बीजेपी इस साल होने वाले चुनावों में जीतना चाहती है! अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले 2023 में ही 9 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने नेताओं से इन सभी चुनावों में जीत दर्ज करने के लिए कमर कसने का आह्वान किया है। 2014 में केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद से भाजपा ने ज्यादातर चुनावों में जीत हासिल की है। वह ऐसा माहौल बनाने में कामयाब रही है कि उसके सामने विपक्ष कमजोर दिखाई देता है। हालांकि जब से राहुल गांधी कांग्रेस की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ लेकर निकले हैं, थोड़ी हवा जरूर बदली है लेकिन चुनाव में कितना फायदा होगा, यह अभी नहीं कहा जा सकता है। हाल में गुजरात और हिमाचल प्रदेश में चुनाव हुए, तो पहाड़ी राज्य में कांग्रेस सत्ता हासिल करने में कामयाब भी रही। इधर भाजपा के लिए ‘कहीं खुशी कहीं गम’ वाली स्थिति बनी। गुजरात में तो प्रचंड जीत मिली लेकिन 15 साल से दिल्ली एमसीडी की सत्ता पर काबिज भाजपा को नई-नवेली आम आदमी पार्टी ने बाहर कर दिया। ऐसे अनिश्चितता भरे माहौल में क्या 9 राज्यों में भाजपा के लिए एकतरफा जीत हासिल करना इतना आसान होगा? सत्तारूढ़ भगवा दल अपने संगठन को मजबूत करने के लिए पिछले कई महीनों से मिशन 2024 में जुटा हुआ है। भाजपा की पूरी कोशिश है कि लगातार तीसरी बार कमल खिलाया जाए और एक बार फिर मोदी सरकार बने। नई दिल्ली नगरपालिका परिषद के कन्वेंशन सेंटर में नड्डा ने अपने संबोधन में देश की तरक्की गिनाते हुए नेताओं में आगामी चुनावों को लेकर जोश भरा। भाजपा अध्यक्ष ने कहा कि आज प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। मोबाइल फोन का दूसरा सबसे बड़ा प्रोड्यूसर और ऑटोमोबाइल क्षेत्र में तीसरा सबसे बड़ा प्रोड्यूसर है। उन्होंने कहा कि पहले जहां रोज 12 किमी सड़कें बनती थीं, आज के समय में यह बढ़कर 37 किमी हो गई हैं। देश ने मुफ्त अनाज सहित कई कल्याणकारी योजनाओं के साथ गरीबों को सशक्त करने के काम हो रहे हैं। नड्डा ने गुजरात विधानसभा चुनाव में पार्टी की जीत पर कहा कि 182 सदस्यों वाली विधानसभा में 150 से ज्यादा सीटें जीतना एक बड़ी उपलब्धि है।
2023 में होने वाले चुनाव 2024 से पहले सेमीफाइनल की तरह हैं। सभी पार्टियां विधानसभा चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करना चाहेंगी। भाजपा की कोशिश होगी कि वह ‘मोदी लहर बरकरार’ का संदेश देने में कामयाब रहे। अगर ऐसा होता है पीएम मोदी देश के पहले पीएम जवाहर लाल नेहरू के रेकॉर्ड की बराबरी कर लेंगे। कांग्रेस और अन्य क्षेत्रीय दलों की कोशिश होगी कि वे 2024 से पहले भाजपा को हराने का संदेश दे सकें। आज के समय में विपक्ष में एकजुटता की कमी दिखने से भाजपा को सीधी चुनौती नहीं मिल पा रही है। दिलचस्प बात यह है कि 2023 में जिन 9 राज्यों में चुनाव हैं, वहां लोकसभा की कुल 116 सीटें हैं। नड्डा ने अपने संबोधन में यह भी बताया कि भाजपा सरकारों में ओबीसी, एसी और एसटी का पर्याप्त प्रतिनिधित्व है। उन्होंने कहा कि पहली बार राष्ट्रपति के पद पर कोई आदिवासी समुदाय से पहुंचा है। उन्होंने OBC, एससी और एसटी समुदाय का जिक्र करते हुए कहा कि 2014 और फिर 2019 में भाजपा का वोटर बेस बढ़ा है। आइए समझते हैं कि इस साल कहां-कहां चुनाव हैं और नड्डा की कही बात में कितना दम है। राज्यों की मौजूदा सियासी स्थिति क्या है?
दिलचस्प यह है कि जिस नाम की चर्चा सबसे ज्यादा है, उस पर पार्टी के भीतर ही आम सहमति नहीं है। ज्योतिरादित्य सिंधिया 2 साल पहले कांग्रेस से भाजपा में आए। केंद्र उन्हें काफी तवज्जो मिली। मंत्री पद मिला और पीएम नरेंद्र मोदी से नजदीकी भी बढ़ी। हालांकि मध्य प्रदेश में शिवराज के उत्तराधिकारी के तौर पर उनके नाम पर आमराय नहीं है। एमपी में भी भाजपा गुजरात फार्म्युला लागू करने की प्लानिंग कर रही है। यहां भी 35-40 फीसदी विधायकों के टिकट काटे जा सकते हैं। नेताओं को शायद पहले ही एहसास हो गया है और इसलिए बहुत से नेता अभी से पैंतरे अपना रहे हैं। भाजपा के सामने एक डर ये भी है कि टिकट कटने से पार्टी को नुकसान न हो, कहीं हिमाचल वाली स्थिति एमपी में न हो? कांग्रेस की बात करें तो सिंधिया के जाने के बाद पार्टी थोड़ी कमजोर हुई है। हालांकि गुटबाजी में कमी आई है। हां, कमलनाथ और दिग्विजय के बीच में थोड़ा मतभेद जरूर हो सकता है। ऐसे माहौल में कांग्रेस को सहारा सत्ता विरोधी लहर का है। अब देखना यह होगा कि जनता को यह कितना समझ में आता है। हमारे संवाददाता का साफ कहना है कि एमपी में करीब दो दशक से शिवराज सिंह चौहान सरकार को देख नई पीढ़ी यानी नए वोटरो को लग सकता है कि इस बार बदल के देखो।
यह एक ऐसा राज्य है जहां भूपेश बघेल भाजपा को उसी की रणनीति से मात दे रहे हैं। जी हां, गाय-गोबर और हिंदुत्व उनके एजेंडे में शामिल है। गोबर सरकार खरीद रही है और इन सब चीजों को कांग्रेस सरकार ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था से जोड़ दिया है। जिस गाय की चर्चा भाजपा करती रहती है उसे कांग्रेस ने ‘हथियार’ बना लिया है। उधर, रमन सिंह के बाद भाजपा के पास फिलहाल कोई नया चेहरा नहीं है। ऐसे में रमन सिंह अब भी ताल ठोक रहे हैं। हाल में एक इंटरव्यू में उन्होंने इशारों में कहा कि ऐसा नहीं है कि मैं रेस में नहीं हूं। उन्होंने अपनी दावेदारी से इनकार नहीं किया है। हालांकि भाजपा सत्ता में आई तो भी रमन सिंह के सीएम बनने की संभावना नहीं है। वह 15 साल राज्य के सीएम रह चुके हैं।
इधर, भाजपा की जन आक्रोश यात्रा के जरिए सरकार के खिलाफ माहौल बनाने में कुछ हद तक सफलता मिली है। पेपर लीक मामला, क्राइम रेट बढ़ने, धर्म से जुड़े मामले, पंडितों के सुसाइड जैसे मसलों से कांग्रेस को नुकसान हो सकता है। जयपुर से हमारे संवाददाता ने बताया है कि पिछले दिनों राहुल गांधी ने ‘ऑल इज वेल’ का संदेश देते हुए एक माहौल बनाने की कोशिश की थी लेकिन भारत जोड़ो यात्रा के गुजरते ही संगठन फिर से बिखरा दिख रहा है। राज्य में 25-30 सीटें ऐसी हैं जहां आदिवासी ज्यादा हैं। अब तक वहां कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए मुश्किल आ रही थी क्योंकि वहां रीजनल पार्टियां हावी थीं। अब आदिवासियों को साधने के लिए भाजपा ने पहल की है। मोदी की रैली होने वाली है। गुर्जरों के धर्मस्थल पर भी पीएम मोदी पहुंचने वाले है। ऐसे में यह बड़ा वोटबैंक भाजपा की तरफ खिसक सकता है। राजस्थान में पैटर्न रहा है कि हर बार चुनाव में जनता सरकार बदल देती है लेकिन कांग्रेस वापसी की पुरजोर कोशिश करती दिख रही है।
दक्षिणी राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियों का दबदबा रहा है। तेलंगाना में TRS पार्टी के नेता के चंद्रशेखर राव सीएम हैं। कुछ महीने पहले वह ऐंटी-बीजेपी, ऐंटी-कांग्रेस मोर्चा बनाने की कोशिश करते दिखे थे। तब माना जा रहा था कि वह 2024 के लिए नए प्लान पर काम कर रहे हैं। ऐसे में हिंदुत्व के एजेंडे पर आगे बढ़ते हुए भाजपा के लिए इस राज्य में कमल खिलाना आसान नहीं होगा। इतना जरूर है कि तेलंगाना राष्ट्र समिति को चुनौती देने की स्थिति में भाजपा दिख रही है जो अपने आप में उसके लिए बड़ी बात है। पिछले साल के आखिर में मुनुगोडे उपचुनाव में टीआरएस 10 हजार से वोटों से जीत हासिल कर सकी। यहां भगवा दल कांग्रेस और दूसरे दलों में सेंध लगाकर अपनी स्थिति मजबूत कर रही है। राज्य में मुख्य विपक्षी दल की स्थिति में आने के पीछे यह मुख्य वजह है।
मोदी सरकार के दौरान पूर्वोत्तर राज्यों के लोगों को शायद एहसास हुआ होगा कि अब दिल्ली उतनी दूर नहीं है। दरअसल, केंद्र ने पूर्वोत्तर में विकास को काफी प्राथमिकता दी है। इस साल चार राज्यों में चुनाव होने हैं। मेघालय में लोकसभा की 2, त्रिपुरा में 2, मिजोरम में 1 और नगालैंड की 1 सीटें हैं। मेघालय और त्रिपुरा में भाजपा सत्ता में है। नगालैंड में विपक्ष रहित सरकार रही है। पूर्वोत्तर के राज्यों में कांग्रेस को भारी नुकसान हुआ है। केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद एक-एक कर पूर्वोत्तर राज्यों से कांग्रेस की सियासी जमीन खिसकती चली गई।