क्या बीजेपी को मिल पाएगा पसमांदा मुसलमानो का पूरा वोट बैंक?

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यह सवाल उठना लाजमी है कि क्या पसमांदा मुसलमानो का पूरा वोट बैंक बीजेपी को मिल पाएगा या नहीं! साल 2024 आ चुका है और कुछ महीनों के बाद ही लोकसभा चुनाव होने हैं। राम मंदिर के उद्घाटन के बीच जहां सत्ताधारी बीजेपी जोश से भरी हुई है। तो वहीं विपक्षी गठबंधन भी कमर कस रहा है। इस बीच कई नए-पुराने दल भी तैयारी में हैं। बात यूपी की करें तो यहां पर पिछले कुछ सालों में मुकाम हासिल करने वाले कई दल हैं। इनमें निषाद पार्टी और सुभासपा सत्ता के अंदर-बाहर होते रहते हैं। लेकिन एक दल ऐसा भी है, जो 10 साल पहले इन दोनों ही दलों से सियासत में काफी आगे था, जिसका नाम था- पीस पार्टी। पिछले कुछ महीनों से पीस पार्टी ऑफ इंडिया फिर से चर्चा में है। दरअसल, बदलते राजनीतिक समीकरण के बीच पीस पार्टी के अध्यक्ष डॉ. मोहम्मद अयूब ने बीजेपी और एनडीए गठबंधन के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का इशारा कर दिया है। पिछले दो दशक के दौरान हुए 3 लोकसभा और 3 विधानसभा चुनावों में भगवा पार्टी के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले अयूब ने एनडीए के साथ गठबंधन का रास्ता खुला होने की बात कही है। उन्होंने कांग्रेस, सपा और बसपा पर मुस्लिमों को केवल वोटबैंक के तौर पर इस्तेमाल करने का आरोप लगाया है। 2014 के चुनाव प्रचार के दौरान गोंडा में जनसभा करते हुए डॉक्टर अयूब ने कहा था कि पीस पार्टी मोदी को आतंकवादी मानती है, क्योंकि उनसे पूरा देश आतंकित है। ऐसे व्यक्ति को पीएम चुनने और देश की कमान सौंपने का कोई मतलब है। वहीं 2016 में गोरखपुर के चंपा देवी पार्क में सभा के दौरान उन पर तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ के खिलाफ आपत्तिजनक भाषा के इस्तेमाल और धर्मविशेष पर टिप्पणी करने का केस भी दर्ज हुआ था।

गोरखपुर के निवासी डॉक्टर मोहम्मद अयूब ने 15-16 साल पहले राजनीति की राह पकड़ ली थी। मोहम्मद अयूब गोरखपुर के बड़हलगंज कस्बा निवासी हैं। पसमांदा मुस्लिम समाज से ताल्लुक रखने वाले अयूब ने 2008 में पीस पार्टी का गठन किया था। अगले ही साल 2009 में उन्होंने 20 सीट पर लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी उतारे थे। पार्टी के खाते में एक भी सीट नहीं आई लेकिन लगभग एक फीसदी वोट पाकर उन्‍होंने राजनीति में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी।

इसके बाद 2012 के विधानसभा चुनाव में पीस पार्टी ऑफ इंडिया ने 208 सीटों पर कैंडिडेट उतारे थे, जहां उसे 2.35 प्रतिशत वोट मिले। और वोट प्रतिशत के हिसाब से वह पांचवें स्थान पर रही। मुरादाबाद की कांठ सीट से अनीसुर्रहमान जीते। सिद्धार्थनगर की डुमरियागंज सीट से कमाल यूसुफ को जीत मिली, जबकि खुद डॉक्टर अयूब संतकबीरनगर की खलीलाबाद सीट से निर्वाचित हुए थे। हालांकि 2017 के चुनाव में केवल 1 सीट पर जीत मिली।

पीस पार्टी के गठन के बाद 2009 लोकसभा और 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी ने बेहतर प्रदर्शन कर मुस्लिम समुदाय पर अपनी पकड़ का एहसास करा दिया था। हालांकि बदले दौर में किसी बड़ी पार्टी का समर्थन नहीं मिलने के कारण डॉक्टर अयूब राजनीतिक तौर पर हाशिए पर चले गए। अब पसमांदा वोटबैंक को लेकर बीजेपी की राजनीति के दौर में एक बार फिर से वह जड़ें मजबूत करने में जुट गए हैं। उनका फोकस पूर्वांचल से लेकर वेस्ट यूपी तक मुस्लिम राजनीति पर है।

2017 के बाद मुस्लिम वोटर समाजवादी पार्टी और बीएसपी की तरफ लामबंद होने लगे और पीस पार्टी हाशिये पर चली गई। सीएसडीएस के आंकड़ों के अनुसार, 2017 में 55 फीसदी मुस्लिम वोटरों ने सपा को वोट दिया। 14 फीसदी मुस्लिम वोट बसपा के खाते में गई। 33 फीसदी मुसलमानों ने कांग्रेस का समर्थन किया। दो फीसदी मुस्लिम वोट बीजेपी को भी मिले थे। प्यू सेंटर की रिपोर्ट के मुताबिक, आश्चर्यजनक यह रहा कि 2019 के लोकसभा चुनाव में पांच में से एक मुस्लिम वोटर ने बीजेपी के लिए वोट किया। 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में मुस्लिम समुदाय ने बीजेपी विरोध के लिए समाजवादी पार्टी के लिए एकमुश्त वोटिंग की थी।

बीजेपी खुद पिछले दो साल से पसमांदा मुसलमानों को जोड़ने के लिए अभियान चला रही है। मुसलमान वोटरों के बीच पीएम मोदी की मन की बात के उर्दू तर्जुमा वाले किताबें बांटी जा रही है। मदरसों में बीजेपी के अल्पसंख्यक सेल के नेता पार्टी के संदेश लेकर मीटिंग कर रहे हैं। मई 2023 के निकाय चुनाव में बीजेपी ने 395 मुस्लिम कैंडिडेट उतारे थे। पसमांदा मुसलमानों को संदेश देने के लिए यूपी में पहले ही दानिश आजाद अंसारी को योगी कैबिनेट में शामिल किया है। ऐसे में डॉ. अयूब का बयान बीजेपी को राहत दे सकता है।