क्या बिहार को घेर लेगा फाइलेरिया?

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बिहार में एक नए वायरस फाइलेरिया ने आतंक मचा रखा है! बिहार में फाइलेरिया बेहद जटील समस्या है। खासकर उत्तर बिहार के गांवों में जाने पर पता चलता है कि यहां हर दूसरे-तीसरे घर में फाइलेरिया के मरीज हैं। बिहार के गांवों का हाल यह है कि यहां लोग इस बीमारी के अभ्यस्त दिखते हैं। लोगों से बातचीत करने पर पता चलता है कि ज्यादातर लोग फाइलेरिया को लेकर तनिक भी जागरूक नहीं हैं। खासकर ग्रामीण बिहार का हाल सबसे ज्यादा खराब है। फाइलेरिया ग्रसित लोगों को यह तक मालूम नहीं है कि उनकी लापरवाही से उनके बच्चे और घर के दूसरे सदस्य भी इसकी चपेट में आ सकते हैं। समय समय पर राज्य सरकार फाइलेरिया के उन्मूलन के लिए कैंपेन लॉन्च करती रही है, लेकिन वर्तमान में जो हालात हैं उसको देखकर यही लगता है कि यह नाकाफी हैं। ताजा कैंपेन सीतामढ़ी जिले में शुरू किया गया है। यहां सामान्य और स्वस्थ दिखने वाले लोगों की भी जांच की जा रही है, ताकि पता चल सके कि उन्हें फाइलेरिया है या नहीं। डॉ. रवींद्र यादव ने कहा कि फाइलेरिया उन्मूलन को लेकर 4 नवंबर से नाइट ब्लड सर्वे किया जाएगा। रात 8.30 से 12 बजे तक ब्लड का सैंपल लिया जायेगा।

फाइलेरिया के प्रचार-प्रसार में मच्छर प्रमुख कारण हैं। इस वजह से फाइलेरिया उन इलाकों में सबसे ज्यादा फैलता है जहां जलजमाव की समस्या होती है। यही वजह है कि बाढ़ प्रभावित इलाकों में फाइलेरिया के केस ज्यादा दिखते हैं। यह बात तो सभी जानते हैं कि उत्तर बिहार हर साल बाढ़ की चपेट में आते हैं। इस वजह से उत्तर बिहार के ग्रामीण इलाकों में बरसात खत्म होते ही हर साल मच्छरों का प्रकोप देखने को मिलता है। मच्छर अगर फाइलेरिया ग्रसित किसी एक शख्स को काटता है और फिर वह दूसरे किसी स्वस्थ्य शख्स को जाकर काटता है तो वह इस तरह फाइलेरिया का प्रसार कर देता है। पटना के फिजिशियन डॉक्टर दिवाकर तेजस्वी ने बताया कि बिहार में एंडेमिक हैं फाइलेरिया के मच्छर। मच्छरों को प्रकोप अभी भी बिहार के अंदर कंट्रोल में नहीं हो पाया है। इसकी सबसे प्रमुख वजह यह है कि बिहार में नियमित रूप से फॉगिंग नहीं होती है। मच्छरों को कंट्रोल करने का तात्कालिक विकल्प केवल फॉगिंग ही है। हर साल बाढ़ की वजह से होने वाले जलजमाव की वजह से मच्छरों का प्रकोप बना रहता है। मच्छर ही फाइलेरिया को बढ़ाने में अहम रोल निभाते हैं। बिहार में पहले से फाइलेरिया के मरीज मिलते रहे हैं। ऐसे में मच्छर फाइलेरिया ग्रसित शख्स से कीटाणु लेकर स्वस्थ्य लोगों को इससे ग्रसित कर रहे हैं। यही वजह है कि बिहार में फाइलेरिया एंडेमिक है।

शुरुआत में फाइलेरिया को पहचाने के कोई विशेष लक्षण नहीं होते हैं। आमतौर पर फाइलेरिया के कीटाणु बॉडी में आने पर हल्का बुखार, बदन में खुजली और मर्दों के जननांग और उसके आस-पास दर्द और सूजन हो जाता है। इसके अलावा पैरों और हाथों में सूजन, हाइड्रोसिल (अंडकोष) में सूजन होने पर उसे फाइलेरिया का लक्षण माना जाता है। आमबोल चाल की भाषा में फाइलेरिया को हाथीपांव भी कहा जाता है।

दरभंगा मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (DMCH) के पूर्व सुपरिटेंडेंट डॉक्टर राज रंजन प्रसाद ने बताया कि फाइलेरिया का स्टेज अगर बढ़ जाए तो यह जीवन में कभी भी ठीक नहीं होने वाली बीमारी हो जाती है। सरकार ने एक प्लान बनाया है जिसमें जो भी आंगनबाड़ी केंद्र हैं या प्राथमिम स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) हैं वहां नि:शुल्क डाइ-इथाइल कार्वोमिजाइन साइट्रेट की गोली दी जाती है। यह ऐसी दवाई है जिसे हर कोई ले सकता है। अगर किसी को फाइलेरिया के शुरुआती लक्षण हैं तो यह दवाई उसे ठीक करेगा। अगर कोई एहतियातन या स्वस्थ्य इंसान ने यह दवाई ली है तो वह इस बीमारी से बच सकता है। इस दवाई के साइड इफेक्ट ना के बराबर है। उन्होंने बताया कि 100 में 95 लोगों में इस दवाई का कोई साइड इफेक्ट नहीं होता है। एकाध लोगों को सिरदर्द और एकाध को पेट दर्द की समस्या होती है, लेकिन उससे घबराने की जरूरत नहीं है। क्योंकि इससे कोई नुकसान नहीं है।

डॉक्टर ने बताया कि इस फाइलेरिया से हर इंसान को खुद को बचाना चाहिए। लॉन्ग टर्म में अगर हाइड्रोसिल में पानी भर जाता है तो ऑपरेशन के अलावा इसका कोई इलाज नहीं है। दूसरा अगर हाथ-पांव मोटा हो जाता है तो यह नो रिटर्न स्टेज हो जाता है। इसके बाद इंसान को जीवन भर इसी परेशानी के साथ रहना होता है। इसके अलावा फाइलेरिया ग्रसित शख्स को आए दिन सर्दी-खांसी होती रहती है। फाइलेरिया से पीड़ित व्यक्ति एक आम व्यक्ति की तुलना में शारीरिक रूप से कार्य करने में अक्षम हो जाते हैं, इसलिए सभी को चाहिए कि वे खुद को फाइलेरिया से बचाएं।

मुजफ्फरपुर जिले के फाइलेरिया उन्मूलन विभाग के प्रमुख डॉक्टर सतीश चंद्रा ने बताया कि फाइलेरिया के फैलने की सबसे बड़ी वजह यह है कि इसके बीमारी का पता चलने में काफी वक्त लग जाता है। अगर किसी को आज मच्छर काटा है तो यह जरूरी नहीं है कि दो-चार दिन में उसे पता चल जाएगा कि उसे फाइलेरिया है। कई-कई बार मच्छर काटने के 12 से 15 साल बाद शरीर में फाइलेरिया के लक्षण उभर कर आते हैं। इस वजह से इसका इन्फ्लेशन रेट बहुत ही ज्यादा है। इस वजह से बहुत से लोगों को पता ही नहीं चलता है कि उनकी बॉडी में माइक्रो फाइलेरिया है। इस वजह से जब नाइट ब्लड सर्वे करवाया जाता है तो लोग खुद को स्वस्थ्य बताकर इससे दूर भागते हैं। जब से फाइलेरिया को नीति आयोग ने अपने अधीन ले लिया है कि तब से नाइट ब्लड सर्वे पर विशेष ध्यान दिया जाने लगा है। फाइलेरिया को खत्म करने के लिए बिहार के सभी जिलों में क्रमवार MDA और IDA राउंड चलाया जाता है।

मुजफ्फरपुर जिले में अब IDA राउंड चलेगा। MDA राउंड में लोागें को दो तरह की दवाई खिलाई जाती है। पहली एल्बेंडाजोल और डीईसी (डाई एथिल कार्बामेजिन) की गोली खिलाई जाती है। IDA राउंड में आइब्रो मेक्टिन दवाई दी जाती है। यह 3 मिलीग्राम की दवाई होती है। यह इंसान के लंबाई के हिसाब दी जाती है। इसके अलावा डीईसी दवाई इंसान की उम्र के हिसाब से दी जाती है। यह दवाइयां 14 दिन का प्रोग्राम बनाकर डिस्ट्रिब्यूट किया जाता है। इसमें दो आंगनबाड़ी केंद्र को एक साथ किया जाता है। इसमें टीम एक से सातवें दिन अपने क्षेत्र में दवाई खिलाती है, अगले 8वें से 14वें दिन टीम दूसरे आंगनबाड़ी क्षेत्र में दवाई खिलाती हैं। इसमें टीम पहले से छठे दिन डोर टू डोर दवाई खिलाते हैं और और सातवें दिन जो लोग रह जाते हैं उनको चिन्हित करके उन्हें दवाई दी जाती है। यह कैंपेन पूरी तरह से इसलिए सफल इसलिए नहीं हो पा रहा है क्योंकि 4000 टीम होने की चलते इनकी मॉनिटिरिंग नहीं हो पाती है। यह दवाइयां माइक्रो फाइलेरिया को मारता है। इन दवाइयों के खाने से फाइलेरिया कीटाणु की प्रोडक्टिविटी भी कम होती है।