हाल ही में डिंपल और मनीषा की समलैंगिक शादी पर बवाल मच गया है! पंजाब के बठिंडा जिले में 18 सितंबर को गुरुद्वारे में हुई एक समलैंगिक शादी इन दिनों चर्चा में हैं। बठिंडा के गुरुद्वार में हुई दो लड़कियों की शादी दोनों के परिवारों की सहमति से हुई है। जिन दो लड़कियों की शादी हुई है उनमें डिंपल जट सिख परिवार से संबंध रखती है जबकि मनीष हिंदुओं में दलित समाज से आती हैं। दोनों ने जब अपने घरवालों को इस बारे में बताया तो उन्होंने कहा कि ये मुमकिन नहीं है। मगर बाद में दोनों के परिवार मान गए। जिसके बाद दोनों की गुरुद्वारे में धूमधाम से शादी हुई। लेकिन गुरुद्वारे में हुई इस शादी ने एक नए विवाद को जन्म दे दिया। एक तरफ शिरोणणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने मामले की जांच के आदेश दिए हैं। वहीं दूसरी तरफ सिखों की सबसे बड़ी संस्था अकाल तख्त साहिब ने इसे नैतिक और धार्मिक मूल्यों का उल्लंघन बताया है। बठिंडा की मनीषा और मानसा की रहने वाली डिंपल की मुलाकात में चडीगढ़ में हुई थी। दोनों काम के सिलसिले में 9 महीने पहले चंडीगढ़ गई थी। जहां दोनों की दोस्ती हो गई। धीरे-धीरे ये दोस्ती प्यार में बदल गई और दोनों ने शादी करने का फैसला किया। 18 सिंतबर को डिंपल दूल्हा बनी और मनीषा दुल्हन। शादी में दूल्हा बनी डिंपल ने बाकायदा दस्तार सजाई हुई थी। दोनों लड़कियों की शादी में उनके परिवार के भी लोग शामिल हुए। शादी के बाद दोनों चंडीगढ़ चली गईं। शादी के बाद दोनों लड़कियों के परिवार वालों ने कहा था कि दोनों ने जब आपस में शादी करने के लिए परिवार से बात की तो किसी ने कोई आपति नहीं जताई।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का मामला अभी लटका पड़ा है, पर देश में लगातार इस तरह की शादियों हो रही हैं। डिंपल और मनीषा की शादी तो हो गई है मगर अब मजहबी और कानूनी दोनों समस्याएं खड़ी हो गई हैं। अब सवाल उठाया जा रहा है कि सिख धर्म में समलैंगिक शादी जायज नहीं है तो इस शादी की रस्में गुरुद्वारे में क्यों कराई गई। सिख धर्म में ‘समान-लिंग विवाह’ अप्राकृतिक और सिख नैतिकता के विपरीत है। सिख संगठनों ने जब इसका विरोध किया तो शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने जांच के लिए कमेटी बना दी। जांच के बाद शादी करवाने वाले दोनों ग्रंथियों को बर्खास्त कर दिया गया है।
भारत में चंद साल पहले तक समलैंगिकता गैरकानूनी थी। यानी सेम जेंडर सेक्स को गलत माना जाता था। ऐसे रिश्ते अवैध होते थे। ये आज से नहीं बल्कि ब्रिटिश काल से ही लागू था। साल 1860-62 में आईपीसी की धारा 377 के तहत समलैंगिकता को अपराध घोषित किया गया था और देश आजाद होने के बाद भी ये बदस्तूर जारी रहा। देश में समलैंगिकता को लीगल करने के लिए गे और लेस्बियन प्रदर्शन करते रहे। एलजीबीटी लगातार मांग करता रहा कि ऐसे रिश्तों को मंजूरी दी जाए। आखिरकार साल 2018 में धारा 377 को मान्यता मिल गई और इसे अपराध की श्रेणी से हटा दिया गया। समलैंगिकों को आम नागरिकों की तरह ही अधिकार मिल गए। हालांकि इसके बावजूद समाज ऐसे रिश्तों को कभी भी खुले दिल से स्वीकार नहीं कर पाया, लेकिन इसे कानूनी रूप मिलने की वजह से ऐसे लोगों के लिए चीजें आसान हो गई। जब समलैंगिकों को समानता का अधिकार मिल गया तो एक नई मांग उठने लगी और ये मांग है समलैंगिक शादी की। यानी अगर सेम सेक्स के दो लोग शादी करते हैं तो उसे कानूनी रूप से मान्यता मिले। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर सुनवाई चल रही है।
समलैंगिक शादी को कई देशों में पहले ही मान्यता दी जा चुकी है। दुनिया के 34 देशों में समलैंगिक शादियां पहले ही मान्य हैं, जिनमें कई बड़े देश जैसे अमेरिका, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, जर्मनी, साउथ अफ्रीका शामिल हैं। इस मामले में कोर्ट में दोनों पक्ष अपनी-अपनी तरह से दलील दे रहे हैं। बता दें कि सिख संगठनों ने जब इसका विरोध किया तो शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने जांच के लिए कमेटी बना दी। जांच के बाद शादी करवाने वाले दोनों ग्रंथियों को बर्खास्त कर दिया गया है। कोर्ट का फैसला इस शादी पर क्या होगा ये अभी नहीं कहा जा सकता, लेकिन समाज में ज्यादातर लोग इस तरह की शादी के खिलाफ हैं। इतने सालों बाद भी समलैंगिकता को ही समाज ने खुले दिल स्वीकार नहीं किया है और ऐसे में शादी जैसे पवित्र रिश्ते पर ये नई चोट भारतीय समाज के लिए पचाना आसान नजर नहीं आ रहा।