आखिर क्यों है अनचाहा गर्भ रखने की मजबूरी?

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ये सवाल उठना लाजमी है कि आखिर अनचाहा गर्भ रखने की मजबूरी क्यों पड़ गयी है! सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महिला को गर्भपात की इजाजत देने से इनकार कर दिया, जो मानसिक अवसाद से गुजर रही थी और जिसका इलाज चल रहा था। यह भारत में मानसिक स्वास्थ्य की निरंतर उपेक्षा की नीति और नीयत को दिखाता है। जिस आसानी से महिलाओं और लड़कियों को अवांछित गर्भ जारी रखने, बच्चे देने और फिर उन्हें गोद लेने के लिए भेजने की सलाह दी जाती है, वह मेडिकल बोर्ड और अदालतों की तरफ से कायम एक तर्कहीन प्रथा है। मेडिकल बोर्ड या अदालतें अनचाहा गर्भ जारी रखने के सामाजिक, आर्थिक, मनोवैज्ञानिक और शारीरिक परिणामों को ध्यान में नहीं रखती हैं। ज्यादातर मामलों में अवांछित गर्भा के मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव की समझ नहीं होती है। क्या सबूतों की कमी है? नहीं। महिलाओं और लड़कियों को अवांछित गर्भ जारी रखने के लिए मजबूर करने के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव के ठोस सबूत हैं। और ऐसा भी नहीं है कि सिर्फ बलात्कार पीड़ित ही जबरन गर्भ रखवाने पर मानसिक रूप से परेशान रहती हैं बल्कि यही बात अन्य महिलाओं के लिए भी सच है। शोध से पता चलता है कि अनचाहे गर्भ और मानसिक स्वास्थ्य के बीच गहरा संबंध है, जिसमें प्रसव के बाद अवसाद डिप्रेशन, तीसरी तिमाही में अवसाद का ज्यादा जोखिम और मनोसामाजिक समस्याएं शामिल हैं। इसके अलावा, इस बात के प्रमाण हैं कि गर्भपात से वंचित महिलाएं चिंता, तनाव, अवसाद और अन्य शारीरिक स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित होती हैं।

हर बार जब किसी लड़की या महिला को जिला राज्य मेडिकल बोर्ड में भेजा जाता है, तो गर्भपात चाहने वालों को पहली सलाह यही दी जाती है कि वो ऐसा नहीं करें बल्कि बच्चा पैदा करें और अपने पास नहीं रखना चाहें तो किसी को गोद दे दें। मेडिकल बोर्ड का यह गैर-वैज्ञानिक रिवाज निराशाजनक है। स्वास्थ्य सेवाओं की लागत, प्रसव के लिए सरकारी मदद, अस्पतालों में भर्ती और आश्रय सहित गोद लेने में सहूलियत जैसी सुविधाएं मुहैया कराने में सरकार को बड़े पैमाने पर खर्च उठाना पड़ता है। ऐसी मूर्खतापूर्ण मदद इसलिए की जाती है क्योंकि पता ही नहीं कि जबरन गर्भधारण का मानसिक स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है। मेडिकल बोर्ड इस बात से अनजान दिखता है कि महिलाओं और लड़कियों को गर्भपात का निर्णय लेने के लिए परिवार, दोस्तों और उनके वैल्यु सिस्टम जैसे कई जोखिमों का सामना करना पड़ता है।

वर्ष 2018 के एक मामले में, 10 साल की बच्ची के साथ चिकित्सा बिरादरी और अदालतों ने यह निर्णय लिया कि जन्मजात हृदय रोग से पीड़ित बच्ची के लिए बच्चे को जन्म देने की तुलना में 24सप्ताह का गर्भ गिराना ज्यादा जोखिम भरा है। उन्होंने अविकसित गर्भाशय, संकीर्ण पेल्विक बोन्स, सर्विक्स और यूटेरस केनाल के कारण 18 वर्ष से कम उम्र के लड़की के लिए गर्भावस्था के जोखिमों पर विचार नहीं किया, न ही यह सोचा कि इतनी छोटी बच्ची के योनि द्वार से प्रसव के दौरान उसकी मृत्यु का भी खतरा हो सकता है। उसके मन और शरीर पर होने वाले आजीवन आघात के बारे में कोई विचार नहीं किया गया था।

सबसे बड़ी चिंता भ्रूण के लिए है, न कि गर्भवती व्यक्ति के मन और शरीर के लिए। एक ओर विकलांग महिलाओं की जबरन नसबंदी और जबरन हिस्टेरेक्टॉमी के जरिए बच्चा पैदा करने के अधिकार से वंचित कर दिया जाता है तो दूसरी ओर महिलाओं को अनचाहा गर्भ रखने के लिए मजबूर किया जाता है जिस कारण मनोसामाजिक विकलांगताएं होती हैं। भ्रूण संबंधी असामान्यता के मामले में देर से गर्भपात के लिए फोएटल इंजेक्शन लेना रूटीन काम है – यह स्वास्थ्य मंत्रालय के दिशानिर्देशों का हिस्सा है। भ्रूण संबंधी असामान्यताओं के लिए इन दिशानिर्देशों का सेलेक्टिव यूज मेडिकल प्रफेशन में भारी गड़बड़ी की तरफ संकेत करता है। मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एमटीपी एक्ट में भ्रूण असामान्यता के लिए अलग-अलग गर्भकालीन सीमा अपने-आप में भेदभावपूर्ण है क्योंकि यह डिजेबिलिटी के प्रति स्टिग्मा और निगेटिव एटिट्यूड्स को बढ़ावा देती है। यदि भ्रूण असामान्यता के मामले में देर से गर्भपात सुरक्षित है, तो यह किसी अन्य अवांछित गर्भावस्था के लिए भी सुरक्षित होना चाहिए।

इसलिए यह मांग बहुत महत्वपूर्ण है कि इन बोर्डों में नियुक्त डॉक्टरों को देर से गर्भपात से संबंधित प्रक्रियाओं को लेकर प्रशिक्षित किया जाए और वैज्ञानिक साक्ष्यों से अवगत कराया जाए कि अनचाहा गर्भ जारी रखने के लिए बाध्य करने का किसी महिला, लड़की या बच्ची पर क्या प्रभाव पड़ता है। मेडिकल प्रफेशनल्स की शिक्षा और प्रशिक्षण में प्रजनन अधिकारों की अवधारणा को समझना और किसी व्यक्ति की यह तय करने की क्षमता शामिल होना चाहिए कि उसके लिए सबसे अच्छा क्या है। जबरन गर्भावस्था और मातृत्व को क्रूर और अपमानजनक व्यवहार का एक रूप माना जाना चाहिए और इससे छुटकारा पाया जाना चाहिए।