राहुल गांधी के लिए 3 दिसंबर सबसे बड़ा ऐतिहासिक दिन साबित हो सकता है! पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के लिए तारीखों का ऐलान हो चुका है। इनमें से अधिकांश राज्यों में मुख्य मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही है। देखा जाए तो पांच राज्यों के चुनाव कांग्रेस के लिए मौका भी है और चुनौती भी है। कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में अपनी हालिया जीत को पार्टी आगे बढ़ाना चाहेगी। 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के लिए मुख्य चुनौती बनना और विपक्षी दलों के गठबंधन I.N.D.I.A के केंद्रबिंदु में अपनी स्थिति को पार्टी इन चुनावों के जरिए मजबूत कर सकती है। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में एंटी इनकंबेंसी के डर से आगे जाने वाला यह इलेक्शन है साथ ही बीजेपी के अलावा तेलंगाना में बीआरएस भी मुकाबला है। 5 राज्यों के चुनाव में कांग्रेस पार्टी की ओर से कुछ नए प्रयोग भी किए जा रहे हैं। इन चुनावों से ठीक पहले कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी जातीय जनगणना की मांग पुरजोर तरीके से उठा रहे हैं। 3 दिसंबर को जब चुनाव के नतीजे आएंगे उससे कांग्रेस को उन सवालों के जवाब भी मिल जाएंगे जिसका जवाब 2024 से पहले जानना जरूरी है। राजनीति में परसेप्शन का एक बड़ा खेल होता है। कर्नाटक चुनाव के बाद कांग्रेस कार्यकर्ताओं का जोश बढ़ा है और उन्हें लगता है कि पार्टी लोकसभा चुनाव में बेहतर कर सकती है। हालांकि उससे पहले इन 5 राज्यों के चुनाव उसके लिए काफी अहम हैं। छत्तीसगढ़ और राजस्थान… इसमें खासकर राजस्थान जहां पांच साल बाद सरकार बदल जाती है। कांग्रेस नेता दावा कर रहे हैं कि राजस्थान में इस बार कुछ अलग होगा। नेता जो कुछ भी दावा करें लेकिन रिजल्ट 3 दिसंबर को ही पता चलेगा। कांग्रेस की कोशिश रहेगी कि वह एंटी इनकंबेंसी के इस डर को दूर भगाए।
मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान ये राज्य कांग्रेस के लिए अहम तो है ही साथ ही तेलंगाना का चुनाव भी उसके लिए काफी मायने रखता है। कुछ महीने पहले तक की बात है जब उसे इस राज्य में पूरी तरह मुकाबले से बाहर बताया जा रहा था लेकिन कुछ दिन पहले आए ओपिनियन पोल के नतीजे काफी चौंकाने वाले दिखाई दिए। पार्टी ने तेलंगाना में पूरा जोर लगा दिया है। पांच राज्यों में जो बाजी मारेगा वही लोकसभा जीतेगा ऐसा नहीं है लेकिन एक बात तो तय है कि जो जीतेगा वह परसेप्शन के खेल में आगे निकल जाएगा।
राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़, इन तीन राज्यों में मुख्य मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच है। हालांकि इन दोनों के अलावा कई दूसरे दल भी मैदान में हैं। यदि देखा जाए तो उन दलों की संख्या अधिक है जो विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A के ही साथी हैं। आम आदमी पार्टी इन चुनावों में मजबूती के साथ मैदान में उतर रही है तो वहीं मध्यप्रदेश की कई सीटों पर I.N.D.I.A गठबंधन के दूसरे साथी अखिलेश यादव की पार्टी समाजवादी पार्टी भी है। पिछले कुछ समय से I.N.D.I.A गठबंधन के भीतर सीटों के बंटवारे और दूसरी मीटिंग को लेकर कोई खबर सामने नहीं आ रही है। सभी की नजर इन चुनावों पर है।
सबसे अधिक कांग्रेस की नजर इन चुनावों पर है। कांग्रेस का प्रदर्शन काफी कुछ I.N.D.I.A के भीतर निर्धारित करने वाला है। यदि इन चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन बेहतर रहता है तो पार्टी यह मैसेज देने में कामयाब रहेगी कि साथी दल भी मैदान में आए बावजूद इसके उसके नतीजे उसके पक्ष में रहे। यदि नतीजे पक्ष में नहीं रहे तो काफी हद तक इस बात की भी संभावना है कि I.N.D.I.A गठबंधन के भीतर खटपट बढ़ जाएगी। यानी काफी कुछ I.N.D.I.A गठबंधन का रोडमैप 2024 से पहले इन्हीं चुनावों से तय होगा।
अब आते हैं उस मुद्दे पर जिसकी मांग पिछले कुछ समय से कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी जोर-शोर से उठा रहे हैं। राहुल गांधी यह कह चुके हैं कि जिन राज्यों में उनकी सरकार होगी वहां जातीय जनगणना होगी। इससे पूर्व जातीय जनगणना और जिसकी जितनी हिस्सेदारी उसकी उतनी भागीदारी वाली बात I.N.D.I.A के साथी लालू और नीतीश दमदार तरीके से उठा रहे थे। हालांकि अब इन दोनों से एक कदम आगे राहुल गांधी निकलते हुए दिखाई दे रहे हैं। इन चुनावों से ठीक पहले राहुल गांधी ओबीसी कार्ड खेलते हुए नजर आ रहे हैं।
कुछ दिनों पहले ही उन्होंने ओबीसी की बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि हमारे चार में से तीन मुख्यमंत्री ओबीसी वर्ग से आते हैं। उनका इशारा साफ था। साथ ही यह बात क्लियर हो गई है कि लोकसभा चुनावों में भी यह मुद्दा शामिल रहेगा। हालांकि 3 दिसंबर को जब नतीजे सामने आएंगे तब यह देखने वाली बात होगी कि राहुल गांधी ने जो कार्ड खेला वह इन चुनावों में कितना चला। जातीय जनगणना, ओबीसी कार्ड कितना काम आया यह 3 दिसंबर को ही पता चलेगा। चुनावी प्रयोगशाला में यह आइडिया कितना फिट बैठा, इस सवाल का जवाब भी उसी दिन मिलेगा।