वर्तमान में और आने वाले चुनाव में चिराग पासवान नीतीश कुमार को मात दे सकते हैं! तो क्या बिहार में चुनावी बिसात बिछा रही भाजपा नीतीश कुमार को उनके घर में ही मात देने की तैयारी में जुट गई है। बुधवार को नीतीश कुमार के गृह क्षेत्र नालंदा में लोजपा रामविलास के सुप्रीमो और जमुई के संसद चिराग पासवान की रैली को राजनीतिक गलियारों में इस नजर से भी देखा जाने लगा है। वैसे भी नालंदा लोकसभा क्षेत्र लोजपा के लिया उन सीटों में शामिल है जहां नीतीश कुमार के जदयू उम्मीदवार को भरपूर टक्कर दी गई थी। पिछले बुधवार यानी 8 नवंबर को नालंदा की सरजमी पर चिराग पासवान का नीतीश सरकार के विरुद्ध आग उगलने को लोकसभा चुनावी संग्राम का ट्रेलर माना जा रहा है। वैसे राजनीति में न तो कोई हमेशा के लिए दोस्त होता है न दुश्मन। पर 2020 के विधान सभा चुनाव में चिराग की भूमिका पर जदयू के प्रतिरोध दर्ज होते रहे हैं। मोदी के हनुमान ने जिस तरह जदयू को नंबर वन से नंबर तीन का पार्टी बना डाला, उसकी भड़ास निकालते आज भी यदा कदा जदयू नेता नजर आयेंगे। अपरोक्ष रूप से जदयू की नजर में लोजपा की भूमिका को भाजपा की रणनीति करार देते यह कहा जाता रहा कि लोजपा केवल जदयू को हराने उतरी थी। इस बार नालंदा में चिराग पासवान की रैली को चिराग की अदावत का दूसरा अध्याय की नींव रखने के चश्मे से देखा जा रहा है।
यूं तो आगामी लोकसभा चुनाव के मद्दे नजर बिहार की 40 लोकसभा सीट एनडीए गठबंधन के लिए महत्वपूर्ण है। पर नालंदा लोकसभा सीट एनडीए के लिए विशेष बन गया है। इस सीट पर विशेष दृष्टि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की भी है। गत रामनवमी के समय अमित शाह के आगमन के दिन नालंदा और सासाराम दंगे की भेंट चढ़ गया था। वैसे भी नालंदा लोकसभा सीट से लोजपा खम ठोक चुकी है। वह भी काफी मजबूती से। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में लोजपा ने जदयू उम्मीदवार को कड़ी टक्कर दी थी। तब जनता दल यूनाइटेड ने भारतीय जनता पार्टी से अपना नाता तोड़ लिया था। जेडीयू तब एकला चलो की राह पर थी। बमुश्किल जदयू उम्मीदवार लगभग नौ हजार मतों से चुनाव जीते थे। तब जदयू उम्मीदवार कौशलेंद्र कुमार तीन लाख 21 हजार 982 मत मिले थे और लोजपा के सत्यानंद शर्मा को तीन लाख 12 हजार 355 मत। कांग्रेस पार्टी से पूर्व डीजीपी आशीष रंजन सिन्हा चुनाव लड़े थे। उन्हें कुल एक लाख 27 हजार 270 मत मिले थे।
भाजपा के रणनीतिकारों की माने तो नालंदा लोकसभा सीट अमित शाह की प्राथमिकता में है। हालांकि अभी सीट शेयरिंग पर कोई बात नहीं हुई है। पर ऐसा कहा जा रहा है कि भाजपा नवादा से चुनाव लड़ना चाहती है। यह सीट लोजपा की है और यहां से लोजपा के चंदन सिंह ने जीत दर्ज की थी। अब इसके बदले में नालंदा और मुंगेर लोकसभा से लोजपा के चुनाव लड़ने की चर्चा है। नालंदा लोकसभा से तो पूर्व विधायक सतीश कुमार को उतारने की तैयारी भी लोजपा कर चुकी है। नालंदा में लोजपा की रैली को चुनावी तैयारी से जोड़कर देखा जाने लगा है। ऐसा इसलिए भी कि बुधवार की रैली के पहले भी नालंदा के कई और जगहों पर लोजपा ने रैली की थी। और इन तमाम रैलियों के सूत्रधार थे सतीश कुमार। वहीं सतीश कुमार जिन्होंने वर्ष 1994 के फरवरी माह में कुर्मी चेतना महारैली कर नीतीश कुमार को राजनीतिक संजीवनी दी थी। यह वही समय नीतीश कुमार के साथ मिलकर लव और कुश समीकरण को पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान से आवाज थी। तब उस रैली के भी सूत्रधार सतीश कुमार ही थे। बहरहाल, नालंदा लोकसभा सीट पर कौन लड़ेगा यह तय नहीं है, पर इतना तो तय है कि मोदी के हनुमान ने अंगदी पांव टीका दिया है।
सतीश कुमार की राजनीति वाम दल के साथ शुरू हुई। वर्ष 1990 में ये सूर्यगढ़ा से विधायक हुए और वर्ष 1995 में समता पार्टी से अस्थावां सीट के विधायक भी रहे। ये वही सतीश कुमार हैं जो कुर्मी चेतना मंच के संयोजक थे। इन्हीं के नेतृत्व में 12 फरवरी, 1994 को पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में कुर्मी चेतना महारैली हुई थी। यह वही रैली थी, जिसके मंच से नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री बनने की पटकथा लिखी गई थी। यह दीगर कि नीतीश कुमार इस महारैली में शामिल नहीं होना चाहते थे। वजह भी साफ थी कि नीतीश कुमार को इस बात का डर था कि वह इस रैली में शामिल हुए तो इन पर कुर्मी जाति के नेता होने का ठप्पा लग जायेगा। लेकिन कुर्मी के कुछ नेताओं के कहने पर और लालू प्रसाद की कोई बात चुभ जाने के बाद इस रैली में शामिल हुए। बाद में कुर्मी चेतना से मिली ताकत के बाद समता पार्टी का गठन हुआ और यह वही वक्त था जब नीतीश कुमार पर अटल बिहारी वाजपेयी की नजर पड़ी। उन्होंने नीतीश कुमार को गठबंधन का बतौर मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट भी किया।