चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस जातिगत जनगणना करवा सकती है! माहौल चुनावी है। अगले साल लोकसभा चुनाव होने हैं। कुछ महीनों में कई राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं। इसे लेकर सियासत गरम है। कांग्रेस ने जाति के इर्दगिर्द अपनी सियासी बिसात बिछा दी है। राहुल गांधी और कांग्रेस के तमाम दूसरे नेताओं के बयानों से इस बात को आसानी से समझा जा सकता है। मध्य प्रदेश भी उन्हीं राज्यों में है जहां जल्द चुनाव होने हैं। राहुल ने शनिवार को यहां भी चुनावी रैली में ओबीसी कार्ड खेल दिया। उन्होंने वादा किया कि अगर उनकी पार्टी केंद्र की सत्ता में आई तो वह जाति आधारित जनगणना कराएगी। अन्य पिछड़ा वर्ग ओबीसी के मुद्दे को वह बार-बार सेंटर में लाने की कोशिश में जुटे हैं। कांग्रेस की पॉलिसी में इसे भी बड़ा उलटफेर ही कह सकते हैं। पॉलिसी में यह बदलाव समय के साथ आया है। कभी उन्हीं राहुल के पिता राजीव गांधी ने सदन के पटल पर वीपी सिंह का विरोध किया था। यह उस वक्त की बात है जब मंडल कमिशन एक्ट को लागू करना था। बीजेपी प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने भी इसका जिक्र किया है। केंद्र की राजीव गांधी सरकार पर बोफोर्स रक्षा सौदों में दलाली के आरोपों के बाद वीपी सिंह ने इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद वह लगातार कांग्रेस से दूर होते गए। वीपी सिंह बोफोर्स मुद्दे को लेकर ही जनता के बीच गए। 1989 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस हार गई। चुनाव में जनता दल ने अपने घोषणा पत्र में लिखा था कि अगर वह सत्ता में आई तो मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करेगी। कम्युनिस्टों और बीजेपी के समर्थन से वीपी सिंह प्रधानमंत्री बने। 7 अगस्त 1990 को वीपी सिंह सरकार ने मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करने का ऐलान कर दिया। मंडल कमीशन ने पिछड़ा वर्ग इंदिरा सरकार के बाद राजीव गांधी सरकार ने भी इस पर कोई ऐक्शन नहीं लिया। राजीव ने सदन के पटल में मंडल कमीशन एक्ट को लागू करने का विरोध किया था। हालांकि, मंडल कमीशन ऐक्ट लागू होने के बाद देश की राजनीति ही बदल गई। अब तक सत्ता की राजनीति से दूर पिछड़ा वर्ग मुखर हो गया।के लिए 27 फीसदी आरक्षण की सिफारिश की थी। इसे लागू करने के ऐलान के बाद ही पूरे देश में आग लग गई। इसने वीपी सिंह को सवर्णों का सबसे बड़ा विलेन बना दिया। हालांकि, वह सामाजिक न्याय के मसीहा बन गए। मंडल की राजनीति के खिलाफ बीजेपी की कमंडल की राजनीति शुरू हुई थी।
आरक्षण लागू करने से पहले ही वीपी सिंह सरकार गिर गई थी। हालांकि, 1991 में केंद्र की सत्ता में जीतकर लौटी कांग्रेस को मंडल कमीशन की सिफारिशों के आधार पर आरक्षण लागू करना पड़ा। देखने वाली बात यह है कि आयोग ने 1980 में अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। 1982 में राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद इसे सदन के पटल पर रखा गया। यह और बात है कि इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। इंदिरा सरकार के बाद राजीव गांधी सरकार ने भी इस पर कोई ऐक्शन नहीं लिया। राजीव ने सदन के पटल में मंडल कमीशन एक्ट को लागू करने का विरोध किया था। हालांकि, मंडल कमीशन ऐक्ट लागू होने के बाद देश की राजनीति ही बदल गई। अब तक सत्ता की राजनीति से दूर पिछड़ा वर्ग मुखर हो गया।
राहुल गांधी जाति पर दोबारा सियासी बिसात बिछाने में जुट गए हैं। संसद में महिला आरक्षण विधेयक पर बहस के दौरान भी उन्होंने ओबीसी का मुद्दा उठाया था। इसमें अन्य पिछड़ा वर्ग ओबीसी श्रेणी की महिलाओं के लिए आरक्षण नहीं होने की बात कही थी। शनिवार को मध्य प्रदेश में चुनौवी रैली को संबोधित करते हुए फिर उन्होंने ओबीसी कार्ड खेला। बता दें कि 1990 को वीपी सिंह सरकार ने मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करने का ऐलान कर दिया। मंडल कमीशन ने पिछड़ा वर्ग के लिए 27 फीसदी आरक्षण की सिफारिश की थी। इसे लागू करने के ऐलान के बाद ही पूरे देश में आग लग गई। इसने वीपी सिंह को सवर्णों का सबसे बड़ा विलेन बना दिया। हालांकि, वह सामाजिक न्याय के मसीहा बन गए। मंडल की राजनीति के खिलाफ बीजेपी की कमंडल की राजनीति शुरू हुई थी। कांग्रेस नेता कहा कि अगर उनकी पार्टी केंद्र की सत्ता में आई तो वह देश में अन्य पिछड़ा वर्ग ओबीसी के लोगों की सही संख्या जानने के लिए जाति आधारित जनगणना कराएगी। गांधी ने दावा किया कि बीजेपी के निर्वाचित प्रतिनिधियों के बजाय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आरएसएस और केंद्र सरकार के अधिकारी देश के कानून बना रहे हैं।