लोकसभा चुनाव में बीजेपी का पसमांदा मुसलमान का दाव अब काम आ सकता है! लोकसभा चुनाव 2024 में अब ज्यादा समय नहीं है। भारतीय जनता पार्टी ने इस बार मिशन 80 का नारा दिया है। यानी यूपी की सभी 80 सीटों पर बीजेपी अपना कब्जा जमाना चाहती है। इस बड़े लक्ष्य को साधने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पसमांदा मुसलमानों पर अपना फोकस किया है। बीजेपी ने 2022 विधानसभा चुनाव के बाद से ही पसमांदा पॉलिटिक्स पर तेजी से कदम बढ़ा दिए हैं। दानिश आजाद अंसारी को योगी आदित्यनाथ सरकार में मंत्री बनाकर पार्टी ने इस वर्ग को एक बड़ा संदेश दिया। पसमांदा समाज को सत्ता में जगह देकर बीजेपी ने साफ कर दिया कि मुस्लिम समाज की यह बड़ी आबादी उसके लिए अछूती नहीं है। दानिश अंसारी पसमांदा समाज के भीतर बीजेपी की पकड़ को बढ़ाने की कोशिश करते लगातार दिख रहे हैं। वहीं, आजम खान के गढ़ रहे रामपुर के लोकसभा उपचुनाव, विधानसभा उपचुनाव और स्वार विधानसभा उपचुनाव में बीजेपी की पसमांदा पॉलिटिक्स सफल रही है। इन सीटों पर मुस्लिम समाज की बहुलता के बावजूद बीजेपी और सहयोगी दल अपना दल की जीत हुई है। 2019 लोकसभा चुनाव में रामपुर सीट से आजम खान सपा सांसद चुने गए थे। 2022 में विधायक बनने के बाद उन्होंने यह सीट छोड़ दी। उपचुनाव हुए तो सपा को झटका लग गया। बीजेपी प्रत्याशी घनश्याम लोधी ने सपा के आसिम रजा को 42 हजार से ज्यादा वोटों से हरा दिया। इस जीत के पीछे पसमांदा वोटरों की बड़ी भूमिका मानी जा रही है। इसके बाद इस साल रामपुर सीट पर हुए उपचुनाव में बीजेपी के आकाश सक्सेना ने जोरदार जीत हासिल की। हेट स्पीच मामले में तीन साल की सजा मिलने के बाद आजम खान को यह पद छोड़ना पड़ा था। उपचुनाव में सपा प्रत्याशी आसिम रजा को 33 हजार वोटों से हार नसीब हुई। आजम के बेटे अब्दुल्ला आजम को भी फर्जी जन्म प्रमाणपत्र मामले में सजा मिली थी। इसलिए उन्हें भी विधायक पद से हटना पड़ा। स्वार विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में भी पसमांदा पॉलिटिक्स नजर आई। अपना दल के प्रत्याशी शफीक अहमद अंसारी ने सपा की अनुराधा चौहान को करीब दस हजार वोटों से मात दे दी।
जुलाहे, धुनिया, घासी, कसाई, तेली और धोबी आदि को देश में मुस्लिम समाज के भीतर निचली जातियों में गिना जाता है। बीजेपी और पीएम नरेंद्र मोदी के फोकस में यह वर्ग लंबे समय से रहा है। पीएम मोदी ने हैदराबाद में वर्ष 2022 और जनवरी 2023 में हुई दिल्ली की भाजपा कार्यकारिणी बैठक में पसमांदा मुसलमानों का जिक्र किया था। बीजेपी की छवि अब तक हिंदूवादी पार्टी के रूप में रही है। मुस्लिम वोट बैंक क्षेत्र के आधार पर विपक्षी राजनीतिक दलों में बंटता रहा है। अब बीजेपी की कोशिश भी इसी वोट बैंक में सेंधमारी की है। यूपी में भी इसका असर दिखना शुरू हो गया है। पश्चिमी यूपी के कई जिलों में मुस्लिम वोट बैंक निर्णायक भूमिका में हैं। अगर इन सीटों पर बीजेपी को जीत हासिल करनी है तो मुस्लिम वोट बैंक को साधना जरूरी होगा। ऐसे में पसमांदा मुसलमानों की चर्चा कर बीजेपी विपक्षी राजनीतिक दलों के मुस्लिम वोट बैंक पॉलिटिक्स के खिलाफ एक नई रणनीति तैयार कर रही है।
यूपी में 2022 में जीतकर विधानसभा पहुंचे 35 मुस्लिम विधायकों में 30 पसमांदा हैं। इनमें भी वेस्ट यूपी के ज्यादा हैं। सीएसडीएस लोकनीति सर्वे 2022 में पता चला है कि 8 प्रतिशत पसमांदा मुस्लिमों ने 2017 विधानसभा चुनाव में बीजेपी को वोट दिया। जिन सीटों पर कम अंतर से जीत मिली, वहां पसमांदा मुस्लिमों की भूमिका अहम रही। वेस्ट यूपी में बीजेपी अपने अल्पसंख्यक मोर्चा और मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के जरिए पसमांदा मुस्लिमों पर डोरे डाल रही है। बीजेपी मानती है कि सरकारी योजनाओं का पसमांदा मुसलमानों को मिल रहे लाभ के कारण ये पार्टी की तरफ जुड़ाव रखते हैं। 2017 के विधानसभा और 2019 के लोकसभा चुनाव, निकाय चुनाव में पसमांदा मुस्लिमों का रुझान बीजेपी की तरफ देखने को मिला है।
बीजेपी ने निकाय चुनाव में 395 मुस्लिमों को खासकर पसमांदा को टिकट दिए थे, जिनमें से 61 जीते भी थे। संभल के सिरसी नगर पंचायत अध्यक्ष कौसर अब्बास कमल पर जीते थे। बरेली के धौरा टांडा नगर पंचायत अध्यक्ष नदीम उल हसन, मुरादाबाद के भोजपुर नगर पंचायत अध्यक्ष फ़र्ख़न्दा जबीं, सहारनपुर के चिलकाना नगर पंचायत अध्यक्ष पद पर फूल बानो अंसारी जीती। इसके अलावा मेरठ जिले की नगर निकाय से दो, बुलंदशहर दो, सहारनपुर में पांच, शामली में एक, एटा में चार,रामपुर से आठ, बदायूं की नगर निकायों से तीन, अमरोहा से तीन सदस्य जीते थे।
पसमांदा मूल रूप से फारसी से लिया गया शब्द है। इसका मतलब होता है, वो लोग जो पीछे छूट गए हैं, दबाए गए या सताए हुए हैं। देश में रहने वाले मुसलमानों में 15 फीसदी उच्च वर्ग के माने जाते हैं जिन्हें अशरफ कहते हैं। बाकी 85 फीसदी अरजाल, अजलाफ मुस्लिम पिछड़े हैं। इन्हें पसमांदा कहा जाता है। आंकड़े बताते हैं कि पसमांदा मुसलमानों की हालत समाज में बहुत अच्छी नहीं है। ऐसे मुसलमान आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक हर तरह से पिछड़े और दबे हुए हैं।