क्या पीएम मोदी के खिलाफ एकजुट होंगे सभी विपक्ष?

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पीएम मोदी के खिलाफ 2024 में सभी विपक्ष एकजुट हो सकते हैं! 2024 लोकसभा चुनाव के लिए पक्ष-विपक्ष की जोर-आजमाइश जारी है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विपक्षी एकता की मुनादी कर रहे हैं। वो हाल ही में पक्ष से विपक्ष में गए हैं। बिहार में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार गिराकर नीतीश ने राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस पार्टी एवं वाम दलों के साथ मिलकर नई सरकार बनाई है। एनडीए की जनक बीजेपी का कहना है कि नीतीश के अंदर फिर से प्रधानमंत्री का बनने का ख्वाब जगा है इसलिए उन्होंने फिर से पलटी मारी है। उधर, विपक्ष की सबसे मुखर नेता ममता बनर्जी उप-राष्ट्रपति चुनाव के वक्त से ही अलग रूप में दिख रही हैं। विपक्ष की झंडेबरदार की भूमिका निभाने को आतुर ममता ने अचानक रणनीति बदलकर सबको चौंका दिया है। अब वो विपक्ष में भी ‘एकला चलो रे’ की नीति पर आगे बढ़ती दिख रही हैं। खुद को कांग्रेस से अलग रखने की मंशा तो वह पहले से दिखा ही रही थीं। उधर, दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के घर सीबीआई का छाप पड़ा तो आम आदमी पार्टी दावे करने लगी कि 2014 के चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अरविंद केजरीवाल से कड़ी टक्कर मिलने वाली है, इसलिए हमारा मनोबल तोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। ऐसे में लगता नहीं है कि तमाम प्रयासों के बावजूद इस बार भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ विपक्ष का कोई संयुक्त उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारा जा सकेगा। तो सवाल है कि क्या चुनाव बाद परिस्थितियां बनीं तब भी विपक्षी कुनबा एकजुट हो पाएगा?

प. बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस TMC प्रमुख ममता बनर्जी भी बाकी विपक्षी दलों की तरह मानती हैं कि बीजेपी भारत को विपक्ष मुक्त बनाने में जुटी है। केंद्रीय एजेंसियों की जांच की आंच उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी और बहु रुचिरा बनर्जी तक पहुंची हुई है। पार्टी के दिग्गज नेता और ममता की खासमखास पार्थ चटर्जी नोटों के भंडार मिलने के बाद जेल में हैं। उधर, महाराष्ट्र, बिहार से लेकर दिल्ली तक, हर जगह विपक्ष में बैठे क्षेत्रीय दलों के कई बड़े नेता या तो जेल में हैं या उन्हें जेल का डर सता रहा है। फिर क्षेत्रीय दलों की ही बात क्यों, छह दशक से ज्यादा देश पर राज करने वाली कांग्रेस पार्टी की मुखिया सोनिया गांधी और पार्टी के पूर्व प्रमुख राहुल गांधी की प्रवर्तन निदेशालय में पेशी हो चुकी है। विपक्षी नेताओं पर जांच एजेंसियों के कसते फंदे के बीच सत्ता पक्ष के दो शीर्ष नेताओं के बयानों ने विपक्षी खेमे में खास खलबली मचा रखी है। याद कीजिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्रचीर से ऐलान किया कि भ्रष्टाचार के खिलाफ उनका अभियान जोर पकड़ेगा। दूसरा बयान बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा की तरफ से बिहार की राजधानी पटना में आया था। उन्होंने कहा, ‘सभी क्षेत्रीय दल खत्म हो जा रहे हैं। जो नहीं खत्म हुए, वो जल्द ही खत्म हो जाएंगे। बचेगी तो सिर्फ भारतीय जनता पार्टी।’

विपक्ष इन बयानों पर ऐतबार नहीं करे तो क्यों? आखिर जमीन पर ऐसा ही होता दिख भी रहा है। 2019 में मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के बाद से ही विपक्षी दल अपने ऊपर हर वक्त लटकती तलवार महसूस कर रहे हैं। वहीं, कर्नाटक, मध्य प्रदेश से होकर अभी झारखंड तक पहुंचा ऑपरेशन लोटस भी नड्डा की कथनी का ही प्रमाण दे रहा है। आखिर बिहार में भी नीतीश कुमार ने तो इसी ऑपरेशन लोटस का हवाला देकर ही तो पलटी मारी। उन्होंने दावा किया कि केंद्र में मंत्री रहे रामचंद्र प्रसाद सिंह के जरिए उनकी पार्टी जनता दल यूनाइटेड को ही तोड़ने की कोशिश हो रही थी। नीतीश ही नहीं, आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने भी कहा कि नड्डा ने बीजेपी की मंशा जता दी, क्षेत्रीय दलों के सफाये का अभियान चल रहा है जिसमें केंद्रीय एजेंसियों की मदद ली जा रही है। टीएमसी नेता सुखेंदु शेखर राय ने शनिवार को कहा कि विपक्षी दलों ने एकजुट होकर ‘बीजेपी मुक्त भारत’ का अभियान नहीं चलाया तो ‘विपक्ष मुक्त भारत’ करने में बीजेपी को दिन-ब-दिन सफलता मिलती रहेगी। उनका कहना है कि केंद्रीय एजेंसियां और ऑपरेशन लोटस के दो हथियारों से एक-एक कर समूचे विपक्ष का कत्लेआम हो जाएगा। हालांकि, टीएमसी पीएम कैंडिडेट को लेकर विपक्षी दलों के साथ एकजुटता दिखाएगी, इसकी संभावना नहीं के बराबर ही दिख रही है।

जहां तक बात कांग्रेस पार्टी की है तो उसमें अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए भी घमासान मचा है। कपिल सिब्बल और गुलाम नबी आजाद समेत अनेक दिग्गज नेताओं के पार्टी छोड़ने के बीच पार्टी चीफ के चुनाव के लिए मतदाता सूचि सार्वजनिक करने की मांग जोर पकड़ रही है। शशि थरूर ने बाकायदा पत्र लिखकर इस मांग का समर्थन किया है। अंदरूनी अनबन के बीच कांग्रेस अपनी ताकत जुटाने की कोशिश करती दिखना चाहती है। सोनिया गांधी और राहुल गांधी से ईडी की पूछताछ के वक्त देशभर में कांग्रेसियों के प्रदर्शन ने पार्टी नेतृत्व पर गंभीर सवाल खड़ा कर दिया था। देशभर में संदेश गया कि पार्टी अब गांधी परिवार के हित साधन का औजार बनकर रह गई है, अगर उसे आम जनता की फिक्र होती तो महंगाई, बेरोजगारी जैसे सुलगते सवालों पर भी सड़कों पर आंदोलन होते ना कि जुबानी जमा खर्च किया जाता। इस धारणा को मिटाने की ही कोशिश के तहत ही सही, लेकिन पार्टी ने दिल्ली के रामलीला मैदान में महंगाई के खिलाफ बड़ी रैली का आह्वान किया है। उधर, राहुल गांधी ‘भारत जोड़ो अभियान’ की सफलता का मजबूत आधार बनाने में जुटे हैं।

यह कहना नहीं होगा कि 2024 में संयुक्त मोर्चा जैसा गठबंधन बनने की संभावना तभी बन सकती है जब बीजेपी अकेले दम पर 272 के आसपास नहीं पहुंच सके। तो क्या यह संभव है? आइए इसकी भी पड़ताल कर लेते हैं। दरअसल, 2019 के पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को अकेले दम पर 37.38% मत मिले जिसने उसे 303 सीटें दिलाईं। 2014 के चुनाव के मुकाबले बीजेपी को मत प्रतिशत के मामले में 6.38 जबकि सीटों के आंकड़े में 21 का इजाफा हुआ था। तो क्या इस बार बीजेपी की स्थिति 2014 से भी खराब हो जाएगी? विपक्षी दलों को लगता है कि बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी की समस्या गंभीर रूप धारण कर रही है जिससे आम जनता का मन बदलने लगा है। हालांकि, ये मुद्दे राज्य विधानसभा के चुनावों में बहुत हावी होते नहीं दिख रहे। विपक्ष को लगता है कि उसकी संयुक्त ताकत बीजेपी के करीब-करीब ढाई गुना है। बीजेपी को अधिकतम करीब 38% वोट 2019 के चुनाव मे मिले हैं। अब एनडीए का कुनबा लगभग बिखर चुका है। महाराष्ट्र में रामदास आठवले की रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (RPI) और उत्तर प्रदेश में अनुप्रिया पटेल का अपना दल जैसे सीमित जनाधार वाली पार्टियां ही एनडीए में बच गई हैं। मतलब साफ है कि करीब-करीब 60% मतदाताओं ने बीजेपी या एनडीए का समर्थन नहीं किया था। यही उम्मीद विपक्ष को बार-बार एकजुटता की याद दिलाता है, लेकिन व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएं हर बार इस बड़े लक्ष्य पर हावी हो जाती हैं। ममता बनर्जी, नीतीश कुमार और अरविंद केजरीवाल के रूप में कम-से-कम तीन ध्रुव तो विपक्ष में दिख ही रहे हैं। इस पर कांग्रेस का रुख अपने आप में एक बड़ा सवाल है। सवाल यह कि क्या वह राहुल गांधी के सिवा किसी को प्रधानमंत्री स्वीकार कर पाएगी? फिलहाल तो यही लग रहा है कि ममता बनर्जी, नीतीश कुमार, अरविंद केजरीवाल के रूप में विपक्ष की मजबूती ही उसकी सबसे बड़ी कमजोरी हैं।