क्या कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे लोकसभा चुनाव में नहीं उतरेंगे?

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यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे लोकसभा चुनाव में उतरेंगे या नहीं! लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के भीतर से एक बड़ी खबर सामने आई है। ऐसी संभावना है कि कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खरगे इस बार लोकसभा चुनाव नहीं लड़ सकते हैं। इस खबर के बाद कुछ वर्गों में खतरे की घंटी बजा दी है। लोकसभा के मैदान में कांग्रेस के कमांडर के मैदान से हटने की खबर को लेकर हालांकि, आधिकारिक रूप से कुछ नहीं कहा गया है। अगर ऐसा होता है कि कांग्रेस के नेताओं के साथ ही लाखों कार्यकर्ताओं में इसका संदेश ठीक नहीं जाएगा। कांग्रेस के एक धड़े का मानना है कि खरगे को आगे बढ़कर लोकसभा चुनाव में नेतृत्व करना चाहिए। रिपोर्ट में कहा गया है कि खरगे ने एक महत्वपूर्ण पहलू की ओर इशारा किया है। उनका कहना है कि वे अपने पर्सनल प्रचार अभियान में शामिल हुए बिना व्यापक तौर पर पार्टी का ध्यान रखना चाह रहे हैं। खरगे ने कहा है कि वह एक निर्वाचन क्षेत्र तक सीमित नहीं रहना चाहते बल्कि पूरे देश में ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं। रिपोर्ट के अनुसार इससे पह कर्नाटक के लिए उम्मीदवारों की सूची में खरगे के नाम पर सर्वसम्मति थी। पिछले सप्ताह हुई चर्चा में उनके गुलबर्गा संसदीय सीट से चुनाव लड़ने की बात थी। रिपोर्ट में करीबी सूत्रों के हवाले से कहा गया कि खरगे की तरफ से अपने दामाद राधाकृष्णन डोड्डामणि को चुनाव लड़वाया जा सकता है।

खरगे गुलबर्गा संसदीय क्षेत्र से दो बार जीत हासिल कर चुके हैं। हालांकि, 2019 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद से वह राज्यसभा में हैं। खरगे राज्यसभा में नेता विपक्ष हैं। उनके पास उच्च सदन में अभी चार साल और बचे हैं। खरगे के बेटे प्रियांक खरगे कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के मंत्रिमंडल में मंत्री हैं। रिपोर्ट्स में कहा गया है कि वह लोकसभा चुनाव लड़ने के इच्छुक नहीं हैं। वास्तव में, कांग्रेस आम चुनाव के लिए राज्य के मंत्रियों को उतारने से बच रही है। कांग्रेस में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव नहीं लड़ने का कोई रिकॉर्ड नहीं है। हाल के वर्षों में, सोनिया गांधी और राहुल गांधी दोनों ने चुनाव लड़ा और जीता है। , हालांकि राहुल गांधी 2019 में स्मृति ईरानी से पार्टी का गढ़ में हार गए थे। दूसरी तरफ बीजेपी में जेपी नड्डा भी इस साल चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। 2014 और 2019 में, तत्कालीन बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह और अमित शाह ने लखनऊ और गांधीनगर से बड़ी जीत हासिल की! बता दे कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव के लिए शुक्रवार को 39 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर दी है। इसमें राहुल गांधी, छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल समेत कई वरिष्ठ नेताओं के नाम शामिल हैं। कांग्रेस ने इस लिस्ट में केरल से भी उम्मीदवारों की घोषणा की है। पार्टी ने अलाप्पुझा संसदीय सीट से अपने महासचिव (संगठन) के सी वेणुगोपाल को टिकट दिया है। ऐसे में अगर लोकसभा चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार वेणुगोपाल जीत जाते हैं तो इससे कांग्रेस को ही नुकसान होगा। वेणुगोपाल की जीत का मतलब होगा कि कांग्रेस राज्यसभा में बीजेपी के हाथों अपनी एक सीट खो देगी। वजह है कि वेणुगोपाल वर्तमान में राजस्थान से राज्यसभा सांसद हैं। ऐसे में लोकसभा जीतने के बाद उन्हें अपनी राज्यसभा की सीट छोड़नी होगी।

केरल में अलाप्पुझा लोकसभा सीट से जीत के बाद वेणुगोपाल के राज्यसभा की सदस्यता छोड़ने के बाद उपचुनाव होगा। उपचुनाव होने की स्थिति में कांग्रेस के पास अपने उम्मीदवार को फिर से जीताने के लिए विधानसभा में संख्या बल नहीं है। वेणुगोपाल के आलोचक भी उनकी उम्मीदवारी को वरिष्ठ नेता के रूप में मुख्यमंत्री पद की दौड़ में शामिल मानते हैं। राजनीति के जानकार मानते हैं कि अगर कांग्रेस 2026 का विधानसभा चुनाव जीतती है तो संभव है कि वेणुगोपाल को मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है। केरल के नेता इस निर्णय पर एकमत थे कि वेणुगोपाल को 2019 के चुनावों में पार्टी की तरफ से हारी गई एकमात्र सीट हासिल करने के लिए अलाप्पुझा से लड़ने के लिए वापस आना चाहिए था। उस समय उन्होंने चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया था।

हालांकि, सूत्रों ने कहा कि वेणुगोपाल को टिकट देने पार्टी लीडरशिप को जाति और धर्म समीकरणों को संतुलित करने के लिए कुछ अजस्ट करना पड़ा। इसमें वडकारा के सांसद के मुरलीधरन को त्रिशूर से टिकट दिया गया हैं। वहां से टीएन प्रतापन को हटा दिया गया। यदि वेणुगोपाल के साथ सभी मौजूदा सांसदों को मैदान में उतारा जाता है, तो कांग्रेस बिना मुस्लिम उम्मीदवार के इस बार केरल में लोकसभा चुनाव में उतरेगी। इस वजह से नेतृत्व ऐसी स्थिति से बचना चाहता था। हालांकि, शुरुआत में कन्नूर में एक मुस्लिम उम्मीदवार को मैदान में उतारने की योजना थी। वहां से केरल के कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष के. सुधाकरन ने शुरू में चुनाव नहीं लड़ने की इच्छा जताई थी।