Monday, December 23, 2024
HomeIndian Newsआखिर छत्तीसगढ़ से क्यों खत्म नहीं हो रहे नक्सलवादी?

आखिर छत्तीसगढ़ से क्यों खत्म नहीं हो रहे नक्सलवादी?

छत्तीसगढ़ से नक्सलवादी खत्म होने का नाम नहीं ले रहे हैं! छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में आज फिर नक्सलियों ने हमारे वीर जवानों के खून की होली खेली है। आईईडी ब्लास्ट में 10 जवान वीरगति को प्राप्त हो गए। साथ ही, जवानों को ले जा रहे वाहन के ड्राइवर की भी जान चली गई। आईई़डी इतना बड़ा और ताकतवर था कि सड़क पर काफी लंबा, चौड़ा और गहरा गड्ढा हो गया। इसे देखते ही कोई भी समझ जाएगा कि नक्सलियों ने कितने गुप्त तरीके से, कितनी बड़ी साजिश को अंजाम दिया है। हैरानी की बात है कि जहां हमारे जवानों पर हमला हुआ है, उस दंतेवाड़ा इलाके में लंबे समय से नक्सल विरोधी अभियान चल रहे हैं, फिर भी वहां गाहे-बगाहे बड़ी वारदातें सामने आ ही जाती हैं। ऐसा भी नहीं है कि नक्सली सिर्फ दंतेवाड़ा के इलाके तक ही सीमित रह गए हैं, बस्तर, बीजापुर और सुकमा की पहाड़ियों से भी उन्हें अब तक पूरी तरह उखाड़ा नहीं जा सका है। 25 मई, 2013 को इसी सुकमा की झीरम घाटी में 200 नक्सलियों ने कांग्रेस पार्टी की रैली पर हमला कर दिया था जिसमें तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस प्रमुख नंद कुमार पटेल, पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल, छत्तीसगढ़ विधानसभा में विपक्ष के पूर्व नेता महेंद्र कर्मा सहित 32 लोगों की जान चली गई थी। इस खौफनाक वाकये को 200 से ज्यादा नक्सलियों ने अंजाम दिया था। फिर 2 अप्रैल 2021 का वो दिन, जब सुरक्षा बलों के 2,000 जवानों ने एक साथ बीजापुर और सुकमा के जंगलों में धावा बोल दिया। नक्सल विरोधी इस बड़े अभियान में भी 22 जवानों को जान गंवानी पड़ी थी। कुल मिलाकर कहें तो छत्तीसगढ़ की धरती नक्सल नरसंहारों से लाल होती रहती है। सीपीआई पर आज से करीब 14 साल पहले बैन लग गया था। उसके एक साल बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने नक्सलवाद को ‘देश की सबसे बड़ी आंतरिक सुरक्षा चुनौती’ बताया था। वर्ष 2000 के आसपास नक्सलवाद अपने चरम पर था। तब देश के 200 जिले नक्सल प्रभावित थे। उस वक्त भी नक्सलियों का हेडक्वॉर्टर बस्तर के अबूझमार में हुआ करता था और नक्सलियों ने 700 किमी का गलियारा बना लिया था। वो एक जगह हमला करते और गलियारे के सहारे तुरंत इलाका बदल लेते। तब वो भारत से नेपाल तक नक्सल गलियारा बनाने का ख्वाब देख रहे थे। हालांकि, तब से अब की स्थिति में बहुत अंतर है। आज नक्सली छिटपुट इलाकों में सीमित रह गए हैं। छत्तीसगढ़ के बस्तर, सुकमा आदि उनमें से एक हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर छत्तीसगढ़ से नक्सलियों के पांव क्यों नहीं उखड़ रहे?

छत्तीसगढ़ की भौगोलिक सरंचना नक्सिलयों को छिपने, साजिश रचने और उसे अंजाम तक पहुंचाने के लिहाज से काफी मुफीद है। पहाड़ों से घिरे इस प्रदेश में बड़े चुनौतीपूर्ण पठारी इलाके भी हैं। बीजापुर, सुकमा, दंतेवाड़ा और नारायणपुर जैसे इलाकों में नक्सलियों की तूती बोला करती थी। इस कारण वहां सुरक्षा बलों के कैंप लगाने पड़े। लेकिन उनकी सबसे बड़ी चुनौती स्थानीय लोगों के बीच भरोसा पैदा करने की रही है। पुलिस-प्रशासन को अच्छे से पता है कि बच्चे से लेकर जवान और बूढ़े तक, क्या पुरुष और क्या महिलाएं, सभी माओवादियों के लिए काम करते हैं। वो नक्सलियों को सुरक्षा बलों की हर गतिविधि से अवगत करवाते हैं। यह सब नक्सलियों की तरफ से दशकों तक आम लोगों की ब्रेन वॉशिंग किए जाने का नतीजा है।

दूर-दराज की बस्तियों वो लोग भी नक्सली नेटवर्क का हिस्सा हैं जिन्होंने हथियार नहीं उठाया है। बस्तियां की बस्तियां नक्सलियों के अंडरग्राउंड नेटवर्क की तरह काम करती हैं। नक्सल हमले के जवाब में जब सुरक्षा बल इन बस्तियों में धर-पकड़ की कार्रवाई करते हैं तो नक्सलियों को यह साबित करने में आसान हो जाता है कि सरकारी अमला ग्रामीणों को कुचलने में जुटा है। इन इलाकों के पिछड़ेपन, विकास कार्यों की धीमी गति और ऊपर से सिक्यॉरिटी फोर्सेज के कैंप, ये सभी भोले-भाले ग्रामिणों को शासन-प्रशासन के खिलाफ भड़काने के लिए पर्याप्त होते हैं। अपने ही इलाके में पुलिस और सुरक्षा बलों की बार-बार टोका-टाकी से उन्हें बुरा महसूस है। वो इसकी भड़ास नक्सलियों के साथ सांठगांठ करके निकालते हैं। ऐसे में सुरक्षा बलों के लिए इंटेलिजेंस जुटाने की बड़ी चुनौती हो जाती है।

जब बड़े पैमाने पर अभियान छेड़े जाते हैं तो उनकी भनक नक्सलियों को नहीं लगे, ऐसा संभव नहीं हो पाता है। अचानक सुरक्षा बलों की आवक से ग्रामीण पूरा माजरा समझ जाते हैं और सारा इन्फॉर्मेशन नक्सलियों तक पास हो जाता है। इस कारण वो सुरक्षा बलों के अभियान के खिलाफ अपनी पूरी ताकत से लड़ पाते हैं। तब केवल नक्सली ही नहीं, सुरक्षा बलों को भी भारी नुकसान उठाना पड़ता है। दूसरी तरफ, नक्सल इलाकों में पहुंचना अपने आप में बहुत बड़ी चुनौती है। जवानों को उतने उतार-चढ़ाव भरे सघन जंगलों में 30 किलो से भी ज्यादा वजन के साथ 25-30 किमी पैदल चलना पड़ता है। अभियान के वक्त सीआरपीएफ, कोबरा, छत्तीसगढ़ पुलिस, एसटीएफ और डीआरजी के बीच समन्वय और संतुलन बनाए रखने की भी बड़ी चुनौती होती है। ऐसे बीहड़ इलाके में तैनात जवानों को हर तीसरे महीने में 10 दिन की छुट्टी मिलती है। उसे कैंप से निकलकर बस, ट्रेन, प्लेन पकड़ने में ही दो-तीन दिन लग जाते हैं। फिर लौटने में दो-तीन दिन। ऐसे में वो अपने घर पर सिर्फ 2 से 3 दिन रह पाते हैं। यही वजह है कि छत्तीसगढ़ के घोर नक्सल प्रभावित इलाकों में तैनात अर्धसैनिक बलों के जवानों के आपा खोकर एक-दूसरे को ही मार देने की घटना सामने आ जाती है।

इन सब कठिनाइयों से इतर गंदी राजनीति भी नक्सलियों के सफाए की राह की बड़ी बाधक है। बस्तर इलाके में आने वाले सात जिले साइज में करीब-करीब केरल के बराबर हैं। इनमें विधानसभा की 12 सीटें आती हैं। यहां चुनावी मुद्दों में विकास कार्य कभी शामिल ही नहीं हो पाता है। दूसरी तरफ, जब कोई नक्सली हमला होता है तो तुरंत राष्ट्रवाद का मुद्दा गरमा जाता है। इससे सुरक्षा बलों पर दबाव बनता है कि वो तुरंत कोई बड़ी कार्रवाई करें। देश का गुस्सा शांत करने और नक्सलियों को यह बताने के लिए कि उसके किए की सजा तुरंत भुगतनी होगी, ऐसा करना पड़ता है, भले ही उसका परिणाम जो भी हो। वर्ष 2006 में केपीएस गिल को प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह का विशेष सुरक्षा सलाहकार नियुक्त किया गया था। उन्होंने कुछ दिनों बाद ही यह कहते हुए पद छोड़ दिया कि उन्हें कुछ करने को नहीं, सिर्फ सैलरी लेने को कहा गया। सच्चाई यह भी है कि लोकल नेता तो उन्हीं नक्सलियों के बीच से ही आते हैं। माओवादियों को नजराना दिए बिना तो कोई ठेकेदार भी उस इलाके में कोई काम नहीं कर सकता है। तब लोकल नेता ही नक्सलियों के साथ डीलिंग में काम आते हैं। कुल मिलाकर कहें तो छत्तीसगढ़ से नक्सलियों के संपूर्ण सफाए का सपना पूरा करना बहुत आसान नहीं जान पड़ता है।

Disclaimer:

Mojo Patrakar may publish content sourced from external third-party providers. While we make every reasonable effort to verify the accuracy, reliability, and completeness of this information, Mojo Patrakar does not guarantee or endorse the views, opinions, conclusions, or authenticity of content provided by these third-party entities. Such content is presented solely for informational purposes, and it is not intended to substitute professional advice or to serve as a comprehensive basis for decision-making.

Mojo Patrakar expressly disclaims any liability for errors, omissions, or inaccuracies that may arise from third-party content, as well as any reliance readers may place upon it. Users are strongly encouraged to conduct independent verification and consult with qualified professionals as necessary before making any decisions based on information obtained through Mojo Patrakar.

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments