क्या समाजवादी पार्टी का सफाया करेंगे गृहमंत्री अमित शाह?

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गृहमंत्री अमित शाह अब समाजवादी पार्टी का सफाया कर सकते हैं! बिहार को प्राथमिकता में रखने वाले अमित शाह का मुजफरपुर दौरा केवल एहतियाती कदम नही, बल्कि गढ़ बरकरार रखने की चुनौती से जूझने और जीत को सुनिश्चित करने का मार्ग ढूंढने आ रहे हैं। काफी प्रयास के बाद मुजफ्फरपुर सीट को भाजपा के नाम कराने वाले अमित शाह इस बार भी काफी फोकस्ड हैं। वैसे भी अमित शाह की रणनीति में वह सीट प्राथमिकता में है जहां भाजपा ने जीत का परचम लहराया। मुजफ्फरपुर उनमें से एक है। कांग्रेस और समाजवादियों के गढ़ को भेदने में भारतीय जनता पार्टी को कई दशक लग गए। 2014 में समाजवादी नेता जयनारायण निषाद के बेटे अजय निषाद ने मुजफ्फरपुर लोकसभा की नींव रखी। इसकी निरंतरता बनाए रखते 2019 लोकसभा चुनाव में भी परचम लहराया। मुजफ्फरपुर संसदीय सीट परंपरागत तौर पर कांग्रेस का गढ़ रहा। मुजफ्फरपुर लोकसभा क्षेत्र 1952 में कांग्रेस के नेता श्याम नंदन सहाय ने रखी थी। 1957 में भी कांग्रेसी नेता श्यामा नंदन सहाय ने अपनी जीत की बरकरार रहा। कांग्रेस के नाम यह सीट, 1962और 1967 में भी बरकरार रहा। विजय का सेहरा दिग्विजय नारायण सिंह के सिर बंधा। 1972 के लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस के नवल किशोर सिन्हा ने जीत का परचम लहराया। 1977 के चुनाव में कांग्रेस को मात मिली, मगर 1984 में ललितेश्वर शाही ने एक बार फिर जीत का सेहरा कांग्रेस के नाम किया। 1984 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस की झोली में अंतिम जीत साबित हुई।

कांग्रेस के गढ़ को समाजवादियों ने वैसे तो 1957 के उपचुनाव में भेद डाला था। तब प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के अशोक मेहता ने कांग्रेस के गढ़ में समाजवादियों की मजबूत स्थिति को दिखलाया। 1957 में पहली बार इस सीट से कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। इस सीट से सबसे ज्यादा बार जीतने का रेकॉर्ड भी समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडिस का रहा है। 1977 के लोकसभा चुनाव से 2004 के लोकसभा चुनाव में कुल पांच बार फर्नांडिस चुनाव जीतते रहे। इस बीच में 1984 में कांग्रेस के ललितेश्वर शाही और 1996, 1998, 1999 और 2009 के चुनाव में विभिन्न समाजवादी दल के टिकट से जयनारायण निषाद जीत दर्ज कराते रहे हैं।

भाजपा की झोली में मुज़फ्फरपुर लोकसभा सीट 2014 के लोकसभा चुनाव में हासिल हुई। वर्ष 2014 में मुजफ्फरपुर लोकसभा क्षेत्र से अजय निषाद सांसद चुने गए। उन्हें 469295 वोट मिले। उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार अखिलेश सिंह को 222422 वोटों से हराया। 2019 लोकसभा चुनाव में भी भाजपा उम्मीदवार अजय निषाद ने जीत दर्ज की। तब उनका मुकाबला वीआईपी के राजभूषण चौधरी से था। अजय निषाद को 6,66,878 मत मिले जबकि राजभूषण को 256890 मत मिले।

2024 में मुजफ्फरपुर लोकसभा चुनाव जीतना आसान नहीं है। मुजफ्फरपुर लोकसभा चुनाव हेतु भाजपा की चिंता राज्य में बदली गंठबंधन के चेहरे को लेकर है। आइए इस लोकसभा चुनाव में भाजपा की मूल चुनौतियां क्या है? 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को अपने सबसे मजबूत साथी जदयू के बगैर लड़ना होगा। वर्तमान सांसद अजय निषाद को वी आई पी के सर्वेसर्वा मुकेश सहनी यानी आपनी जाति के वोट

को हासिल करना होगा, इस बार पिछड़ा और अत्यंत पिछड़ा का वोट पाने में मुश्किल हो सकती है। बिहार में पिछड़ा और अतिपिछड़ा वोट बैंक पर नीतीश कुमार और वाम दलों की अच्छी पकड़ है। बाजी पलटने में माहिर राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव का राजनीति में अचानक सक्रिय हो जाना। जातीय सर्वे से निकला जातीय जकड़न का जिन्न।

बिहार में हुई जातीय सर्वे के बाद वोटों का समीकरण कागजों पर महागठबंधन के पक्ष में जाता दिखता है। ऐसे में भाजपा के लिए तुरुप का पत्ता साबित हो सकता है, हिंदुत्व की छतरी के तले तमाम जातियों को लाना। एक तरह से कहे तो हार्डकोर हिंदुत्व की लड़ाई भाजपा के फायरब्रांड नेता गिरिराज सिंह ने कर दी है। इनकी इस रणनीति में शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर का रामायण पर आया बयान और विधायक फतेह बहादुर सिंह का दुर्गा माता पर किया कटाक्ष भी जीत के मार्ग में सहायक बन सकता है। इस सीट से सबसे ज्यादा बार जीतने का रेकॉर्ड भी समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडिस का रहा है। 1977 के लोकसभा चुनाव से 2004 के लोकसभा चुनाव में कुल पांच बार फर्नांडिस चुनाव जीतते रहे। इस बीच में 1984 में कांग्रेस के ललितेश्वर शाही और 1996, 1998, 1999 और 2009 के चुनाव में विभिन्न समाजवादी दल के टिकट से जयनारायण निषाद जीत दर्ज कराते रहे हैं।बहरहाल, अपनी रणनीतियों के साथ केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह मुजफ्फरपुर आ रहे हैं। अपने उदगार में क्या व्यक्त करते हैं, वह मुजफ्फरपुर लोकसभा का भाग्य तय करेगा।