क्या कांग्रेस का साथ छोड़ देंगे सभी क्षेत्रीय दल?

0
164

यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या सभी क्षेत्रीय दल कांग्रेस का साथ छोड़ेंगे या नहीं! लोकसभा चुनाव में अब बमुश्किल दो-ढाई महीने बचे हैं। नरेंद्र मोदी की निगाह पंडित जवाहर लाल नेहरू के बाद दूसरा ऐसा प्रधानमंत्री बनने पर है जो लगातार तीन बार सत्ता के सिंहासन पर बैठा। अयोध्या में भव्य राम मंदिर से पैदा हुई हिंदुत्व लहर पर सवार बीजेपी जाति को साधने में भी पीछे नहीं है। कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने का ऐलान हो चुका है। दलितों को लुभाने के लिए बड़ा अभियान शुरू करने का प्लान भी तैयार हो चुका है। दूसरी तरफ विपक्ष खासकर उसके सबसे बड़ा गठबंधन I.N.D.I.A. की नजर हर हाल में मोदी के विजय रथ को रोकने पर है। लेकिन लोकसभा चुनाव से पहले ही विपक्ष का I.N.D.I.A. हांफने लगा है। इससे बड़ी विडंबना और क्या हो सकती है कि जिसकी पहल पर विपक्षी गठबंधन ने आकार लिया, वही नीतीश कुमार अब पलटी मारने जा रहे हैं। ये वैसे ही है जैसे युद्ध शुरू होने से ऐन पहले सारथी ही पाला बदल ले। नीतीश के संभावित यू-टर्न के अलावा ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल भी कांग्रेस को आंख दिखा रहे हैं। कई और राज्यों में भी विपक्षी गठबंधन के भविष्य पर सवालिया निशान लगा हुआ है। 22 जनवरी को अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद यूपी ही नहीं, तकरीबन पूरे देश में एक तरह ही लहर सी पैदा हुई है, जिसे ‘राम लहर’ कह सकते हैं। चुनाव में इसका फायदा बीजेपी को ही मिलेगा क्योंकि इससे उसका हिंदुत्व वोट बैंक सध रहा है। लेकिन बीजेपी सिर्फ इतने से संतुष्ट नहीं है। हिंदुत्व वोट के साथ-साथ वह जातिगत समीकरणों को भी साधने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के अगले ही दिन मोदी सरकार ने समाजवादी दिग्गज कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने का ऐलान किया। इसके जरिए बीजेपी ने पिछड़े वर्ग और उसमें भी खासकर अत्यंत पिछड़ी जातियों पर अपनी पकड़ को और मजबूत करने की कोशिश की है। इसके अलावा जल्द ही पार्टी देशभर में दलित समुदाय को साधने के लिए बड़ा अभियान छेड़ने जा रही है। उनके लिए जगह-जगह सम्मेलन होंगे। बीजेपी के कार्यकर्ता दलित समुदाय तक पहुंचेंगे और उनके हित में लिए गए मोदी सरकार के फैसलों को बताएंगे। जाहिर है लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी युद्धस्तर पर तैयारी कर रही है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी के खिलाफ बिखरे हुए विपक्ष को एकजुट करने की कवायद करने वाले नीतीश कुमार के अब खुद यू-टर्न लेने की चर्चा है। जेडीयू चीफ और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ही पिछले साल जून में पटना में विपक्षी दलों की महाजुटान की थी। उनकी पहल पर ही विपक्ष के तमाम दल मतभेदों के बावजूद एक प्लेटफॉर्म पर आने को तैयार हुए ताकि लोकसभा चुनाव में बीजेपी के खिलाफ ज्यादा से ज्यादा सीटों पर विपक्ष की तरफ से साझा उम्मीदवार उतारा जा सके। लेकिन जब चुनाव एकदम सिर पर आ गया तो नीतीश कुमार ही पाला बदलने जा रहे। तिनका-तिनका जोड़कर विपक्षी एकजुटता का ताना-बाना तैयार करने वाले जेडीयू चीफ ऐन वक्त पर खुद ही गठबंधन से दूर होने जा रहे हैं। ये विपक्षी इंडिया गठबंधन के लिए बहुत बड़ा झटका है।

ऐसा नहीं है कि नीतीश कुमार ने विपक्षी गठबंधन की नाव में पहला छेद किया है। उनसे पहले पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी विपक्षी I.N.D.I.A. की नाव में छेद कर चुकी हैं। राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा के बंगाल में प्रवेश करने से पहले ही ममता ने साफ कर दिया कि उनकी पार्टी टीएमसी लोकसभा चुनाव में राज्य की सभी 42 सीटों पर अकेले ही चुनाव लड़ेगी। उनके इस ऐलान को कांग्रेस ने ‘स्पीड ब्रेकर’ बताकर ये जताने की कोशिश की कि दीदी को जल्द ही मना लिया जाएगा। लेकिन दीदी के तेवरों से ऐसा लगता तो बिल्कुल नहीं है। खुद कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने ममता को खत लिखकर उनसे राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा में शामिल होने की गुजारिश की थी। ममता ने उनके अनुरोध को सिरे से खारिज कर दिया। दो टूक कह दिया कि वह राहुल की यात्रा में ‘5 मिनट तक के लिए भी’ शामिल नहीं हो सकतीं। वह ‘एकला चलो’ की राह पर निकल चली हैं। टीएमसी एमपी डेरेक ओ ब्रायन इसके लिए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं जो लगातार ममता बनर्जी पर हमलावर रहे हैं। सुष्मिता देव तो अधीर को बीजेपी का एजेंट तक बता रही हैं। जवाब में अधीर ने जोश-जोश में डेरेक ओ ब्रायन को ‘विदेशी’ कह दिया लेकिन अब उस बयान के लिए माफी मांग रहे हैं। उनका माफीनामा बता रहा है कि कांग्रेस आलाकमान ने बंगाल में विपक्षी एकजुटता की उम्मीद नहीं छोड़ी है।

सिर्फ नीतीश या ममता ही नहीं, आम आदमी पार्टी भी विपक्षी गठबंधन की नाव में छेद करती दिख रही है। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान दावा कर रहे हैं कि आम आदमी पार्टी पंजाब की सभी 13 लोकसभा सीटों को जीतेगी यानी सभी सीटों पर चुनाव लड़ेगी। मान इतना बड़ा ऐलान खुद से नहीं कर सकते, अरविंद केजरीवाल की सहमति जरूर ली होगी। दूसरी तरफ, आम आदमी पार्टी गुजरात और हरियाणा जैसे राज्यों में भी कांग्रेस से अपने लिए लोकसभा सीटों की मांग कर रही है। दिल्ली की 7 सीटों को लेकर तो दोनों पार्टियों में बात बन सकती है लेकिन पंजाब का मामला फंस चुका है। दिलचस्प बात ये है कि कांग्रेस की राज्य इकाई भी आम आदमी पार्टी से किसी तरह का गठबंधन नहीं चाहती लेकिन आलाकमान के स्तर पर सीटों के तालमेल की कोशिश की जा रही थी।

सबसे ज्यादा 80 लोकसभा सीटों वाले राज्य यूपी में भी विपक्षी एकजुटता के चिथड़े उड़ चुके हैं। मायावती की बहुजन समाज पार्टी पहले ही विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. का हिस्सा नहीं है। अखिलेश की समाजवादी पार्टी और जयंत चौधरी की आरएलडी भले ही कांग्रेस के साथ विपक्षी गठबंधन का हिस्सा हैं लेकिन सीट शेयरिंग पर बात बनती नहीं दिख रही। इतना ही नहीं, अखिलेश यादव ने तो कांग्रेस का इंतजार किए बिना जयंत चौधरी के साथ सीट शेयरिंग का ऐलान भी कर दिया। यूपी में कांग्रेस करीब 2 दर्जन सीटें चाह रही है लेकिन अखिलेश 2 से ज्यादा सीट देने के मूड में नहीं थे। हालांकि, शनिवार को अखिलेश ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर बड़ा ऐलान करते हुए कहा कि यूपी में कांग्रेस 11 सीटों पर लड़ेगी।

ऐसा ही हाल महाराष्ट्र का है। यूपी के बाद लोकसभा की सबसे ज्यादा सीटें महाराष्ट्र में ही हैं। यहां महाविकास अघाड़ी में कांग्रेस, शिवसेना (यूबीटी) और शरद पवार की अगुआई वाले एनसीपी का गुट शामिल है। यहां सीट शेयरिंग पर पेच कितनी बुरी तरह फंसा हुआ है इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि इसकी वजह से ही कांग्रेस के बड़े युवा चेहरों में शुमार रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री मिलिंद देवड़ा ने पार्टी छोड़ दी और एकनाथ शिंदे की अगुआई वाली शिवसेना का दामन थाम लिया। देवड़ा जिस मुंबई साउथ सीट से लड़ना चाह रहे थे, उस पर उद्धव ठाकरे की शिवसेना (यूबीटी) ने दावा ठोक रखा है। 48 लोकसभा सीट वाले महाराष्ट्र में शिवसेना (यूबीटी) अकेले अपने लिए 23 सीटों पर अड़ी है। यानी बाकी कांग्रेस, एनसीपी और प्रकाश आंबेडकर की पार्टी के लिए सिर्फ 25 सीटें ही बचेंगी। जाहिर है, महाराष्ट्र में सीट शेयरिंग बहुत ही उलझा हुआ है।