हाल ही में अंकिता भंडारी की हुई मौत पर काफी हद तक बवाल उमड़ा है! 22 सितंबर की शाम। उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, राज्य के सबसे बड़े पुलिस अधिकारी डीजीपी अशोक कुमार स्टेडियम में क्रिकेट का मजा ले रहे हैं। कई अन्य वीआईपी भी मौजूद हैं। देहरादून का यह स्टेडियम उसी उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की बिल्डिंग के पास है, जिसके पेपर लीक पर धामी की सरकार बुरी तरह घिरी हुई है। उसे दबाव में भर्तियां रद्द करनी पड़ी हैं। जांच बिठानी पड़ी है। और अब भारी फजीहत के बाद विधानसभा की 228 भर्तियों को भी कैंसल करना पड़ा है।तकरीबन उसी वक्त। करीब 50 किलोमीटर दूर। ऋषिकेश की एक पुलिस चौकी। इकहरे से कद का एक इंसान हाथ बेबसी में बांधे बाहर खड़ा है। यह अंकिता भंडारी के पिता वीरेंद्र भंडारी हैं। अंकिता को गायब हुए 4 दिन से ज्यादा हो चुके हैं। पिता की धड़कनें बढ़ी हुई हैं। बेटी का क्या हुआ होगा? बेटी की तलाश में पुलिस-पटवारियों के चक्कर काट-काटकर वह आखिर इस चौकी पर हैं। चौकी के अंदर अलग ही पिक्चर चल रही है। अंकिता की गुमशुदगी के आरोपी पुलकित आर्य के रसूखदार पिता बीजेपी नेता व पूर्व दर्जा प्राप्त मंत्री विनोद आर्य पुलिस की स्पेशल चाय पी रहे हैं। बेटे को गिरफ्तारी से बचाने के लिए वह हर तिकड़म भिड़ाने के लिए पहुंचे हैं। पुलिस का पूरा सिस्टम भी उनके साथ बैठा दिख रहा है।
क्रिकेट मैच के बाद मुख्यमंत्री धामी और राज्य के सबसे बड़े पुलिस अधिकारी डीजीपी अशोक जा चुके हैं। वे चैन की नींद सोए होंगे, लेकिन थक-हारकर आधी रात पराए शहर में किसी होटल या या रिश्तेदार के घर टिके वीरेंद्र भंडारी निश्चित ही सो नहीं पाए होंगे। उनकी रात करवट बदलते बीती होगी। अंकिता भंडारी अब दुनिया में नहीं है। गंगा से एक हफ्ते बाद उसकी लाश भी मिल गई है। उसके गुनहगार पुलकित आर्य और उसके तीन साथी पुलिस की गिरफ्त में हैं। लेकिन ऊपर के इन दो दृश्यों को समझे बगैर अंकिता जो एक बेहद मामूली घर से आती थी कि कहानी अधूरी है। यह दो सीन इस पहाड़ी राज्य की सियासी और उसके पुलिसिया सिस्टम की हकीकत हैं।
राजधानी देहरादून से 50 किलोमीटर दूर गुमशुदा बेटी की तलाश के लिए पौड़ी के एक गांव से आया पिता आधी रात तक ऋषिकेश की सड़कों पर भटकता है। वह कभी पटवारी चौकी का चक्कर जाता है, तो कभी पुलिस चौकी का। बेटी की मौत की खबर से पहले वाली रातें वह किस पुलिसिया सिस्टम से गुजर रहे थे, यह उनकी आपबीती बताती है। इसके वीडियो हर जगह वायरल हैं। उन्हें ऋषिकेश कोतवाली भेजा जाता है। वह वहां पहुंचते हैं तो उन्हें कहा जाता है कि यह यमकेश्वर का मामला है, आपको लक्ष्मणझूला जाना पड़ेगा। अंकिता के पिता के मुताबिक उस रात वह साढ़े 12 बजे तक भटकते रहे।
अंकिता जब गायब हुई थी, तो मामला पटवारी चौकी राजस्व पुलिस के पास गया। राजस्व पुलिस का अपना एक ढर्रा है। उसे इसे उसी हिसाब से बेहद हल्के में लिया। तीन-चार दिन क वे इसे टालते रहे। बेबस पिता वीरेंद्र सिंह भंडारी बेटी की बरामदगी के लिए ऋषिकेश में लगातार चक्कर काटते रहते हैं। वह राज्य की महिला आयोग की अध्यक्ष कुसुम कंडवाल से मिलते हैं। पौड़ी के उस जिलाधिकारी को चिट्ठी लिखते हैं, जिसे तुरंत ऐक्शन में होना चाहिए था। वह शक जाहिर करते हैं कि रिजॉर्ट का मालिक पुलकित आर्य और उसके साथी इसके पीछे हैं। लेकिन उनकी बात को अनसुना कर दिया जाता है। यह पुलिस का सिस्टम है। यह प्रशासन का सिस्टम है। यह सब राजधानी देहरादून से कुछ किलोमीटर दूर चल रहा होता है। जहां खुद मुख्यमंत्री मौजूद हैं। राज्य की पुलिस का चीफ मौजूद है। सारा सिस्टम मौजूद है।
शुक्रवार सुबह खबर आती है कि पुलकित को गिरफ्तार कर लिया गया है। राज खुलता है कि अंकिता भंडारी पर बीजेपी नेता पुत्र के जंगल में अवैध बने रिजॉर्ट में सेक्स रैकेट में शामिल होने का दवाब था। वह इनकार करती हैं। वह यही उसकी मौत की वजह बनती है। अंकिता के अपने दोस्त के साथ किए गए आखिरी वॉट्सऐप चैट में यह पूरी कहानी है। अंकिता को पुलिकित आर्य बहकाकर शक्ति नहर के पास ले जाते हैं। वहां उसे धक्का दे दिया जाता है। अंकिता गंगा में कहीं खो जाती है। अंकिता की मौत की खबर से एक सिहरन सी ऋषिकेश से गंगोत्री और माणा तक, जहां से गंगा और यमुना निकलती है, वहां की घाटियों में दौड़ जाती है। बेटियों के शरीर में एक कंपकंपी अवश्य छूटी होगी। देहरादून, ऋषिकेश, हल्द्वानी पहाड़ में बेटियों के सपनों को पंख देने वाले शहर रहे हैं। दरअसल यह एक बेबसी भी है। राज्य बने दो दशक से ऊपर हो गए हैं, लेकिन पहाड़ पर रोजगार और ढंग की पढ़ाई का कोई सिस्टम बन नहीं पाया। ऐसे में आगे बढ़ने-पढ़ने की चाह रखने वाली बेटियों के लिए ये शहर सपने जैसे हैं। अंकिता भी एक ऐप पर निकली जॉब के जरिए वनंत्रा रिजॉर्ट तक पहुंची थी।
आखिर पुलकित जैसे शोहदे पैदा क्यों होते हैं? दरअसल ये पहाड़ी राज्य के दबंग होते सत्ता के सिस्टम की उपज हैं। पुलकित आर्य के बनने की कहानी से आप इसे बेहतर तरीके से समझ जाएंगे। अगर बीजेपी नेता पिता ने सही समय पर बेटे के काम उमेठ दिए होते, या फिर देश की सबसे बड़ी पार्टी बन चुकी बीजेपी के हाईकमान ने सीएम धामी को कस दिया होता, तो शायद अंकिता बच जाती। लॉकडाउन को याद कीजिए। पूरा देश घर में बंद था, लेकिन पुलकित अपने पिता की पशुपालन बोर्ड उपाध्यक्ष की प्लेट वाली गाड़ी के साथ चमोली में अमरमणि त्रिपाठी के साथ सैर-सपाटे पर था। पकड़े जाने पर भी उस पर कोई बड़ा ऐक्शन नहीं होता। पुलकित को पता होता है कि सत्ताधारी पार्टी में पिता और बड़े भाई की पहुंच उसका बाल बांका होने नहीं देगी।
इससे पहले 2016 में ऋषिकुल आयुर्वेदिक कॉलेज में मुन्नाभाई कांड खुलता है। एडमिशन फर्जीवाड़े में पुलकित सस्पेंड कर दिया जाता है। उस पर केस दर्ज होते हैं, लेकिन यहां भी दर्जाधारी मंत्री पिता की पहुंच काम आती है। उसे गिरफ्तार नहीं किया जाता। यही नहीं, लाड़ले को कॉलेज में दोबारा दाखिला दिलवाने के लिए पिता ने क्या किया इसका खुलासा बाद में विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार रहे मृत्युंजय मिश्रा करते हैं। मिश्रा बताते हैं कि बेटे को दोबारा दाखिला दिलवाने के लिए बीजेपी नेता विनोद आर्य ने दो करोड़ नकद और एक ऑडी कार देने की पेशकश की थी।
अपने नालायक बेटे के लिए एक पिता के इस मोह को समझिए। फिर अंकिता का चेहरा याद कीजिए। फिर चौकी के बाहर बेबस खड़े अंकिता के पिता का चेहरा भी याद कीजिए। अब सत्ता की उस हनक महसूस कीजिए। जरा कल्पना कीजिए अंकिता के पिता जिस थाने में कार्रवाई की गुहार लगाने के लिए खड़े रहे होंगे, तो वहां स्पेशल चाय पी रहे रहे विनोद आर्य क्या कर रहे होंगे। और यह भी कि अब जब उनका लाड़ला अंकिता की हत्या में पुलिस की गिरफ्त में है, तो वह क्या कर रहे होंगे। और आखिर में, ट्विटर पर अपने हर काम का प्रचार करने वाले राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का जरा ट्विटर हैंडल खोलिए। जिस अंकिता की हत्या पर पूरा पहाड़ हिला हुआ है, उस पर उनका एक अकेला वीडियो देखिए। उनके शरीर की भाषा पढ़िए। शब्दों को तौलिए। राज्य के डीजीपी का फेसबुक पेज भी जरा खंगालिए। इस घटना पर उनके शब्दों और बॉडी लैंग्वेज पर गौर कीजिए। अंकिता क्यों जिंदा नहीं है, आपको समझ आ जाएगा।