यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या अखिलेश यादव ओबीसी जाति का दिल जीत पाएंगे या नहीं!यूपी में ओबीसी का सच्चा रहनुमा कौन है? समाजवादी पार्टी या कांग्रेस। यह सवाल के कारण ही राहुल गांधी और अखिलेश यादव की जातीय जनगणना को लेकर तल्खी बढ़ गई है। मध्यप्रदेश के सतना में अखिलेश यादव ने हर चुनावी सभा में जातीय जनगणना कराने का दावा कराने वाले राहुल गांधी पर हमला बोल दिया। अखिलेश यादव ने सीधे कांग्रेस को कठघरे में खड़ा कर दिया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस की ओर से जातीय जनगणना की मांग चमत्कार है। उन्होंने सवाल किया कि लंबे समय तक केंद्र में शासन करने वाली कांग्रेस की पिछली सरकारों ने जातीय जनगणना क्यों नहीं कराई। यह बीमारी अब फैल चुकी है। यदि यह समस्या पहले ही हल कर दी गई होती तो आज समाज में इतनी बड़ी खाई नहीं होती। राहुल गांधी को आड़े हाथ लेते हुए अखिलेश यादव ने कहा कि आजादी के बाद कांग्रेस ने ही देश में जाति जनगणना बंद कराई थी। हालांकि अभी तक अखिलेश यादव के बयान पर कांग्रेस का जवाब नहीं आया है, मगर यह तय हो गया कि विपक्षी दलों के गठबंधन I.N.D.I.A में ‘सब चंगा सी’ वाला माहौल नहीं है। अखिलेश के यह हमला कांग्रेस के खिलाफ यूं ही नहीं है, सारा खेल ओबीसी वोट बैंक का है। अखिलेश यादव ने कांग्रेस की जातीय जनगणना की मांग का सच भी बताया, जो काफी हद तक सही भी है। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी आज जाति जनगणना क्यों कराना चाहते हैं? क्योंकि वे जानते हैं कि उनका पारंपरिक वोट बैंक पिछड़े वर्ग, दलित और आदिवासी उनके साथ नहीं है। 2014 के बाद से उत्तर प्रदेश में ओबीसी वोट बैंक की लड़ाई में पहले दो पार्टियों बीजेपी और समाजवादी के बीच थी। 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी गैर यादव ओबीसी वोटरों को रिझाने में सफल रही। 2019 के लोकसभा चुनाव में हर दूसरा ओबीसी वोट बीजेपी के खाते में गिरा। नतीजा यह रहा कि सपा पांच और कांग्रेस एक सीट पर सिमट गई। बीएसपी को सपा गठबंधन का फायदा मिला और वह 10 सीटों पर जीती। हुकुम सिंह की अध्यक्षता वाली ओबीसी आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, यूपी में 55 फीसदी से करीब आबादी ओबीसी की है, जिसमें यादवों की तादाद 19.4 फीसदी आंकी गई। कुर्मी-पटेल की आबादी 7.4 मानी गई। 4.8 फीसदी के साथ लोध और 3.6 फीसदी के साथ जाट भी ओबीसी के कुनबे में शामिल है। यूपी के पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट में बताया गया कि पूर्वांचल के शहरी क्षेत्र में 42 फीसदी, वेस्टर्न यूपी के शहरों में 37.53 और मध्य यूपी में 27.55 फीसदी आबादी रहती है। अति पिछड़ा वर्ग की यह ताकत ही राजनीतिक दलों को रिझाती भी है और I.N.D.I.A गठबंधन को लड़ाती भी है।
यूपी समेत हिंदी पट्टी में बड़ी जीत का फॉर्मूला सभी दलों को मिल गया है। जो दल ओबीसी वोट बैंक के साथ दो बड़ी जातियों का वोट हासिल करेगी, उसे ही ज्यादा सीटें मिलेंगी। नरेंद्र मोदी और बीजेपी से लड़ाई के लिए अखिलेश यादव ने पीडीए फार्मूला बनाया है। समाजवादी पार्टी पिछड़ा,दलित, आदिवासी पर फोकस कर रही है। अखिलेश यादव ने यूपी में सबसे पहले जातीय जनगणना की मांग की थी। बीजेपी ओबीसी जातियों को गोलबंद करने के लिए पिछड़ा महाकुंभ का आयोजन करने वाली है, जिसमें गैर यादव ओबीसी जातियों राजभर, कुर्मी, पटेल, लोधी और मौर्य को साधने की प्लानिंग है। कांग्रेस और राहुल गांधी भी ओबीसी वोटरों को अपने पाले में करने के लिए जातीय जनगणना का दांव चल रहे हैं। सवाल यह है कि अगर कांग्रेस ओबीसी जातियों में पैठ बनाती है तो नुकसान किसका होगा? उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के ओबीसी प्रेम से सबसे ज्यादा नुकसान समाजवादी पार्टी को होगा। 1989 में मंडल आंदोलन के बाद से हिंदी भाषी प्रदेश यूपी, बिहार, हरियाणा, झारखंड में कांग्रेस को तगड़ा नुकसान हुआ। मंडल विरोधी का ठप्पा लगने के कारण दलित और ओबीसी कांग्रेस से छिटकते गए। इसका फायदा बिहार में लालू यादव और यूपी में मुलायम सिंह जैसे नेताओं को मिला। पिछले 30 साल से इन राज्यों में कांग्रेस प्रमुख विरोधी दल का दर्जा भी नहीं हासिल कर सकी। अब 2024 के चुनावों के लिए कांग्रेस ने ओबीसी वोटरों की सुध ली है।
2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी गठबंधन ने चुनाव लड़ा था। ‘यूपी को दोनों साथ पसंद है’ के नारे के साथ राहुल गांधी और अखिलेश यादव की जुगलबंदी भी हुई। इस चुनाव में सपा-कांग्रेस की जबर्दस्त हार हुई। हार के बाद दोनों नेताओं की राह फिर से जुदा हुई। इसके बाद लगातार 2019 के लोकसभा चुनाव और 2022 के विधानसभा चुनाव में दोनों पार्टियां बीजेपी के सामने चित्त हो गईं। 2022 में कांग्रेस सिर्फ एक विधानसभा सीट पर जीत सकी। 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले नरेंद्र मोदी के खिलाफ 26 पार्टियों का I.N.D.I.A गठबंधन बना। अखिलेश यादव और राहुल गांधी पांच साल बाद फिर एक मंच पर आए। पटना, बेंगलुरू और मुंबई में त्याग और एकजुटता जैसी बड़ी बातें हुईं। पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की घोषणा के बाद विपक्षी दलों की एकजुटता सीट बंटवारे और मुद्दों पर बिखरने लगी। कांग्रेस ने मध्यप्रदेश और राजस्थान में समाजवादी पार्टी की अनदेखी की। मध्यप्रदेश के कांग्रेस के सीएम कैंडिडेट कमलनाथ ने ‘छोड़ो अखिलेश-वखिलेश को ..’ का वाला बयान दे दिया। इसके बाद से अखिलेश यादव कांग्रेस पर हमलावर हो गए। बात उस समय बिगड़ने लगी, जब कांग्रेस खुले तौर से समाजवादी पार्टी के ओबीसी वोट बैंक को साधने में जुट गई। राहुल गांधी तमाम रैलियों में ओबीसी के हक और जातीय जनगणना पर भाषण देने लगे और यूपी में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय सपा के मुस्लिम समर्थकों को टारगेट करने लगे। ऐसे में इंडिया गठबंधन में फूट पड़नी तय ही थी। हालांकि आज भी अखिलेश खुद को गठबंधन का हिस्सा बता रहे हैं।