इलाहाबाद विश्विद्यालय में इस समय बड़ा आंदोलन चल रहा है. कारण है फीस वृद्धि और वह भी 400 प्रतिशत. जो छात्र बीए पहले सिर्फ 975 रूपये में करते थे उनको अब 3901 रूपये देने होंगे और अगर लैब का विषय है तो फीस हो जायेगी 4151 रूपये. बीएससी की फीस भी 1125 से बढ़कर 4151 रूपये हो गया है. विश्वविद्यालय का तर्क है कि हम फीस ज्यादा इसलिए कर रहे हैं क्योंकि हम सरकार पर ज्यादा निर्भर नही रहना चाहते. और आत्मनिर्भर बनने के लिए फंड की जरूरत है उसी फंड का नतीजा है फीस वृद्धि. छात्रों का कहना है कि गांव से आने वाले बच्चे जो गरीब होते हैं उनके लिए यह फीस बहुत ज्यादा हो जायेगी. विश्वविद्यालय में अलग-अलग दल विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं जिसमे एनएसयूआई (NSUI) छात्र संघ भवन के अंदर तो वहीं समाजवादी छात्र सभा लाल पदम धर मूर्ति के सामने धरना दे रहा है. जबकि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) पूर्णकालिक अनशन इलाहाबाद विश्वविद्यालय डीएसडब्ल्यू कार्यालय के सामने जारी रखा है. हमने विश्वविद्यालय के कुछ छात्र से बात की है आइए जानते है वह क्या कहते हैं.
क्या कहना है वहाँ के छात्रों का
विश्वविद्यालय के छात्र आयुष यादव कहते हैं कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय के फीस वृद्धि पर हमारा मत यह है कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय में लगभग 70- 80% बच्चे ग्रामीण क्षेत्र के गरीब किसान परिवार से होते है
जो अच्छी पढ़ाई और कम फीस के वजह से अपना नाम इलाहाबाद विश्वविद्यालय मे लिखवाते है लेकिन विश्वविद्यालय की बढी हुए फीस से ग्रामीण गरीब परिवार के बच्चो पर बहुत बुरा प्रभाव पडेगा जो कम फीस में अच्छी पढ़ाई करते थे वो अब नही कर पायेंगे.
विश्वविद्यालय से एमए की पढ़ाई करने वाले केतन यादव कहते हैं कि आजकल फीस वृद्धि का फैशन चल पड़ा है. यही काम पहले जेएनयू में हुआ और अब इलाहाबाद विश्वविद्यालय में हो रहा है. सरकारें और प्रशासन यह स्पष्ट करे कि उनकी प्राथमिकता क्या है, अमीरों को और अमीर करना या फिर गरीब बच्चों को अच्छी और सस्ती शिक्षा देना.
विश्वविद्यालय से बीए करने वाले संदीप ने कहा कि ‘पूर्व का आक्सफोर्ड ‘ कहे जाने वाले इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रशासन का तानाशाही रवैया विगत कुछ वर्षों में देखने को मिला है. इसका एक उदाहरण फीस वृद्धि के रूप में देखने को मिल रहा है. छात्रों द्वारा आंदोलन और प्रदर्शन चलाया जा रहा है पर विश्वविद्यालय प्रशासन इस आंदोलन को समाप्त करने के लिए अनेक हथकंडे अपना रहा है. किसी भी राष्ट्र या सरकार का उद्देश्य फ्री शिक्षा और स्वास्थ्य होना चाहिए पर प्रशासन का निर्णय और इरादा कुछ और है. फीस वृद्धि के कारण गरीब तथा पिछड़े वर्ग के बच्चे उच्च शिक्षा नही पा सकेंगे. पहले इलाहाबाद विश्वविद्यालय IAS, PSC का गढ़ हुआ करता था लेकिन अब प्रशासन के असफल नीतियों के कारण आज NIRF-2022 की रैंकिंग में 200 रैंक में भी अपना जगह नही बना पाया है. शिक्षा और स्वास्थ्य का निजीकरण किसी भी राष्ट्र के लिए अहितकर है.
इलाहाबाद विश्विद्यालय की एक कहानी बताते हुए वहां के पूर्व छात्र गौरव ने बताया कि एक बार एक लड़का स्कॉलरशिप भरने गया था. उसके पास चप्पल के भी पैसे नहीं थे उसको 400 की बहुत जरूरत थी. फिर इन दोस्तों ने मदद की. आज उसी विश्वविद्यालय में 400% फीस बढ़ गई. क्या टूटे चप्पलों वाला वह गरीब पढ़ने का सपना पूरा कर पाएगा? इलाहाबाद में कोई पार्ट टाइम नौकरी भी नहीं जिससे कोई अपनी पढ़ाई पूरी कर सके. सिर्फ मुंह से कह देने से हम विश्वगुरु नहीं बन जाएंगे. इस दर्द को वही समझ सकते हैं जिन्होंने हजार रुपए में साल भर की पढ़ाई कर ली. कुछ हजार में हॉस्टल में रहे, 100 रुपए का आईएएस फॉर्म भरकर आज अधिकारी हैं. एक झोपड़पट्टी का भी लड़का अधिकारी बन सके ऐसा ही तो भारत हमें चहिए. मैं तो कहता हूं केंद्रीय विश्वविद्यालयों और स्कूलों में मुफ्त में शिक्षा मिले, क्या ये इतना मुश्किल है? सच तो यह है कि पूंजीवाद की होड़ में सरकारें भूल जाती हैं कि देश के विकास में गरीबों का भी बड़ा योगदान है. युवा पढ़ेगा नहीं तो देश कभी विकास नहीं कर पाएगा. लेकिन गरीबी और तंगी को वही समझ सकता है जिसने उस जीवन को करीब से देखा और जिया है.
मानस शुक्ला ने एक अलग और अच्छा तर्क दिया उन्होंने कहा कि मैं फीस वृद्धि को गलत नही मानता क्योंकि यह वृद्धि 100 साल के बाद की गई है. छात्र का कहना है कि प्रशासन को इस मामले में ध्यान देना चाहिए कि फीस एक सीमित मात्रा में बढ़े.
विश्वविद्यालय के तर्क और छात्रों के तर्क दोनों आपको सामने है अब आप समझिए किसका तर्क ज्यादा तर्कपूर्ण है.