आज हम आपको पोर्न अपराध के बारे में जानकारी देने वाले हैं! पोर्न फिल्में यानी वो एडल्ट मैटिरियल जिसे कानूनी तौर पर देखने की अनुमति नहीं होती, लेकिन बावजूद इसके पोर्न फिल्मों का कारोबार काफी बड़ा है। हजारों लाखों लोग रोज छुप-छुपकर पोर्न साइट्स या पोर्न फिल्में देखते हैं। इसे ह्यूमन साइकी ही कहा जाएगा कि बैन होने के बावजूद ये इंडस्ट्री इतनी बड़ी है। एक डाटा के मुताबिक साल 2021 में भारत में पोर्न इंड्रस्टी का कारोबार 3500 करोड़ से ज्यादा का था। ये कारोबार लगातार बढ़ता ही जा रहा है। सोचिए कितने लोग रोज पोर्न साइट्स पर मजा लेते हैं, लेकिन ये सब होता है छुपकर। वजह दोनों है सामाजिक और कानूनी, लेकिन अब आप ये जानकर हैरान रह जाएंगे कि पोर्न देखना कोई जुर्म नहीं है।जी हां अगर आप अकेले इस तरह के अश्लील वीडियो या फिर कोई पोर्न फिल्म देख रहे हैं तो कानून आपको सजा नहीं देगा। यहां तक सड़क किनाने भी आप ऐसे पोर्न वीडियो देख सकते हैं, लेकिन एकदम अकेले। केरल हाईकोर्ट ने एक फैसला सुनाया है जिसमें कहा गया है कि अकेले पोर्न फिल्में देखना अपराध के दायरे में नहीं आता।
दरअसल केरल हाईकोर्ट के पास एक मामला गया था। केस की सुनवाई कर रहे थे जस्टिस पी वी कृष्णन। कोच्चि के रहने वाले एक शख्स को निचली अदालत ने पोर्न फिल्म देखने का दोषी पाया था। ये शख्स सड़क पर खड़ा होकर अपने मोबाइल में अश्लील फिल्में देख रहा था। लोअर कोर्ट ने इस शख्स को दोषी पाया, लेकिन इस शख्स ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और जस्टिस पी वी कृष्णन इसी केस की सुनवाई कर रहे थे।
पीवी कृष्णन ने निचली अदालत के फैसले को बदल दिया। कृष्णन ने कहा कि आईपीसी की धारा 292 के तहत ये अपराध नहीं है। कृष्णन ने कहा कि ये शख्स सड़क किनारे जरूर था, लेकिन फिल्म अकेले ही देख रहा था इसलिए इसे अपराधी नहीं माना जा सकता। हां इस तरह के वीडियो सर्कुलेट करना या फिर लोगों को दिखाना अपराध जरूर है। यानी अपनी प्राइवेसी में अगर कोई इस तरह की एडल्ट फिल्में या फिर एडल्ट कंटेंट देखता है तो उसे जेल नहीं होगी। जस्टिस कृष्णन ने कहा कि पोर्न देखना कोई नई चीज नहीं है ये सालों से होता आ रहा है।
एडल्ट तस्वीरें, एडल्ट वीडियो या फिर इस तरह की फिल्मों को अगर कोई किसी और को बांटता हुआ पाया जाता है तो सजा के दायरे में आएगा और इसे अपराध माना जाएगा। पोर्न वीडियो के लिए प्राइवेसी जरूरी है। अपने घर में अकेले बैठकर इस तरह के वीडियो देखने पर किसी को एतराज नहीं हो सकता, लेकिन पब्लिक प्लेसस पर आप इस तरह के वीडियो देखते हैं तो आपको प्राइवेसी का ख्याल रखना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने उस अर्जी को खारिज कर दिया है जिसमें याचिकाकर्ता ने कहा था कि पोर्नोग्रफी और सेक्शुअल क्राइम के संबंध का परीक्षण किया जाए। याची ने कहा था कि हाल में असम में एक मामले की छानबीन में यह बात सामने आई कि छह साल की लड़की का मर्डर चार बच्चों ने किया था और ये चारों पोर्न देखने के आदी थे। इसके बाद वहां गाइडलाइंस बनाई गईं कि जांच अधिकारी रेप और सेक्शुअल ऑफेंस के केस में तय की गई मानक प्रक्रियाओं का पालन करें। याचिकाकर्ता ने एनसीआरबी के आंकड़े भी पेश किए थे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अर्जी पर सुनवाई से इनकार कर दिया और कहा कि हर केस में एक जैसा स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिजर कैसे हो सकता है। बहरहाल पोर्नोग्रफी और चाइल्ड पोर्नोग्रफी के मामले में सुप्रीम कोर्ट में पहले से मामला पेंडिंग है और पहले के आदेश भी हैं। लेकिन पोर्न साइट्स पर रोक लगाने की कवायद भी चल रही है और इस पर भी बहस हो रही है कि पोर्न साइट्स देखने वालों की मानसिक स्थिति पर क्या असर पड़ता है।
सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने पहले तो कहा था कि पोर्न साइट्स को ब्लॉक करना मुश्किल है, लेकिन बाद में उसे ब्लॉक करने की बात कही। सुप्रीम कोर्ट में 2015 में 857 ऐसी पोर्न साइट्स की लिस्ट पेश की गई जिन्हें ब्लॉक करना था। केंद्र सरकार ने पहली अगस्त 2016 को कहा कि उसने इन साइट्स को ब्लॉक कर दिया है। लेकिन बाद में कहा कि उसने सिर्फ चाइल्ड पोर्नोग्रफी वाली साइट्स ब्लॉक की हैं। उसने यह भी कहा था कि तमाम तरह की पोर्न साइट्स को ब्लॉक करना मुश्किल है। उस वक्त अटॉर्नी जनरल ने कहा था कि यह ग्रे एरिया है और इससे ज्यादा संभव नहीं है। उनका कहना था कि पोर्न साइट्स देखना या न देखना व्यक्तिगत मामला है और सरकार मॉरल पुलिसिंग नहीं करना चाहती। कोई अगर अपने घर में इसे देखता है तो कैसे रोका जा सकता है।
दो साल पहले जनवरी 2020 में कमलेश वासवानी ने सुप्रीम कोर्ट में नए सिरे से हलफनामा दायर कर कहा कि 3 करोड़ बच्चे और 7 करोड़ वयस्क पोर्न विडियो की लत के शिकार हैं। इस कारण इनमें हिंसक प्रवृत्ति पैदा हो रही है। उनका कहना था कि वेब सीरीज के जरिए भी सेक्शुअल और हिंसा से जुड़ा कंटेंट परोसा जा रहा है। हलफनामे में वासवानी ने कहा है कि पोर्न विडियो देखने की लत शराब और ड्रग्स की तरह है। उनका कहना था कि चाइल्ड पोर्नोग्रफी और पोर्नोग्रफी पर रोक के लिए सुप्रीम कोर्ट ने पांच साल पहले आदेश दिया था, लेकिन अब भी इंटरनेट पर पोर्नोग्रफी से संबंधित कंटेंट मौजूद हैं।