क्या गुजरात में टिक पाएगी बीजेपी?

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गुजरात में बीजेपी टिक पाएगी, यह सबसे बड़ा सवाल है! हिमाचल प्रदेश के लिए विधानसभा चुनाव की तारीख का ऐलान हो चुका है। गुजरात के लिए भी जल्द ही चुनाव की तारीख का ऐलान हो सकता है। सूबे में चुनाव के लिए सियासी अखाड़ा सज चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गृह राज्य गुजरात बीजेपी का सबसे मजबूत किला है। इसे ऐसे समझ सकते हैं कि पिछले ढाई दशक से ज्यादा वक्त से बीजेपी का यह गढ़ अजेय रहा है। हां, 2017 के पिछले चुनाव में कांग्रेस ने जबरदस्त टक्कर जरूर दी थी। ऐसी टक्कर की 1995 के बाद पहली बार बीजेपी गुजरात में तीन अंकों का आंकड़ा छूने में नाकाम रही थी। कांग्रेस समर्थकों ने इसे पार्टी की ‘नैतिक जीत’ के तौर पर प्रचारित किया था। कांग्रेस के पास इस बार ‘नैतिक जीत’ को ‘असली जीत’ में बदलने का मौका हो सकता है लेकिन 2017 के बाद साबरमती में बहुत पानी बह चुका है। अब न उस वक्त जैसा पाटीदार आंदोलन वाला माहौल है न जीएसटी का विरोध। ऊपर से पंजाब में जबरदस्त जीत से उत्साहित आम आदमी पार्टी पूरे दमखम से गुजरात के रण में कूद चुकी है। बीजेपी और कांग्रेस के बीच परंपरागत मुकाबले वाले राज्य में AAP न सिर्फ त्रिकोणीय लड़ाई बना रही बल्कि पंजाब जैसे करिश्मे का दम भर रही है। 2024 चुनाव से पहले बीजेपी, कांग्रेस और AAP तीनों के लिए गुजरात चुनाव बहुत अहम है।

पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बीजेपी के इस मजबूत किले को तकरीबन भेद ही दिया था। राहुल गांधी ने नेतृत्व में पार्टी ने पूरी ताकत लगा दी थी। कांग्रेस ने हर तरह का दांव खेला। बीजेपी के हिंदुत्व की काट के लिए कांग्रेस ने राहुल गांधी की ‘दत्तात्रेय गोत्री जनेऊधारी ब्राह्मण’ की छवि पेश करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। एक मंदिर से दूसरे, दूसरे से तीसरे…राहुल गांधी का ‘टेंपल रन’ खूब चला। पाटीदार आरक्षण आंदोलन भी चरम पर था। जीएसटी को लेकर व्यापारियों के बड़े तबके में नाराजगी थी। इन चुनौतियों के बाद भी बीजेपी किसी तरह अपना किला बचाने में कामयाब रही। हालांकि, 1995 के बाद पहली बार पार्टी गुजरात में 3 अंकों का आंकड़ा छूने से रह गई। बीजेपी को 99 सीटें मिलीं। कांग्रेस को 78 सीट जो 32 सालों में सूबे में पार्टी का सबसे शानदार प्रदर्शन था। सौराष्ट्र-कच्छ रीजन की 54 में से 30 सीटों पर कांग्रेस का परचम लहराया। भारतीय ट्राइबल पार्टी के खाते में 2, एनसीपी को 1 और निर्दलीय के खाते में 2 सीटें गईं। खास बात ये रही कि 2012 के मुकाबले बीजेपी का वोट शेयर भी 1.2 प्रतिशत बढ़ा लेकिन उसे 16 सीटों का नुकसान हुआ। बीजेपी को कुल करीब 49 प्रतिशत वोट मिले, वहीं कांग्रेस का वोट शेयर भी 2.5 प्रतिशत बढ़कर 41.4 प्रतिशत हो गया।

गुजरात में 17 महीने के अपवाद को छोड़ दें तो पिछले 27 सालों से लगातार बीजेपी की सरकार है। 1995 में पहली बार केशुभाई पटेल के नेतृत्व में गुजरात में बीजेपी की सरकार बनी। उसके बाद से बीच के 17 महीने को छोड़ दें तो अबतक लगातार सूबे में भगवा परचम ही लहरा रहा है। अक्टूबर 1996 में बीजेपी के शंकर सिंह वघेला ने बगावत कर कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई थी। वघेला ने बगावत के बाद राष्ट्रीय जनता पार्टी नाम से एक अलग पार्टी बनाई। अक्टूबर 1997 में वघेला ने पद छोड़ा तो राष्ट्रीय जनता पार्टी के ही दिलीप पारिख मुख्यमंत्री बने जो मार्च 1998 तक पद पर रहे। 1995 के बाद यही 17 महीने का अपवाद है जब गुजरात में बीजेपी की सरकार नहीं रही है।

कांग्रेस के पास पिछली बार की ‘नैतिक जीत’ को ‘असली जीत’ में बदलने का मौका जरूर है। लेकिन हालात बदल चुके हैं। तब राहुल गांधी महीनों पहले से गुजरात चुनाव के लिए कमर कसे हुए थे। लेकिन अभी वह कन्याकुमारी से कश्मीर तक साढ़े 3 हजार किलोमीटर की भारत यात्रा में बिजी हैं और चुनावी राज्य गुजरात इस यात्रा के रूट में ही नहीं है। पिछले चुनाव में कांग्रेस की रणनीतियों को धार देने वाले चुनाव प्रभारी अशोक गहलोत अपने ही राज्य राजस्थान में अपनी कुर्सी बचाने में व्यस्त हैं। पाटीदार आंदोलन के चर्चित चेहरे हार्दिक पटेल कांग्रेस छोड़ बीजेपी का दामन थाम चुके हैं। चुनाव से पहले कांग्रेस के नेताओं को पार्टी छोड़ने और बीजेपी का दामन थामने का सिलसिला जारी है। कांग्रेस के लिए सिर्फ यही चुनौती नहीं है, इनसे भी बड़ी आम आदमी पार्टी की चुनौती है जो गुजरात में अपनी पूरी ताकत झोंक चुकी है।

गुजरात में पहली बार 1995 में केशुभाई पटेल के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार बनी। तबसे 96-98 के बीच में 17 महीनों को छोड़कर सूबे में लगातार बीजेपी की ही सरकार रही। पिछले चुनाव में बीजेपी को 99 सीटें और कांग्रेस को 78 सीटें मिली थीं। 2012 के चुनाव में बीजेपी को 115 और कांग्रेस को 61 सीट पर जीत मिली थी। 2007 में बीजेपी को 117 और कांग्रेस को 59, 2002 में बीजेपी को 127 और कांग्रेस को 51, 1998 में बीजेपी को 117 और कांग्रेस को 53 सीटें मिली थीं। 1995 के गुजरात विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 121 और कांग्रेस के खाते में 45 सीटें आई थीं।