संजय राऊत के गिरफ्तार होने की भी एक अलग ही कहानी है! मुंबई के पात्रा चॉल घोटाले में मनी लॉन्ड्रिंग केस में फंसे शिवसेना नेता संजय राउत ईडी की गिरफ्त में हैं। राउत की गिरफ्तारी पर जहां शिवसेना उबली हुई है वहीं, बीजेपी आरोप लगा रही है कि इस मामले में बड़ा घोटाला हुआ है। इन आरोप-प्रत्यारोप में पात्रा चॉल के उन लोगों की आवाज मद्धम पड़ गई है जिनका कभी वहां फलता-फूलता आशियाना था। उन्हें बड़े-बड़े सपने दिखाए गए। इतना भरोसा दिया गया कि वो अपना आशियान खाली करने पर राजी हो गए। 47 एकड़ में बसे इस इलाके में कुल 672 घर थे। उत्तरी मुंबई का यह उपनगरीय इलाका खुशहाल था। टिन के चदरे वाली चॉल में रहने वाले लोगों को ऐसे सतरंगी सपने दिखाए गए कि वो कुछ समय के लिए अपने छत को भूल बेबस जिंदगी जीने को तैयार हो गए। लेकिन हाय रे किस्मत! लाखों सपने संजोने वाले लोगों को अभी तक इस जमीन पर अपना आशियाना नहीं मिला है। 2007 का साल था। महाराष्ट्र हाउसिंग एंड एरिया डिवेलपमेंट अथॉरिटी (म्हाडा) ने पात्रा चॉल में 500 से ज्यादा परिवार रहते थे। इसी जमीन पर फ्लैट बनाकर वहां रह रहे लोगों को देने थे। इसके लिए गुरु आशीष कंस्ट्रक्शन कंपनी (GACPL) से करार किया गया। इस कंपनी के साथ हुए समझौते के अनुसार, इस भूखंड पर 3,000 फ्लैट बनने थे। इसमें से 672 फ्लैट वहां चॉल में रहने वाले लोगों को दिए जाने थे। यहां फ्लैट बनाने वाली कंपनी को जमीन बेचने का अधिकार नहीं था। लेकिन आरोप है कि कंपनी ने समझौते का उल्लंघन करते हुए इस जमीन को 9 अलग-अलग बिल्डर्स को 1,034 करोड़ में बेच दिया। फ्लैट तो एक भी नहीं बना।
पात्रा चॉल में रहने वाले जिन लोगों ने एक अदद आशियाने की तलाश में अपने टिन के चादर का दरकता घर खाली करने को राजी हो गए थे, उन्हें मायूसी हाथ लगी। म्हाडा से हुए समझौते के तहत प्रोजेक्ट पूरा होने तक इन सभी 672 लोगों को GACPL को हर महीने रेंट भी देना था। हालांकि, इन सभी को महज 2014-15 तक ही रेंट दिया गया। इसके बाद टिन के छत को छोड़ किराएदार बने लोगों ने किराया नहीं मिलने की शिकायत करने लगे। यही नहीं, वो प्रोजेक्ट में देरी की शिकायत को लेकर दर-दर भटकने लगे। GACPL के रेंट नहीं देने और अनियमितताओं के कारण म्हाडा ने 12 जनवरी 2018 को उसके टर्मिनेशन नोटिस भेज दिया। इस नोटिस के खिलाफ 9 बिल्डर बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर दी। इन सब चक्करों में प्रोजेक्ट का काम रुक गया और बेचारे चॉल के 672 लोगों को कुछ नहीं मिलाहालांकि, इन सभी को महज 2014-15 तक ही रेंट दिया गया। इसके बाद टिन के छत को छोड़ किराएदार बने लोगों ने किराया नहीं मिलने की शिकायत करने लगे। यही नहीं, वो प्रोजेक्ट में देरी की शिकायत को लेकर दर-दर भटकने लगे। GACPL के रेंट नहीं देने और अनियमितताओं के कारण म्हाडा ने 12 जनवरी 2018 को उसके टर्मिनेशन नोटिस भेज दिया। इस नोटिस के खिलाफ 9 बिल्डर बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर दी। इन सब चक्करों में प्रोजेक्ट का काम रुक गया और बेचारे चॉल के 672 लोगों को कुछ नहीं मिला।
म्हाडा के इस सबसे बड़े प्रोजेक्ट में कुछ अन्य मुंबईकरों ने भी अपने सपने का आशियाना खरीदने का सपना देखा था। इसी चॉल के करीब मिडोस नामक इमारत बननी थी। सैकड़ों लोगों ने यहां फ्लैट बुक भी करवाए थे। इस इमारत को 2015 तक बनकर तैयार हो जाना था। लेकिन डेडलाइन खत्म होने के बाद भी फ्लैटबायर्स के सपने पूरे होते नहीं दिख रहे हैं। GACPL ने न तो यहां 672 लोगों के लिए फ्लैट बनाए न ही मिडोज प्रोजेक्ट को शुरू किया। बिल्डर ने मिडोज प्रोटेक्ट को ए, बी और सी विंग का काम केवल दो मंजिल तक किया। डी विंग का काम केवल प्लिंथ लेवल तक हुआ। ई, एफ और जी विंग में तीसरे माले तक निर्माण हुआ। ये सभी इमारतें 27 से 33 फ्लोर की बननी थीं। मिडोज फ्लैटबायर्स ने बताया कि 2010-12 तक तो यहां कोई काम ही नहीं हुआ। 2012 में निर्माण कार्य फिर शुरू हुआ लेकिन उसे फिर रोक दिया गया।
मिडोज में फ्लैट खरीदने वाली बेटी रुखसाना रियाज शेख के 70 वर्षीय पिता जैतून अब्बास ने बताया कि यूएई में रहने वाली उनकी बेटी शेख ने जी विंग में 2009 में 2.5 बीएचके फ्लैट को बुक कराया था। बिल्डर ने 2015 में इसका पजेशन देने का वादा किया था। अब्बास ने बताया कि उनकी बेटी ने 50 प्रतिशत पैसे दे भी दिए थे। उसके बाद वह यूएई चली गई। अब मैं बिल्डर के ऑफिस के चक्कर लगा रहा हूं ताकि ये पता चल पाए कि आखिर इस बिल्डिंग का निर्माण कब शुरू हो पाएगा।