Friday, May 9, 2025
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क्या 2024 में बीजेपी सिमट कर रह जाएगी?

2024 में बीजेपी सिमट कर रह सकती है! बिहार की राजधानी पटना। लेफ्ट का कार्यक्रम और मंच पर जेडीयू के शीर्ष नेता मुख्यमंत्री नीतीश कुमार। मंच से वह अपील करते हैं। किसके लिए- कांग्रेस के लिए। अपील ये कि अब देर न करे कांग्रेस। बीजेपी के खिलाफ सभी पार्टियों को एकजुट कीजिए। तय कीजिए कहां-कहां कौन लड़ेगा। इसके साथ ही नीतीश ने बड़ा दावा किया कि अगर सभी विपक्षी पार्टियां एकजुट हुईं तो अगले लोकसभा चुनाव में बीजेपी 100 सीट से भी कम में सिमट जाएगी। जेडीयू नेता के इस दावे में कितना दम है? दावा हवा-हवाई है या वाकई विपक्षी एकजुटता ऐसा करिश्मा कर सकती है? आइए समझने की कोशिश करते हैं। नीतीश जब कांग्रेस से ये कहते हैं कि देर न करे तो ये सही भी है। आखिर, समय भी तो नहीं है क्योंकि अगले लोकसभा चुनाव में बमुश्किल साल भर ही बचे हैं। लेकिन क्या विपक्षी एकजुटता इतना आसान है? राहुल गांधी, ममता बनर्जी, केसीआर, अरविंद केजरीवाल…सबकी अपनी-अपनी महत्वाकांक्षाएं, सभी प्रधानमंत्री पद के दावेदार, सबके अपने तेवर। इनमें से किसी एक के नेतृत्व में बाकी सभी के साथ आने की संभावना वैसे भी दूर की कौड़ी दिख रही है। लेकिन अगर मान भी लें कि ये सभी किसी एक की अगुआई में एक साथ आ जाएं तो क्या वाकई बीजेपी 2024 में दो अंकों में सिमट जाएगी? वैसे राजनीति में कुछ भी नामुमकिन नहीं है लेकिन ताजा हालात और पिछड़े आंकड़ों पर नजर डालें तो नीतीश का दावा हवा-हवाई ही दिख रहा है।

2019 में सियासी लिहाज से सबसे बड़े और अहम सूबे यूपी में बीजेपी के खिलाफ बड़ा गठबंधन हुआ। एक दूसरे की धुर-विरोधी समाजवादी पार्टी और बहुजन समाजवादी पार्टी ने साथ मिलकर बीजेपी का मुकाबला किया। लेकिन भारतीय राजनीति में 21वीं सदी का ये सबसे अहम महागठबंधन भी बीजेपी को रोक नहीं पाया। हां, 2014 के मुकाबले उसे 9 सीटें कम आईं लेकिन ये कोई बड़ा नुकसान नहीं था। उलटे बीजेपी का वोटशेयर 2014 के मुकाबले बढ़ भी गया। 80 लोकसभा सीटों वाले यूपी में 2014 में बीजेपी ने 71 सीटें हासिल की थी, सहयोगी अपना दल (अनुप्रिया पटेल गुट) के खाते में भी 2 सीटें आई थीं। 2019 में बीजेपी को 62 सीटें और सहयोगी अनुप्रिया पटेल की पार्टी को 2 सीटें मिलीं। अखिलेश यादव और मायावती के साथ आने के बावजूद बीजेपी का वोटशेयर 2014 के 42 फीसदी के मुकाबले बढ़कर 49.98 प्रतिशत हो गया। एनडीए का वोट शेयर 51 प्रतिशत से ज्यादा। दूसरी तरफ, SP+BSP+RLD+अपना दल (सोनेलाल) गठबंधन का कुल वोटशेयर 40 प्रतिशत भी नहीं रहा (39.23%)। एक उदाहरण असम भी है। वहां 2019 में कांग्रेस और बदरुद्दीन अजमल की AIUDF साथ मिलकर लड़ी थीं लेकिन बीजेपी की सीटें 2014 के 7 से बढ़कर 9 हो गईं।

इतना ही नहीं, 543 सीटों वाली लोकसभा में बीजेपी के 200 से ज्यादा मौजूदा सांसद ऐसे हैं जिन्होंने 2019 के चुनाव में करीब 50 प्रतिशत या उससे ज्यादा वोट हासिल किए थे। यानी इन सीटों पर सभी प्रतिद्वंद्वियों और नोटा का वोट भी मिला दें तो बीजेपी उम्मीदवार से कम थे। इनमें गुजरात की सभी 26 सीटें, यूपी की करीब 40 सीटें, एमपी की 25 सीटें, राजस्थान की 23 सीटें, कर्नाटक की 20, बिहार में 14 और हरियाणा की 10 में से 9 सीटों पर बीजेपी का वोटशेयर 50 प्रतिशत से ज्यादा रहा। इसी तरह दिल्ली में भी सभी 7 सीटों पर बीजेपी उम्मीदवारों ने 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट हासिल किए। 8 लोकसभा सीटों- मुंबई नॉर्थ, भिलवाड़ा, नवसारी, सूरत, फरीदाबाद, बडोडरा, कांगड़ा और करनाल में तो बीजेपी का वोटशेयर 70 प्रतिशत से भी ज्यादा था। वैसे बिहार में तब नीतीश बीजेपी के साथ थे और महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे। अब दोनों बीजेपी के कट्टर विरोधी हैं।

गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड…ये कुछ ऐसे राज्य हैं जहां बीजेपी और कांग्रेस के अलावा किसी तीसरी सियासी ताकत का कोई खास वजूद नहीं है। जाहिर है कि अगर बीजेपी के खिलाफ विपक्ष का कोई महामोर्चा बन भी जाए तो इन राज्यों के समीकरण में कुछ खास बदलाव नहीं आएगा। हां, कांग्रेस कार्यकर्ताओं का थोड़ा मनोबल जरूर बढ़ेगा। इसी तरह तमिलनाडु, केरल जैसे राज्यों में बीजेपी के पास खोने के लिए कुछ खास है भी नहीं। पश्चिम बंगाल में भी किसी तरह के ग्रैंड अलायंस का कोई खास असर होगा, इसकी संभावना कम ही है। सूबे में चुनाव दर चुनाव कांग्रेस और लेफ्ट कमजोर ही होते दिख रहे हैं और मुख्य मुकाबला अब टीएमसी बनाम बीजेपी का ही हो गया है। इसी तरह तेलंगाना में भी मुख्य मुकाबला केसीआर टीआरएस अब बीआरएस और बीजेपी के बीच है, वहां कांग्रेस एक तरह से अप्रासंगिक सी हो गई है। कुछ यही हाल दिल्ली का भी है।

वैसे अगर विपक्ष राष्ट्रीय स्तर पर कोई एक महागठबंधन बनाने में कामयाब हो जाता है तो महाराष्ट्र, बिहार, झारखंड, पंजाब, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश जैसे कुछ ही राज्यों में बीजेपी को नुकसान पहुंचा पाने की स्थिति में होगा। खैर, सियासत में कुछ भी नामुमकिन तो नहीं लेकिन नीतीश का ये दावा कि अगर सभी विपक्षी दल एकजुट हो जाएं तो बीजेपी दो अंकों में सिमट जाएगी, शायद ही आसानी से किसी सियासी पंडित के गले उतरे।

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