायरस बीते तीन साल में न सिर्फ सात गुना अधिक जानलेवा हुआ है, बल्कि इसके 39 स्वरूप दुनिया में और किसी भी देश से नहीं मिले हैं। इससे स्पष्ट है कि भारत में लंपी का स्वरूप चीन, नेपाल, भूटान, वियतनाम और म्यांमार की तुलना में ज्यादा घातक है।
यह खुलासा लंपी वायरस संक्रमित छह गायों से लिए नमूनों की जीनोम सीक्वेंसिंग में हुआ है। राजस्थान सरकार और नई दिल्ली स्थित आईजीआईबी के वैज्ञानिकों ने मिलकर यह जांच पूरी की है। आईजीआईबी के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. विनोद स्कारिया ने बताया, लंपी वायरस पूरी दुनिया के लिए नया नहीं है। 2019 में यह सामने आया था, लेकिन तब मृत्यु दर शून्य थी जो आज 7.1 फीसदी से अधिक है।
उन्होंने बताया कि कोरोना की तरह लंपी वायरस को लेकर भी वैश्विक स्तर पर जेनबैंक नामक एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म है, जहां अलग-अलग देशों से वायरस के जीनोम साझा किए जाते हैं। जब राजस्थान से सैंपल लेने के बाद इस प्लेटफॉर्म पर मौजूद जीनोम से मिलान किया तो पता चला कि दुनिया भर में लंपी वायरस के 57 स्वरूप मौजूद हैं, जिनमें से 47 स्वरूप नोबल पाए गए जो सिर्फ भारतीय गोवंश में ही थे। जब इस पर और अधिक ध्यान दिया गया तो आठ इन्सानों के लिए घातक नहीं मिले। ऐसे में सिर्फ भारत में मौजूद 39 स्वरूप चिंता का कारण बने हुए हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार, यह एक पॉक्स वायरस है जो 1980 के दशक कैप्री पॉक्स वायरस नामक वंश से जुड़ा था, लेकिन अब इसका स्वरूप काफी जोखिम भरा है। सीधे तौर पर कहें तो यह भी जलवायु परिवर्तन का एक बड़ा उदाहरण है।वैज्ञानिकों के अनुसार, यह एक पॉक्स वायरस है जो 1980 के दशक कैप्री पॉक्स वायरस नामक वंश से जुड़ा था, लेकिन अब इसका स्वरूप काफी जोखिम भरा है। सीधे तौर पर कहें तो यह भी जलवायु परिवर्तन का एक बड़ा उदाहरण है।
आईजीआईबी के प्रमुख शोधकर्ता डॉ. श्रीधर शिवसुब्बू ने कहा कि दुनिया में दूध के सबसे बड़े उत्पादक देशों में शामिल होने के नाते हमारे यहां लंपी वायरस का यह असर काफी गंभीर हो सकता है। इससे न सिर्फ कृषि अर्थव्यवस्था, बल्कि डेयरी आजीविका पर भी गहरा संकट पड़ सकता है।आईजीआईबी के प्रमुख डॉ. ने कहा कि दुनिया में दूध के सबसे बड़े उत्पादक देशों में शामिल होने के नाते हमारे यहां लंपी वायरस का यह असर काफी गंभीर हो सकता है। इससे न सिर्फ कृषि अर्थव्यवस्था, बल्कि डेयरी आजीविका पर भी गहरा संकट पड़ सकता है।
उन्होंने बताया कि कोरोना की तरह लंपी वायरस को लेकर भी वैश्विक स्तर पर जेनबैंक नामक एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म है, जहां अलग-अलग देशों से वायरस के जीनोम साझा किए जाते हैं। जब राजस्थान से सैंपल लेने के बाद इस प्लेटफॉर्म पर मौजूद जीनोम से मिलान किया तो पता चला कि दुनिया भर में लंपी वायरस के 57 स्वरूप मौजूद हैं, जिनमें से 47 स्वरूप नोबल पाए गए जो सिर्फ भारतीय गोवंश में ही थे। जब इस पर और अधिक ध्यान दिया गया तो आठ इन्सानों के लिए घातक नहीं मिले। ऐसे में सिर्फ भारत में मौजूद 39 स्वरूप चिंता का कारण बने हुए हैं।वैज्ञानिकों के अनुसार, यह एक पॉक्स वायरस है जो 1980 के दशक कैप्री पॉक्स वायरस नामक वंश से जुड़ा था, लेकिन अब इसका स्वरूप काफी जोखिम भरा है।
सीधे तौर पर कहें तो यह भी जलवायु परिवर्तन का एक बड़ा उदाहरण है।वैज्ञानिकों के अनुसार, यह एक पॉक्स वायरस है जो 1980 के दशक कैप्री पॉक्स वायरस नामक वंश से जुड़ा था, लेकिन अब इसका स्वरूप काफी जोखिम भरा है। सीधे तौर पर कहें तो यह भी जलवायु परिवर्तन का एक बड़ा उदाहरण है।जब राजस्थान से सैंपल लेने के बाद इस प्लेटफॉर्म पर मौजूद जीनोम से मिलान किया तो पता चला कि दुनिया भर में लंपी वायरस के 57 स्वरूप मौजूद हैं, जिनमें से 47 स्वरूप नोबल पाए गए जो सिर्फ भारतीय गोवंश में ही थे। जब इस पर और अधिक ध्यान दिया गया तो आठ इन्सानों के लिए घातक नहीं मिले। ऐसे में सिर्फ भारत में मौजूद 39 स्वरूप चिंता का कारण बने हुए हैं।वैज्ञानिकों के अनुसार, यह एक पॉक्स वायरस है जो 1980 के दशक कैप्री पॉक्स वायरस नामक वंश से जुड़ा था, लेकिन अब इसका स्वरूप काफी जोखिम भरा है। आईजीआईबी के प्रमुख शोधकर्ता डॉ. श्रीधर शिवसुब्बू ने कहा कि दुनिया में दूध के सबसे बड़े उत्पादक देशों में शामिल होने के नाते हमारे यहां लंपी वायरस का यह असर काफी गंभीर हो सकता है। इससे न सिर्फ कृषि अर्थव्यवस्था, बल्कि डेयरी आजीविका पर भी गहरा संकट पड़ सकता है।