क्या बीजेपी बंगाल के घोटालों की पोल खोल पाएगी ये सबसे बड़ा सवाल है! असेंबली इलेक्शन के बाद से पश्चिम बंगाल में सत्ता दल के नेता-कार्यकर्ता और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नजदीकी नौकरशाह सेंट्रल जांच एजेंसियों के रडार पर हैं। वैसे भी बंगाल में घपले-घोटाले कोई नई बात नहीं हैं। सारदा चिटफंड घोटाले के पहले नारदा स्टिंग आपरेशन में बंगाल के कई नेता सीबीआई के शिकंजे में आए थे। उसके बाद तो घोटालों-घपलों की फेहरिस्त दिन पर दिन लंबी होती गयी। कोयला घोटाला पकड़ में आया तो पशुओं की तस्करी के तार बांग्लादेश से जुड़ गये। इसे संयोग कहें या बंगाल में सत्तासीन पार्टी तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) का दुर्भाग्य कि इन सभी घपलों-घोटालों में उसके ही नेता-मंत्री शामिल पाये गये। केंद्रीय जांच एजेंसियों की सीधी कार्वाई का विरोध करने वाली ममता बनर्जी की हालत या यूं कहें कि छवि तब से खराब होने लगी, जब शिक्षक नियुक्ति घोटाले में ममता के अति विश्वसनीय नेता पार्थ चटर्जी और उनकी करीबी मॉडल और एक्ट्रेस अर्पिता के घर से अकूत रकम तो बरामद ही हुई, उनके कई तरह के निवेश और संपत्ति को ईडी ने पकड़ा। यहां तक कि ममता के भतीजे और उनकी साली का कनेक्शन का सुराग भी कोयला घोटाले के आरोपियों से मिला।
बहरहाल बंगाल इनदिनों राष्ट्रीय सुर्खियों में है। कलकत्ता हाईकोर्ट ममता सरकार के फैसलों के खिलाफ लगातार हमलावर बना हुआ है तो इनफोर्समेंट डिपार्टमेंट (ईडी) मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के अति करीबी मंत्री पार्थ चटर्जी की बखिया उधेड़ने में लगा है। वैसे भी ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी और उनकी पत्नी रुजिरा बनर्जी के अलावा तृणमूल कांग्रेस से नजदीकी रखने वाले बड़े कोयला और पशु तस्करों के खिलाफ केंद्रीय जांच एजेंसियां पहले से ही लगातार एक्शन में हैं। पार्थ चटर्जी की करीबी माडल और अभिनेत्री अर्पिता चटर्जी के घरों से 50 करोड़ से अधिक की नगदी और करोड़ों रुपये मूल्य की दूसरी संपत्ति जब्त कर ईडी ने ममता सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ हल्ला बोल दिया है। केंद्रीय जांच एजेंसियों के एक्शन को अमूमन टीएमसी से पराजित हुई बीजेपी की कुंठा करार देने वाली ममता बनर्जी पहली दफा बैकफुट पर नजर आ रही हैं।
पार्थ चटर्जी की करीबी के घर से पहली छापेमारी में 21 करोड़ नकद रकम की बरामदगी के बाद दोनों की गिरफ्तारी हुई। ममता बनर्जी को इस बारे में अपना मुंह खोलने में 48 घंटे का वक्त लग गया। इससे साफ जाहिर होता है कि बात-बेबात बीजेपी को कोसने की उनकी तुनकमिजाजी के स्वर फिलवक्त मद्धिम पड़ गये हैं। 2020 में हुए विधानसभा चुनाव में पिछली बार की दो सीटों से 77 पर पहुंचने वाली बीजेपी क्या ममता सरकार के इस भ्रष्टाचार को आसन्न पंचायत और लोकसभा चुनावों में भुना पाएगी, फिलहाल राजनीतिक हलके का यक्ष प्रश्न यही है।
अगले साल यानी 2023 में पश्चिम बंगाल में 31836 पंचायतों, 6158 पचायत समितियों और 822 जिला परिषदों के चुनाव होने हैं। पिछली बार यानी 2018 के इन चुनावों में ममता की पार्टी टीएमसी ने तकरीबन ढाई हजार यानी 90 प्रतिशत सीटों पर जीत हासिल की थी। 2013 में भी जीत का आंकड़ा इसी के इर्दगिर्द था। 2018 के चुनावों की एक बड़ी खासियत यह रही थी कि 40 साल का रिकार्ड तोड़ते हुए टीएमसी के 34 प्रतिशत उम्मीदवार निर्विरोध जीत गये थे। उनके खिलाफ किसी ने उम्मीदवारी ही पेश नहीं की थी। बीजेपी और दूसरे दलों ने आरोप लगाया था कि उनके उम्मीदवारों को नामांकन करने से रोका गया। हिंसा भी खूब हुई थी। पंचायत चुनाव में हिंसा का आरोप लगाने में बीजेपी सर्वाधिक मुखर थी।
सत्ताधारी दल द्वारा व्यापक अवरोध के बावजूद पंचायत चुनावों में बीजेपी दूसरी बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। पंचायत चुनावों में इसे डेढ़ हजार से अधिक सीटें मिलीं। कई जिला परिषदों और पंचायत समितियों पर भी बीजेपी ने पहली दफा कब्जा किया। इसका अर्थ यह लगाया गया कि बीजेपी की पहुंच अब गांवों तक हो गयी है। 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान वास्तव में बीजेपी को इसका लाभ मिला और उसके 18 सांसद बंगाल से चुने गये। उस वक्त भी यह माना जाता था कि टीएमसी कार्यकर्ताओं की दबंगई और हिंसा से तबाह होकर लोगों ने बीजेपी पर भरोसा किया।
यही वजह थी कि बीजेपी ने 2020 के विधानसभा चुनाव में परिवर्तन की उम्मीद पाल रखी थी और अपनी तमाम ताकत झोंक दी थी। बीजेपी को इसका फायदा तो हुआ, लेकिन आशातीत सफलता नहीं मिल पायी। बीजेपी के विधायक दो से बढ़ कर 77 हो गये, लेकिन वोटों के ध्रुवीकरण के कारण अल्पसंख्यकों के वोट थोक रूप में ममता बनर्जी को मिल गये। वामपंथी शासन के बाद हुए पहले दो विधानसभा चुनावों में पश्चिम बंगाल के अल्पसंख्यक वोटों का विभाजन वाम दल, कांग्रेस और टीएमसी के बीच होता रहा था। 2020 में ऐसा नहीं हुआ। इसलिए बीजेपी द्वारा तमाम ताकत झोंकने के बाद भी तीसरी बार ममता बनर्जी सत्ता पर काबिज होने में कामयाब रहीं। माना जाता है कि ममता बनर्जी को विधानसभा चुनाव में जो 48 फीसद वोट मिले, उनमें 30 प्रतिशत तो अल्पसंख्यक वोट ही थे। हिन्दू वोट उन्हें महज 18 फीसद ही मिल पाये थे। यानी बीजेपी का अंडर करंट तब भी बरकार रहा, पर मुस्लिम वोटरों ने ममता की नैया पार कर दी। कामयाबी के लिए बीजेपी को इसकी काट खोजनी होगी।
माना तो यह भी जा रहा है कि ममता सरकार के भ्रष्टाचार को उगार करने के पीछे बीजेपी की मंशा लोगों को एक फिर जागरूक करने की है। सारदा चिटफंड घोटाले और नारदा स्टिंग आपरेशन जैसे घोटालों के उजागर होने बाद अब ममता के मंत्रियों-नेताओं के भ्रष्टाचार की पोल खोल योजना बीजेपी की सोची समझी रणनीति का हिस्सा हो सकती है। लेकिन इसे भुनाने में वह कितना कामयाब हो पायेगी, यह समय के गर्भ में है। इसलिए कि टीएमसी कार्यकर्ताओं की कार्यशैली में कोई बदलाव नहीं दिख रहा। और, अगर यही स्थिति रही तो 2018 के पंचायत चुनावों की पुनरावृत्ति 2023 में हो जाये तो कोई आश्चर्य नहीं। पर, बीजेपी को जिस तरह 2019 के लोकसभा चुनाव में इसका फायदा मिला था, 2024 में भी उसी तरह के परिणाम आ जाएं तो यह भी कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी।
भ्रष्टाचार के खिलाफ केंद्रीय जांच एजेंसियों की मुहिम के बीच टीएमसी में खलबली मचाने के लिए बीजेपी नेता और अभिनेता मिठुन चक्रवर्ती ने एक चौंकाने वाला बयान दिया है। उन्होंने कहा है कि बंगाल में भी महाराष्ट्र की पुनरावृत्ति हो जाये तो काई आश्चर्य नहीं। उनका दावा है कि टीएमसी के 38 विधायक बीजेपी में आने के लिए उनके संपर्क में हैं। बहरहाल देखना दिलचस्प होगा कि बंगाल की जनता भ्रष्टाचार के पोल खोल अभियान से कितना प्रभावित होती है। ममता अपनी सरकार को अस्थिर करने के केंद्र के प्रयास के रूप में इसे प्रचारित कर जनता के बीच अपनी साख बचाये रखने में कामयाब रहती हैं या उनकी सरकार के भ्रष्टाचार को उजागर कर बीजेपी बंगाल की जनता को चौंकाती है। इसका संकेत लोकसभा चुनाव से छीक साल भर पहले होने वाले पंचायत चुनाव से मिलेगा।