आखिर मणिपुर में क्यों भड़क रही है हिंसा?

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हाल ही में मणिपुर की हिंसा ने पूरे देश को दुखमय कर दिया था! मणिपुर पिछले काफी दिनों से हिंसा की आग में सुलग रहा है। जातीय हिंसा, आगजनी, तोड़फोड़, लूटपाट, हत्या, हालात भयावह हैं। इंटरनेट बंद है। उपद्रवियों को देखते ही गोली मारने के आदेश दिए जा चुके हैं। हजारों लोग अपना घर-बार छोड़कर पड़ोसी राज्य असम में पलायन कर रहे हैं। राजधानी इम्फाल से दक्षिण में 63 किलोमीटर पर स्थित चुराचंदपुर जिला हिंसा का केंद्र बना हुआ है। केंद्र सरकार लगातार हालात पर नजर बनाए हुए है। बड़ी तादाद में आर्मी और असम राइफल्स के जवानों को तैनात किया गया है। आखिर ऐसी स्थिति आई क्यों? क्यों सुलग रहा है नॉर्थ ईस्ट का गहना? मणिपुर में हिंसा का लंबा इतिहास रहा है। इस इतिहास में उसके भूगोल की भी अपनी भूमिका है। उसके अलावा वहां के सामाजिक ताने-बाने, बुनावट को समझे बगैर मौजूदा हिंसा की वजह भी नहीं समझी जा सकती। आगे बढ़ने से पहले हिंसा का इतिहास-भूगोल कनेक्शन और सामाजिक संरचना को समझते हैं। पूर्वोत्तर के इस राज्य में तीन प्रमुख समुदाय हैं- बहुसंख्यक मेइती और दो आदिवासी समुदाय- कुकी और नागा। इनके बीच आपसी अविश्वास का इतिहास रहा है। राज्य की कुल आबादी में मेइती की हिस्सेदारी 53 प्रतिशत है यानी आधे से अधिक। ये आर्थिक और राजनीतिक तौर पर मणिपुर का सबसे प्रभावशाली समुदाय है। राज्य की 40 प्रतिशत आबादी कुकी और नागा की है। मेइती सूबे के मैदानी इलाकों, इम्फाल घाटी में हैं। कुकी और नागा आदिवासी इम्फाल घाटी से सटे पहाड़ी इलाकों में रहते हैं। ये इलाके लंबे समय से उग्रवादी गतिविधियों के केंद्र रहे हैं। एक वक्त तो ऐसा भी था कि तकरीबन 60 हथियारबंद उग्रवादी समूह इस इलाके में सक्रिय थे। मणिपुर के कुल क्षेत्रफल का महज 10 प्रतिशत मैदानी इलाका है जो इम्फाल घाटी में है और बहुत ऊपजाऊ है। राज्य का 90 प्रतिशत हिस्सा पहाड़ी इलाका है। मेइती आर्थिक और राजनीतिक तौर पर सबसे प्रभावशाली और ताकतवर हैं। राज्य में किसी भी पार्टी की सरकार हो लेकिन दबदबा मेइती का ही होता है। मौजूदा मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह भी इसी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। कुकी और नागा समुदाय सरकार पर खुद के साथ सौतेला व्यवहार अपनाने का आरोप लगाते हैं।

ताजा हिंसा की दो प्रमुख वजहें हैं। एक है बहुसंख्यक मेइती समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने का फैसला जिसका कुकी और नागा समुदाय विरोध कर रहे हैं। कुकी और नागा समुदाय को आजादी के बाद से ही आदिवासी का दर्जा मिला हुआ है। और दूसरी वजह है गवर्नमेंट लैंड सर्वे। बीजेपी की अगुआई वाली राज्य सरकार ने रिजर्व्ड फॉरेस्ट यानी आरक्षित वन क्षेत्र को आदिवासी ग्रामीणों से खाली कराने का अभियान चला रही है। कुकी समुदाय इसके विरोध में है।

तनाव की शुरुआत चुराचंदपुर जिले से हुई जो राजधानी इम्फाल के दक्षिण में करीब 63 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। जिला कुकी बहुल है। पिछले हफ्ते द इंडिजेनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (ITLF) ने गवर्नमेंट लैंड सर्वे के विरोध में 28 अप्रैल को चुराचंदपुर में 8 घंटे बंद का ऐलान किया था। संयोग से बंद वाले दिन ही मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह का जिले में कार्यक्रम भी था। वह चुराचंदपुर में न्यू लमका टाउन के सद्भावना मंडप में रैली के साथ-साथ एक ओपन जिम और पीटी स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स का उद्घाटन करने वाले थे। लेकिन 27 अप्रैल की रात को ही भीड़ ने मुख्यमंत्री के कार्यक्रम वाली जगह पर जमकर तोड़फोड़ कर दी। कुर्सियों को आग के हवाले कर दिया गया। जिस ओपन जिम और स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स का उद्घाटन होना था वहां तोड़फोड़ और आगजनी हुई। हिंसा के बावजूद बीरेन सिंह के कार्यक्रम की तैयारियां चल रही थीं। 28 अप्रैल को अधिकारी और बड़ी संख्या में लोग सीएम के आने का इंतजार कर रहे थे तभी वहां प्रदर्शनकारियों ने धावा बोल दिया। हालात को संभालने के लिए पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर आंसू गैस के गोले छोड़े और जवाब में उन्होंने पत्थरबाजी की। तनाव की स्थिति बनने के बाद आखिरकार मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने चुराचंदपुर का दौरा रद्द कर दिया। 28 अप्रैल को देर रात तक पुलिस और प्रदर्शनकारियों में झड़प होती रही। उसी रात तुइबोंग एरिया में उपद्रवियों ने फॉरेस्ट रेंज ऑफिस को आग के हवाले कर दिया।

27-28 अप्रैल की हिंसा में मुख्य तौर पर पुलिस और कुकी आदिवासी आमने सामने थे। लेकिन 3 मई को स्थिति बिगड़ गई और इसने जातीय संघर्ष का रूप ले लिया। एक तरफ मेइती समुदाय के लोग तो दूसरी तरफ कुकी और नागा समुदाय के लोग। इनके बीच जातीय हिंसा के बाद स्थिति बेकाबू हो गई। इस बार हिंसा की जड़ में मेइती समुदाय को एसटी का दर्जा दिए का फैसला था। इसके खिलाफ कुकी और नागा आदिवासियों ने 3 मई को राज्य के सभी 10 पहाड़ी जिलों में ‘ट्राइबल सॉलिडैरिटी मार्च’ यानी ‘आदिवासी एकता यात्रा’ निकालने का ऐलान किया। मार्च का आयोजन ऑल ट्राइबल स्टूडेंट यूनियन मणिपुर (ATSUM) ने किया। इस दौरान हिंसा भड़क गई जिसने देखते ही देखते जातीय संघर्ष का रूप ले लिया। स्थिति इतनी बिगड़ गई कि 8 जिलों में मोबाइल इंटरनेट सर्विस सस्पेंड कर दी गई। कर्फ्यू लगा दिया गया। उपद्रवियों को देखते ही गोली मारने के आदेश दे दिए गए हैं। हालात को काबू में करने के लिए पुलिस के साथ-साथ आर्मी और असम राइफल्स को उतार दिया गया है। फ्लैग मार्च कर रहे हैं लेकिन हत्या, आगजनी, पुलिस और सुरक्षाबलों पर हमले, लूट की घटनाएं अब भी हो रही हैं। अबतक करीब 10-12 हजार लोग राज्य से पलायन कर चुके हैं।

कुकी समुदाय राज्य सरकार की तरफ से कराए जा रहे लैंड सर्वे से नाराज है। ये सर्वे चुराचंदपुर-खोउपुम प्रोटेक्टेड फॉरेस्ट इलाके में किया गया था। प्रोटेक्टेड फॉरेस्ट रीजन करीब 490 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में है और ये चुराचंदपुर, बिष्णुपुर और नोनी जिलों में फैला हुआ है। कुकी समुदाय लैंड सर्वे का विरोध कर रहा है और उसकी मांग है कि सरकार 1966 के उस आदेश को रद्द करे जिसमें आदिवासी इलाकों को प्रोटेक्टेड/रिजर्व्ड फॉरेस्ट यानी आरक्षित वन घोषित किया गया है। उनका कहना है कि इसके जरिए उनसे उनका जंगल छीना जा रहा है।

हिंसा में अबतक 54 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है। असली आंकड़े आधिकारिक से ज्यादा भी हो सकते हैं। इसके अलावा करीब 100 लोग जख्मी हुए हैं। मरने वालों में इनकम टैक्स अफसर लेमिनथांग हाओकिप भी हैं। सीआरपीएफ के एक कोबरा कमांडो की भी हिंसा में मौत हुई है। सेना के मुताबिक, अबतक 13 हजार लोगों को सुरक्षित निकालकर आर्मी कैंप पहुंचाया गया है।