आखिर क्यों चर्चा में है ओल्ड पेंशन स्कीम?

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वर्तमान में ओल्ड पेंशन स्कीम काफी चर्चा में है! न्यू पेंशन स्कीम या ओल्ड पेंशन स्कीम। इस पर कुछ राज्य सरकारों और केंद्र सरकार के बीच लड़ाई ठनी हुई है। एक ओर राजस्थान सरकार, छत्तीसगढ़ सरकार और झारखंड सरकार ने अपने कर्मचारियों के लिए ओल्ड पेंशन स्कीम शुरू करने का फैसला ले लिया है। तो दूसरी ओर पंजाब सरकार और हिमाचल प्रदेश सरकार भी ऐसा करने की प्रक्रिया शुरू कर चुकी है या कर रही है। लेकिन केंद्र सरकार ने स्पष्ट कह दिया है कि ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने का प्रस्ताव उनके पास विचाराधीन नहीं है। मतलब कि पेंशन फंड रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी के पास जो राज्य सरकार और उनके कर्मचारियों का अंशदान जमा है, उस के पास ही रहेगा। ऐसे में राज्य सरकारों के लिए ओपीएस लागू करना टेढ़ी खीर होगी। कुछ विशेषज्ञों ने तो यह शुरू कर दिया है कि केंद्र के सपोर्ट के बिना राज्यों ने यदि ओपीएस को लागू कर दिया तो उनकी माली हालत खस्ता हो जाएगी। कुछ राज्य इसके चलते कर्ज के मकड़जाल में भी फंस सकते हैं। हम पहले ही बता चुके हैं कि ओपीएस की वजह से राजस्थान, झारखंड और छत्तीसगढ़ का केंद्र के साथ रार ठन चुकी है। इन राज्यों ने पेंशन क्षेत्र के नियामक पीएफआरडीए के पास एनपीएस के सब्सक्राइबर के पैसों को वापस करने के लिए प्रस्ताव भेजा है। लेकिन केन्द्र ने राज्यों को पैसे वापस करने से इनकार कर दिया है। यदि पीएफआरडीएस से राज्यों को पैसा वापस नहीं मिलता है तो इन राज्यों को हजारों करोड़ रुपये अपनी जेब से लगाना पड़ेगा। यदि राज्य कर्मचारियों के पेंशन के लिए अपनी निधि लगाएगी तो जाहिर है कि कल्याणकारी कार्यों के लिए फंड का टोटा होगा।

पिछले दिनों की केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री भगवत कराड ने लोकसभा में बताया था कि केंद्र के पास ओल्ड पेंशन स्कीम को फिर से शुरू करने संबंधी काई प्रस्ताव लंबित नहीं है। हालांकि कराड ने इस बात को स्वीकार किया था कि राजस्थान, छत्तीसगढ़ और झारखंड सरकार की तरफ से ओपीएस को फिर से शुरू करने की जानकारी केंद्र को मिली है। पीएफआरडीए का कहना है कि इस योजना में एम्प्लॉयी के फंड को एम्प्लॉयर को ट्रांसफर नहीं किया जा सकता है। कुछ राज्य ये भी कह रहे हैं कि चाहे केंद्र सरकार समर्थन दे या न दें, वे तो ओपीएस लागू करेंगे। लेकिन ऐसा करना राज्यों के लिए आर्थिक रूप से आत्मघाती कदम होगा। भारतीय रिजर्व बैंक ने इसी साल जून में ओपीएस पर एक स्टडी की थी। इसमें बताया गया था कि ओल्ड पेंशन स्कीम की तरफ लौटना राज्यों के लिए घातक हो सकता है। स्टडी में हवाला दिया गया है कि कुछ राज्यों की माली हालात ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने लायक नहीं है। इस योजना को लागू करने के लिए कुछ राज्यों को कर्ज भी लेना पड़ सकता है। इससे राज्य को लोक कल्याणकारी योजनाओं के लिए भी निधि का अभाव हो सकता है।

केंद्र सरकार ने अपने कर्मचारियों के लिए एक जनवरी 2004 से एनपीएस लागू किया था। कालांतर में इसे धीरे धीरे अधिकतर राज्य सरकारों ने भी लागू कर दिया। हालांकि, इस समय सभी राज्यों में एनपीएस लागू नहीं है।पीएफआरडीए का कहना है कि इस योजना में एम्प्लॉयी के फंड को एम्प्लॉयर को ट्रांसफर नहीं किया जा सकता है। कुछ राज्य ये भी कह रहे हैं कि चाहे केंद्र सरकार समर्थन दे या न दें, वे तो ओपीएस लागू करेंगे। लेकिन ऐसा करना राज्यों के लिए आर्थिक रूप से आत्मघाती कदम होगा। भारतीय रिजर्व बैंक ने इसी साल जून में ओपीएस पर एक स्टडी की थी। इसमें बताया गया था कि ओल्ड पेंशन स्कीम की तरफ लौटना राज्यों के लिए घातक हो सकता है। स्टडी में हवाला दिया गया है कि कुछ राज्यों की माली हालात ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने लायक नहीं है। इस योजना को लागू करने के लिए कुछ राज्यों को कर्ज भी लेना पड़ सकता है। इससे राज्य को लोक कल्याणकारी योजनाओं के लिए भी निधि का अभाव हो सकता है। दिल्ली और पुड्डुचेरी समेत 29 राज्यों में ही यह लागू है।यदि पीएफआरडीएस से राज्यों को पैसा वापस नहीं मिलता है तो इन राज्यों को हजारों करोड़ रुपये अपनी जेब से लगाना पड़ेगा। यदि राज्य कर्मचारियों के पेंशन के लिए अपनी निधि लगाएगी तो जाहिर है कि कल्याणकारी कार्यों के लिए फंड का टोटा होगा। पश्चिम बंगाल ने शुरू में ही एनपीएस स्कीम को लागू करने से मना कर दिया था। तमिलनाडु सरकार की भी अपने कर्मचारियों के लिए अलग स्कीम है। उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे बड़े राज्यों ने इस अपना लिया है।