यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या राजस्थान में कांग्रेस को बीजेपी टक्कर दे पाएगी या नहीं! राजस्थान में हर पांच साल बाद सरकार बदल जाती है। राजनीति और चुनावों पर नजर रखने वालों की मानें तो यह परंपरा इस बार भी कायम रहने वाली है। जानकारों का मानना है कि इस बार भी राजस्थान के मतदाता सत्ता परिवर्तन के लिए ही वोट करेंगे और कांग्रेस की जगह बीजेपी की सरकार बनेगी। इस मायने में राजस्थान हमारे देश का ऐसा प्रदेश है जहां के मतदाता अक्सर साफ-सुथरा जनादेश दिया करते हैं। 1951 में पहले विधानसभा चुनाव से लेकर अब तक राजस्थान में 16 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं। 1977 और 1990 को छोड़ दें तो बाकी सभी विधानसभा ने पांच-पांच साल का संपूर्ण कार्यकाल पूरा किया। प्रदेश में हुए चुनाव के आंकड़ों पर गौर करने पर यह भी स्पष्ट होता है कि पिछले कुछ चुनावों से बीजेपी अगर हारती है तो बहुत कम अंतर से, लेकिन कांग्रेस हारती है तो बिल्कुल चित हो जाती है। 1998 के चुनाव में यह क्रम उल्टा हुआ था। तब कांग्रेस ने 153 सीटें पाकर बीजेपी को सिर्फ 33 सीटों तक सिमटा दी थी। नीचे के टेबल में 1980 से 2018 के पिछले विधानसभा चुनावों में बीजेपी और कांग्रेस के प्रदर्शन का ब्योरा दिया गया है।प्रदेश में वर्ष 1973 तक लगातार कांग्रेस का शासन रहा। उस वर्ष राष्ट्रपति शासन लागू हुआ तो चार वर्ष यानी 1977 तक रहा। फिर चुनाव हुए तो पहली बार जनता पार्टी की सरकार बनी और भैरों सिंह शेखावत मुख्यमंत्री बने। मौजूदा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को राजस्थान का मुखिया बनने का पहला मौका वर्ष 1998 में लगा। गहलोत जनता का अपार समर्थन लेकर सत्ता में आए। उसके बाद कांग्रेस राजस्थान में कभी इतना प्रचंड बहुमत नहीं ला पाई जबकि बीजेपी ने 2013 के चुनाव में 163 सीटों के साथ 1998 में गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस को मिली 153 सीटों का रिकॉर्ड तोड़ दिया।
1951 में जब राजस्थान विधानसभा के लिए पहला चुनाव हुआ तो अखिल भारतीय राम राज्य परिषद ने 59 सीटों पर उम्मीदवार उतारकर 24 सीट जीत लिए थे। उस वक्त बीजेपी की पूर्ववर्ती जनसंघ हुआ करती थी।प्रदेश में हुए चुनाव के आंकड़ों पर गौर करने पर यह भी स्पष्ट होता है चुनाव हुए तो पहली बार जनता पार्टी की सरकार बनी और भैरों सिंह शेखावत मुख्यमंत्री बने। मौजूदा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को राजस्थान का मुखिया बनने का पहला मौका वर्ष 1998 में लगा। गहलोत जनता का अपार समर्थन लेकर सत्ता में आए। 1957 के अगले चुनाव में तो निर्दलियों ने 33 सीटें जीतकर रिकॉर्ड ही बना लिया था। कांग्रेस की 119 सीटों के बाद यह सबसे बड़ी जीत थी। प्रदेश की 33.93 प्रतिशत जनता ने निर्दलीय उम्मीदवारों का वोट दिया था। तब जनसंघ के खाते में सिर्फ आठ सीटें आई थीं। इसी तरह, 1962 के चुनाव में स्वतंत्र पार्टी ने 93 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और उसे 36 सीटों पर जीत हासिल हो गई। अगली बार 1967 के चुनाव में स्वतंत्र पार्टी के 107 में से 48 उम्मीदवार जीतकर विधानसभा पहुंच गए थे। लेकिन पांच वर्ष बाद 1972 के चुनाव में स्वतंत्र पार्टी 119 सीटों पर कैंडिडेट उतारकर सिर्फ 11 सीटों पर जीत दर्ज कर सकी। उसके बाद उसका सितारा फिर कभी नहीं चमका। राजस्थान चुनावों के शुरुआती वर्षों में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ने भी हिस्सा लिया था। अब जनसंघ की जगह बीजेपी ने ले ली है तो राम राज्य परिषद, स्वतंत्र पार्टी और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी का अस्तित्व ही नहीं रहा है।
देश की आजादी के बाद से आज तक राजस्थान में चार बार राष्ट्रपति शासन भी लगा- पहला, 13 मार्च, 1967 से 26 अप्रैल, 1967 तक, दूसरा 29 अगस्त, 1973 से 22 जून, 1977 तक, तीसरा 16 मार्च, 1980 से 6 जून, 1980 तक और चौथा 15 दिसंबर, 1992 से 4 दिसंबर, 1993 तक। बता दें कि 1951 में पहले विधानसभा चुनाव से लेकर अब तक राजस्थान में 16 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं। 1977 और 1990 को छोड़ दें तो बाकी सभी विधानसभा ने पांच-पांच साल का संपूर्ण कार्यकाल पूरा किया। प्रदेश में हुए चुनाव के आंकड़ों पर गौर करने पर यह भी स्पष्ट होता है चुनाव हुए तो पहली बार जनता पार्टी की सरकार बनी और भैरों सिंह शेखावत मुख्यमंत्री बने। मौजूदा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को राजस्थान का मुखिया बनने का पहला मौका वर्ष 1998 में लगा। गहलोत जनता का अपार समर्थन लेकर सत्ता में आए। उसके बाद कांग्रेस राजस्थान में कभी इतना प्रचंड बहुमत नहीं ला पाई जबकि बीजेपी ने 2013 के चुनाव में 163 सीटों के साथ 1998 में गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस को मिली 153 सीटों का रिकॉर्ड तोड़ दिया।कि पिछले कुछ चुनावों से बीजेपी अगर हारती है तो बहुत कम अंतर से, लेकिन कांग्रेस हारती है तो बिल्कुल चित हो जाती है। 1998 के चुनाव में यह क्रम उल्टा हुआ था। तब कांग्रेस ने 153 सीटें पाकर बीजेपी को सिर्फ 33 सीटों तक सिमटा दी थी।