एक समय ऐसा था जब एक बार ओलंपिक के खिलाड़ियों का कत्लेआम हुआ था! म्यूनिख नरसंहार को पांच दशक हो चुके हैं पर जेहन से वह तस्वीर नहीं जाती। ओलिंपिक गांव की बालकनी में नकाब पहने खड़ा फलस्तीनी आतंकवादी जैसे पूरी दुनिया को मुंह चिढ़ा रहा था। खेल गांव में खिलाड़ी बनकर घुसे आतंकियों ने रक्तपात से अपनी मांगें बनवानी चाही थीं मगर सामने इजरायल था। झुका नहीं। हालांकि जर्मनी ने बंधकों को ले जाने के लिए आतंकियों को बस मुहैया कराई मगर इजरायल ने रेस्क्यू मिशन लॉन्च कर दिया। खुद पर हमला होते देख आतंकियों ने इजरायली ओलिंपिक टीम पर अंधाधुंध गोलियां बरसा दीं। 5-6 सितंबर 1972 के बीच इजरायली टीम के 11 खिलाड़ियों का बेरहमी से कत्ल कर दिया गया। पूरी दुनिया शोक में डूबी थी और इजरायली बदले की आग में जल रहे थे। जिम्मा सौंपा गया मोसाद को, इजरायल की खुफिया एजेंसी। मोसाद ने करीब-करीब दो दशक तक एक-एक आतंकवादी को चुन-चुनकर मारा। 2005 में मोसाद के इसी ऑपरेशन पर ‘म्यूनिख’ नाम की फिल्म बनी।
घुस गए आतंकी
जर्मनी का म्यूनिख शहर 1972 के ओलिंपिक खेलों के आयोजन के लिए चुना गया था। हिटलर की सरपरस्ती में यहूदियों के नरसंहार के बाद यह पहला मौका था जब जर्मनी में ओलिंपिक खेल हो रहे थे। 5 सितंबर की सुबह ‘ब्लैक सेप्टेम्बर’ नाम के फलस्तीनी समूह के 8 आतंकवादी खेल गांव में घुसे। ट्रैकसूट पहने खिलाड़ियों के अंदाज में वे उस इमारत में दाखिल हुए जहां इजरायली दल को ठहराया गया था।सारे आतंकी इजरायली एथलीट्स को खोजने में लग गए। एक-एक कमरे की तलाशी ली गई। इस बीच, इजरायल की रेसलिंग टीम के कोच मोसे वेनबर्ग ने किचन से चाकू उठाकर आतंकियों का मुकाबला करना चाहा मगर उन्हें गोली मार दी गई। गोलियों की बारिश के बीच कई खिलाड़ी भाग निकले।अचानक हुए हमले में दो खिलाड़ी मारे गए जबकि नौ को आतंकियों ने बंधक बना लिया। इजरायली खिलाड़ियों को म्यूनिख में बंधक बनाए जाने की खबर पूरी दुनिया में फैल गई। इस वक्त तक सबको यही पता था कि 11 खिलाड़ी बंधक बनाए गए हैं, जो कि सच नहीं था।
उसी इमारत में 9 इजरायली खिलाड़ियों को बंधक बनाने के बाद आतंकियों ने अपनी मांगें सामने रखीं। वे इजरायल की जेलों में कैद 234 फिलिस्तीनियों की रिहाई चाहते थे। इजरायल ने साफ इनकार कर दिया। आतंकियों ने दबाव बढ़ाने के लिए, जिन दो खिलाड़ियों की मौत हो चुकी थी, उनके शव नीचे फेंक दिए। यह संदेश था कि अगर मांग नहीं मानी तो और लाशें गिरेंगी। इजरायल की तत्कालीन प्रधानमंत्री गोल्डा मेयर ने आतंकवादियों के आगे घुटने टेकने से दो टूक मना कर दिया। इधर, जर्मनी अपने स्तर से पूरे संकट को सुलझाने की कोशिश में था।
जर्मनी ने आतंकवादियों की यह बात मान ली कि वे बंधकों को साथ लेकर कायरो जाएंगे। उन्हें बस मुहैया कराई गई जिसमें बंधकों को लेकर वे पास के एयरपोर्ट पहुंचे। इसी बीच में बंधकों को छुड़ाने की योजना बनाई गई। वेस्ट जर्मन पुलिस की कोशिशें नाकाम साबित हुईं। जैसे ही हथियारबंद गाड़ियों पर आतंकियों की नजर पड़ी, वे घबरा गए। 6 सितंबर की रात करीब 12 बजकर 4 मिनट पर एक आतंकवादी ने एके-47 राइफल उठाई और पॉइंट-ब्लैंक रेंज से इजरायली एथलीट्स पर गोलियां बरसां दीं। बंधक बनाए गए सभी इजरायली एथलीट्स को मौत के घाट उतार दिया गया। पुलिस ने भी जवाब में गोलियां बरसाईं और सारे आतंकवादियों को मार गिराया। जर्मन पुलिस ने तीन संदिग्धों को मौके से पकड़ा जिनकी तस्वीरें अगले स्लाइड में।
जर्मन पुलिस के हत्थे ये तीन संदिग्ध लगे। उधर, इजरायल ने बदले की प्लानिंग शुरू कर दी थी। तत्कालीन पीएम गोल्डा मेयर ने मोसाद की ओर से सुझाए एक ऑपरेशन को मंजूरी थी। नाम था Wratch Of God, दुनिया इस ऑपरेशन को Operation Bayonet के नाम से भी जानती है। मोसाद ने अगले 20 साल तक म्यूनिख हमले से जुड़े आतंकवादियों को चुन-चुनकर मार गिराया। मशहूर फिल्म डायरेक्टर स्टीवन स्पीलबर्ग ने मोसाद के इसी ऑपरेशन पर ‘म्यूनिख’ नाम की फिल्म बनाई जो 2005 में रिलीज हुई थी।
अप्रैल 1973 में मोसाद ने बेहद खतरनाक मिशन को अंजाम दिया। मोसाद की हिटलिट में शामिल ज्यादातर लोग लेबनान में कड़ी सुरक्षा के बीच रहते थे। मोसाद ने ऑपरेशन ‘स्प्रिंग ऑफ यूथ’ चलाकर उन्हें निशाना बनाया। 9 अप्रैल, 1973 की रात इजरायली कमांडोज को पानी और जमीन के रास्ते बेरूत पहुंचाया गया। वहां मौजूद मोसाद एजेंट से कॉन्टैक्ट के बाद कमांडो टीम ने पूरे शहर में छापे मारे। इजरायली पैराट्रूपर्स की एक टीम ने पॉप्युलर फ्रंट फॉर लिब्रेशन ऑफ फिलिस्तीन (PFLP) के हेडक्वार्टर पर हमला बोला। इस ऑपरेशन में मोहम्मद यूसुफ अल नज्जर, कमल अदवान और कमल नासिर को मार गिराया गया।बदले की आग में जल रहे मोसाद एजेंट्स से एक चूक हो गई। नरसंहार के करीब एक महीने बाद मोसाद को इनपुट मिला कि हमले का मास्टरमाइंड अली हसन सलामे नॉर्वे के लिलेहैमर में रह रहा है। 21 जुलाई, 1973 को मोसाद के एजेंटों ने हमला किया मगर जिसे मारा वह मोरक्को का एक वेटर अहमद बौचिकी था। बौचिकी का म्यूनिख हमले और ब्लैक सेप्टेम्बर से कुछ लेना-देना नहीं था। नॉर्वे पुलिस ने मोसाद के छह एजेंट्स को अरेस्ट कर लिया। मोसाद का मानना है कि सलामत ने उनको चकमा दिया था। नॉर्वे पुलिस की जांच में यूरोप भर में फैले मोसाद के एजेंटों का पता चला। इसके बाद इजरायल पर अंतरराष्ट्रीय दबाव पड़ा और कुछ समय के लिए ऑपरेशन Wrath Of God को टाल दिया गया।
करीब पांच साल बाद इजरायल ने Wrath OF God को फिर शुरू किया। ‘रेड प्रिंस’ के नाम से मशहूर अली हसन सलामे का पता मोसाद ने खोज ही निकाला। वह बेरूत में ही रह रहा था। एरिका मैरी चैम्बर्स नाम की मोसाद एजेंट ब्रिटिश पासपोर्ट पर लेबनान पहुंची। एरिका ने उसी गली में किराये पर कमरा लिया जिससे होकर सलामे आता-जाता था। कुछ वक्त में मोसाद के दो और एजेंट्स बेरूत पहुंच गए। गली में एक कार खड़ी कर दी गई। कार में विस्फोटक सामग्री भरी थी। कार को ऐसी जगह पर खड़ा किया गया था कि कमरे से दिख सके। 22 जनवरी, 1979 को जब सलामे और उसके बॉडीगार्ड्स कार में गली के भीतर दाखिल हुए तो विस्फोटकों वाली गाड़ी को मोसाद ने रेडियो डिवाइस से उड़ा दिया। आखिकार मोसाद ने म्यूनिख के मास्टरमाइंड को ठिकाने लगा ही दिया। इसके बाद भी अगले एक दशक तक मोसाद ने नरसंहार से जुड़े लोगों को ढूंढ-ढूंढकर मारा।