Friday, November 22, 2024
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क्या ज्ञानवापी मामला जाएगा सुप्रीम कोर्ट?

अब ज्ञानवापी मामला सुप्रीम कोर्ट भी जा सकता है! उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिला कोर्ट के आदेश के बाद ज्ञानवापी परिसर स्थित व्यासजी तहखाने का दरवाजा खोल दिया गया। 31 सालों के बाद वहां पूजा- अर्चना शुरू कर दी गई है। 4 नवंबर 1993 को तत्कालीन मुलायम सिंह सरकार के आदेश पर वाराणसी प्रशासन ने व्यासजी तहखाने को सील कर दिया था। इसके बाद से लगातार मंदिर के गेट को खोलने और नियमित पूजा करने की सुविधा देने का मामला जिला कोर्ट में चल रहा था। 31 दिसंबर को वाराणसी जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश ने इस मामले में बड़ा फैसला देते हुए हिंदू पक्ष को पूजा का अधिकार दे दिया। व्यासजी तहखाने के रिसीवर वाराणसी डीएम को एक सप्ताह में पूजा शुरू कराने का आदेश दिया गया। इस मामले को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता डॉ. सैयद कासिम रसूल इलियास ने एक मीडिया इंटरव्यू में बड़ा दावा किया है। उन्होंने कहा है कि ज्ञानवापी केस को सुप्रीम कोर्ट ले जाने की तैयारी है। पूजा शुरू कराकर इस मामले में दबाव बढ़ाया जाएगा। केस को प्रभावित किए जाने की तैयारी है। यही प्लान है। डॉ. इलियास ने वाराणसी कोर्ट के फैसले के बाद प्रशासन की सक्रियता को चौंकाने वाला करार दिया। दरअसल, वाराणसी की जिला अदालत की ओर से हिंदू वादियों को ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के दक्षिणी तहखाने में प्रार्थना करने की अनुमति दी गई थी। वाराणसी प्रशासन ने इस फैसले के कुछ ही घंटों के भीतर वहां पर पूजा- पाठ शुरू करा दी। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का कहना है कि आदेश और उसके बाद की घटनाएं दुर्भाग्यपूर्ण और चौंकाने वाली हैं। एआईएमपीएलबी के प्रवक्ता और वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. सैयद कासिम रसूल इलियास ने इस मामले को बाबरी विवाद से भी जोड़ा। उन्होंने कहा कि बाबरी मस्जिद मामले में 22 दिसंबर 1949 को अंदर मूर्ति स्थापित करने के बाद परिसर में ताला लगा दिया गया था। इसे 1 फरवरी 1986 को खोला गया।

फैजाबाद जिला कोर्ट ने दर्शन की अनुमति देने के लिए ताले खोलने का आदेश दिया था। उस समय भी मुस्लिम पक्ष को सुने बिना फैसला सुनाया गया था। उस समय दूरदर्शन के जरिए बड़े पैमाने पर प्रचार किया कि रामलला की पूजा की जा सकती है। कल रात ज्ञानवापी में जो हुआ वह बिल्कुल वैसा ही प्रतीत होता है। एआईएमपीएलबी के प्रवक्ता ने कहा कि बाबरी मामले में जब स्वामित्व का मुकदमा अदालत में लंबित था। उस समय भी मस्जिद के अंदर दर्शन और पूजा अर्चना शुरू की गई थी। ठीक ऐसा ही बुधवार को ज्ञानवापी में भी हुआ। कोर्ट में एक आवेदन दायर किया गया था और कोर्ट ने व्यासजी तहखाने के अंदर पूजा करने का आदेश दिया। कोर्ट ने प्रशासन को व्यवस्था करने के लिए सात दिन का समय दिया। लेकिन, देर रात तक सारी व्यवस्थाएं कर ली गईं और पूजा शुरू कर दी गई। भले मामले में सुनवाई जारी रहेगी, लेकिन यह स्थिति गलत है।

एआईएमपीएलबी के प्रवक्ता डॉ. इलियास ने कहा कि कोर्ट के आदेश से परिसर में तनाव की स्थिति पैदा हो सकती है। एक वर्ग वहां पूजा के लिए जाएगा। दूसरा पक्ष मस्जिद में नमाज के लिए पहुंचेगा। इससे संघर्ष की स्थिति बन सकती है। उन्होंने कहा कि हिंदू पक्ष का यहां दावा कितना मजबूत होगा ये ईश्वर जानें। लेकिन, वर्तमान स्थिति सही नहीं है। वहां पर पूजा की इजाजत दिए जाने से पहले इस सवाल पर निर्णय लेने की जरूरत है कि क्या मस्जिद किसी और चीज के ऊपर बनाई गई है। इस सवाल का जवाब तय किए बिना वहां पर पूजा की इजाजत कैसे दी जा सकती है?

एआईएमपीएलबी के प्रवक्ता ने बाबरी मस्जिद पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भी बड़ा बयान दिया। उन्होंने कहा कि हमने बाबरी मामले में कोर्ट के आदेश को नहीं माना था। हमारी ओर से एक समीक्षा याचिका दायर की थी, लेकिन इसे खारिज कर दिया गया। उसके बाद हमारे पास कोई विकल्प नहीं बचा था। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने फैसला तो दिया, लेकिन बाबरी मामले में न्याय नहीं किया। ज्ञानवापी मामले में ऐसा फैसला हमें कैसे स्वीकार्य हो सकता है? उन्होंने कहा कि आपके पास कोई सबूत न होने के बावजूद भी आप पूजा शुरू कर देते हैं? जब तक ये मामला सुप्रीम कोर्ट में जाएगा, तब तक काफी पानी बह चुका होगा। तहखाना में पूजा जारी रहेगी और इससे केस पर असर पड़ेगा। यह एक सोची- समझी योजना है।

डॉ. इलियास ने सभी दलों पर बड़ा आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि सभी विपक्षी दल अवसरवादी हैं। उन्हें डर है कि अगर वे इस मामले में कुछ भी बोलेंगे तो हिंदू उनसे नाराज हो जायेंगे। आपको इंसाफ के बारे में बोलना चाहिए। जो सही है वह कहो। मौन रहना किसी भी मुद्दे का समाधान नहीं है। विपक्षी दल कहेंगे कि वे अदालत के फैसले के खिलाफ कुछ नहीं कर सकते। लेकिन वे कम से कम तब टिप्पणी कर सकते हैं जब अदालत कोई गलत निर्णय देती है। यह कहना गलत होगा कि जो कुछ भी हो रहा है, सभी हिंदू उसका समर्थन करते हैं। मंदिर- मस्जिद विवाद पैदा किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि बात मथुरा और काशी तक ही सीमित नहीं है। लखनऊ की टीले वाली मस्जिद जैसी कई अन्य मस्जिदों पर भी दावे किए गए हैं। अगर यही सिलसिला जारी रहा तो कल मंदिरों पर भी बौद्धों की ओर से दावा किया जाएगा। हम देश को किस दिशा में ले जा रहे हैं?

प्रवक्ता ने कहा कि यह दावा भी गलत है कि 1993 तक ज्ञानवापी दक्षिणी तहखाने में प्रार्थना और पूजा की जाती थी। यह पूजा स्थल अधिनियम की भावना के भी खिलाफ है। विरोधी पक्ष को अपील दायर करने का समय दिया जाना चाहिए था। मामला हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक जाएगा। हालांकि, जब आप अंतरिम फैसले के आधार पर वहां पूजा की इजाजत दे देते हैं, तो मामले में फैसला करने के लिए क्या बचता है? सबसे पहले, मस्जिद के नीचे क्या मौजूद है, इसे अदालत में साबित किया जाना चाहिए। ऐसे फैसलों के बाद पूरा मामला ही अर्थहीन हो जाता है।

एआईएमपीएलबी के प्रवक्ता ने कहा कि अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद जिला अदालत और हाई कोर्ट में मुकदमा लड़ेगी। मामला जब सुप्रीम कोर्ट में आएगा तो एआईएमपीएलबी हस्तक्षेप करने पर विचार करेगा। अभी तक हमारी कानूनी टीम अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद से संपर्क में है। हम उन्हें कानूनी राय के साथ मदद करेंगे। इस मामले में एआईएमपीएलबी कोई पार्टी नहीं है, लेकिन बोर्ड एक पार्टी है। मामला मस्जिद से जुड़ा है। अभी यह कहना कठिन है। हमारा मानना है कि जब भी प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 को लागू किया जाएगा तो वहां ऐसी कोई बात नहीं होनी चाहिए। यह साबित हो चुका है कि ज्ञानवापी मस्जिद कई साल पुरानी है। यह दावा करना गलत है कि इसे औरंगजेब ने बनवाया था, क्योंकि रिकॉर्ड कहते हैं कि मस्जिद का निर्माण बहुत पहले हुआ था।

डॉ. इलियासी ने कहा कि इसका जीर्णोद्धार औरंगजेब के शासनकाल के दौरान ही किया गया था। इस्लाम में यह धार्मिक आदेश है कि आप किसी दूसरे की ज़मीन पर अवैध कब्ज़ा करके या किसी मंदिर या किसी अन्य पूजा स्थल को तोड़कर मस्जिद नहीं बना सकते। इसलिए यह आरोप गलत है कि मुसलमानों ने मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई। बाबरी मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि इसका निर्माण किसी मंदिर को तोड़कर किया गया था।

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