भारत अब अपने मिसाइल भंडार में वृद्धि करने वाला है! चीन के साथ संघर्ष लंबा खिंच गया है। बातचीत और बैठकों के तमाम दौर के बीच आश्वासन पर आश्वासन मिले, लेकिन वास्तविक नियंत्रण रेखा पर स्थिति सामान्य हो नहीं पाई। सलामी स्लाइसिंग की नीति के तहत अतिक्रमण की पुरानी वारदातों के कारण चीन पर अब और भरोसा नहीं किया जा सकता है। इसलिए अब किसी भी खतरे से निपटने की तैयारी ही वक्त की मांग है। भारत इसी मांग को पूरा करने में जुटा है और चीन की चुनौतियों के मद्देनजर अपनी सामरिक शक्ति बढ़ाने के लिए मिसाइलों का भंडार तेजी से बढ़ा रहा है। इस भंडार में छोटी और लंबी, दोनों दूरी की मिसाइलें शामिल की जा रही हैं। ये मिसाइलें दुश्मन के खेमे में तबाही तो बरपाएंगी ही, परमाणु प्रतिरोध के रणनीतिक त्रिकोण का भी एक मोर्चा बनेंगी। 150 से 500 किमी की मारक क्षमता वाली बैलिस्टिक मिसाइल प्रलय बनकर तैयार है। इसे रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन DRDO ने बनाया है। वहीं, लंबी दूरी से जमीन पर मार करने वाली क्रूज मिसाइलों LR-LACMs और पनडुब्बी से छोड़ी जाने वाली क्रूज मिसाइलों SLCMs का उत्पादन भी कुछ सालों में शुरू हो जाएगा। मिसाइलें 1,000 किमी दूर निशाने को भेद सकने में सक्षम होंगी। सतह से सतह पर मार करने वाली प्रलय मिसाइलें और आवाज की गति से कम तेजी से मार करने वाली सबसोनिक एलआर-एलएसीएम उस बेड़े का हिस्सा होंगे जिसमें ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइलें, पिनाका मल्टि रॉकेट सिस्टम और मौका लगते ही मार करने को तैयार अन्य हथियार शामिल हैं। इन्हें मिलाकर तीनों सेनाओं से बनने वाले थिएटर कमांड्स के अधीन नया इंटीग्रेटेड रॉकेट फोर्स तैयार किया जाएगा।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अगुवाई वाली रक्षा अधिग्रहण परिषद (DAC), वायुसेना को 120 प्रलय मिसाइलें खरीदने की शुरुआती अनुमति पहले ही दे चुकी है। उसके बाद 250 प्रलय मिसाइलें थल सेना (Army) के लिए भी खरीदी जाएंगी। एक सूत्र ने बताया, ‘आर्मी, नेवी और एयर फोर्स की ऐसी सभी मिसाइलें और उनके रॉकेट सिस्टम आईआरएफ के तहत इंटीग्रेट कर दिए जाएंगे ताकि इनका बेहतर कमांड और कंट्रोल हो सके। चीन के साथ लगी हमारी उत्तरी सीमाओं के लिए इसकी खास जरूरत है।’
भारत की योजना है कि इंटीग्रेटेड रॉकेट फोर्स (IRF) और स्ट्रैटिजिक फोर्सेज कमांड (SFC) को बरकरार रखा जाए। इन्हें 2003 में परमाणु हथियारों के खजाने के मैनेजमेंट के लिए बनाया गया था। ये दोनों ही एसएफसी ही परमाणु क्षमता संपन्न पृथ्वी 2 (350 किमी रेंज), शौर्य (750 किमी रेंज), अग्नि 1 (700 किमी रेंज), अग्नि 2 (2,000 किमी रेंज), अग्नि 3 (3,000 किमी रेंज), अग्नि 4 (4,000 किमी रेंज) और अग्नि 5 (5,000 किमी से ज्यादा रेंज) की बैलिस्टिक मिसाइलें और परमाणु क्षमता युक्त पनडुब्बियों के साथ-साथ न्यूक्लियर ग्रैविटी बम गिराने में सक्षम युद्धक विमानों का प्रबंधन करते हैं।सतह से सतह पर मार करने वाली प्रलय मिसाइलें और आवाज की गति से कम तेजी से मार करने वाली सबसोनिक एलआर-एलएसीएम उस बेड़े का हिस्सा होंगे जिसमें ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइलें, पिनाका मल्टि रॉकेट सिस्टम और मौका लगते ही मार करने को तैयार अन्य हथियार शामिल हैं। इन्हें मिलाकर तीनों सेनाओं से बनने वाले थिएटर कमांड्स के अधीन नया इंटीग्रेटेड रॉकेट फोर्स तैयार किया जाएगा। चीन के पास भी जमीन से दागी जाने वाली परमाणु और पारंपरिक बैलिस्टिक मिसाइलों का बड़ा भंडार है। ये सभी उसकी पीपल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के अधीन हैं जिसके करीब 40 ब्रिगेड हैं।
प्रलय मिसाइल को बेड़े में शामिल करने के साथ ही भारत ने सिर्फ परमाणु हथियारों को दागने के लिए ही बैलिस्टिक मिसाइलों के उपयोग की नीति त्याग दी है। सूत्र ने कहा, ‘भारत के लिए अब तक बैलिस्टिक मिसाइल का मतलब परमाणु हथियारों को ले जाने वाली मिसाइल ही हुआ करती थी। लेकिन चीन और पाकिस्तान, दोनों के पास पारंपरिक के साथ-साथ न्यूक्लियर बैलिस्टिक मिसाइलें भी हैं।’
जमीन आधारित मिसाइलों का इंटीग्रेशन करीब एक साल में पूरा हो जाना है। योजना के मुताबिक, एसएलसीएम का पहला परीक्षण रूस निर्मित सिंधुघोष क्लास किलो-क्लास पनडुब्बी पर किया जाना है। एक सूत्र ने बताया कि इन सस्ती सबसोनिक मिसाइलों की रेंज ब्रह्मोस से ज्यादा है।सतह से सतह पर मार करने वाली प्रलय मिसाइलें और आवाज की गति से कम तेजी से मार करने वाली सबसोनिक एलआर-एलएसीएम उस बेड़े का हिस्सा होंगे जिसमें ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइलें, पिनाका मल्टि रॉकेट सिस्टम और मौका लगते ही मार करने को तैयार अन्य हथियार शामिल हैं। इन्हें मिलाकर तीनों सेनाओं से बनने वाले थिएटर कमांड्स के अधीन नया इंटीग्रेटेड रॉकेट फोर्स तैयार किया जाएगा। ब्रह्मोस के 800 किमी वेरियेंट पर काम चल रहा है। हालांकि, उसकी रेंज 290 किमी से बढ़ाकर 450 किमी की जा चुकी है। छोटे और हल्के लेकिन समान मारक क्षमता वाले ब्रह्मोस की शुरुआती डिजाइन तैयार है। सूत्र ने कहा, ‘यह भारी-भरकम सुखोई 30एमकेआई के सिवा हल्के युद्धक विमान भी ब्रह्मोस से दुश्मनों को निशाना बना पाएंगे।’