क्या कर्नाटक के परिणामों का असर 2024 में भी होगा?

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कर्नाटक के परिणामों का असर 2024 में भी हो सकता है! कर्नाटक में कांग्रेस की बंपर जीत ने पूरे विपक्ष को बूस्‍टर डोज दे दी है। कांग्रेस के साथ पूरा विपक्ष कर्नाटक की जीत का जश्‍न मनाने में जुटा है। विपक्ष एक सुर में दावा करने लगा है कि आने वाले चुनाव में भी भारतीय जनता पार्टी को इसी तरह धूल चटाई जाएगी। एक्‍सपर्ट्स कहते हैं कि कर्नाटक के नतीजों को 2024 या इस साल कई राज्‍यों में होने वाले चुनाव का रिजल्‍ट मान लेना सही नहीं होगा। न ही यह मानना सही है कि कर्नाटक की हार के बाद दक्षिण में बीजेपी के लिए सभी गेटवे बंद हो गए हैं। तेलंगाना में उसके लिए उम्‍मीद की किरण बनी हुई है। 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान तेलंगाना में बीजेपी के वोट शेयर में जबर्दस्‍त उछाल आया था। दूसरी बात यह है कि कर्नाटक की जनता जिस तरह से विधानसभा चुनाव में वोटिंग करती है, वो ट्रेंड लोकसभा में नहीं होता है। बीजेपी को इस साल राज्‍यों में होने वाले चुनावों में ज्‍यादा दमखम लगाना होगा। यह 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले कर्नाटक की करारी शिकस्‍त से उबरने का टॉनिक होगा। बीजेपी भी इस बात को समझती है। वह कर्नाटक की हार के बाद अपनी चुनावी रणनीति में जरूर बदलाव करेगी। अपनी रणनीति में बीजेपी ज्‍यादा आक्रामक हो सकती है। 2018 में मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद भी विपक्ष इसी तरह खुशी से फूला नहीं समा रहा था। 2019 में लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने इस खुशी को फुर्र कर दिया था। विपक्ष कर्नाटक में बीजेपी की हार से कुछ ज्‍यादा ही खुश हो गया है। कांग्रेस के साथ वह जीत का जश्‍न मनाने में लगा है। जो ममता बनर्जी कल तक राहुल गांधी और कांग्रेस की नेतृत्‍व क्षमता पर सवाल उठाती थीं, उनके सुर नरम हो गए हैं। कर्नाटक चुनाव से बेशक कई चीजों में बदलाव होगा। मसलन, राहुल का कद बढ़ेगा। कांग्रेस इसका श्रेय उन्‍हें देने में जुट जाएगी। ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के दौरान राहुल ने सबसे ज्‍यादा समय इसी राज्‍य में गुजारा था। मल्लिकार्जुन खरगे की स्थिति और मजबूत होगी। इससे विपक्ष के एकजुट होने का रास्‍ता भी खुलेगा। कांग्रेस की छतरी के नीचे आने में कुछ विपक्षी दलों का संकोच जरूर कम होगा। यह दिखने भी लगा है। ममता और सपा प्रमुख अखिलेश यादव के सुर कांग्रेस के लिए बदल चुके हैं।

हालांकि, कांग्रेस को ज्‍यादा खुश होने की जरूरत नहीं है। 2018 में मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद उसने ऐसी ही खुशफहमी पाली थी। तब भी बीजेपी के लिए उलटी गिनती की बात होने लगी थी। हालांकि, लोकसभा चुनाव में पूरा विपक्ष मुंह के बल गिरा। जो बीजेपी 2014 में 282 सीटें जीती थीं वह 2019 में 303 लोकसभा सीट जीतने में सफल हुई थी। कुल मिलाकर पूरे गणित पर पानी फिर गया था।

ऐसा बिल्‍कुल नहीं है। कर्नाटक की हार से बीजेपी के लिए सबकुछ खत्‍म नहीं हुआ है। न ही इससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इमेज पर आंच आई है। अलबत्‍ता कहा तो यह जा रहा है कि अगर पीएम ने इतनी ताकत नहीं झोंकी होती तो जो सीटें दिख रही हैं वो भी नहीं आतीं। असल में बीजेपी को सबसे बड़ा नुकसान सत्‍ता विरोधी लहर का हुआ है। इस हार के लिए कोई जिम्‍मेदार है तो बसवराज बोम्‍मई।

यह कहना भी गलत होगा कि कर्नाटक की हार के बाद दक्षिण में पैठ बनाने के बीजेपी के रास्‍ते भी बंद हो गए हैं। तेलंगाना में उसके लिए उम्‍मीद की किरण है।इससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इमेज पर आंच आई है। अलबत्‍ता कहा तो यह जा रहा है कि अगर पीएम ने इतनी ताकत नहीं झोंकी होती तो जो सीटें दिख रही हैं वो भी नहीं आतीं। असल में बीजेपी को सबसे बड़ा नुकसान सत्‍ता विरोधी लहर का हुआ है। इस हार के लिए कोई जिम्‍मेदार है तो बसवराज बोम्‍मई। इसका भी कारण समझते हैं। बीजेपी को 2018 के विधानसभा चुनाव में 7 फीसदी से भी कम वोट मिले थे। वह महज एक सीट जीती थी। वहीं, साल 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी का वोट शेयर उछल गया। यह बढ़कर 20 फीसदी हो गया। फिर ग्रेटर हैदराबाद नगर निकाय चुनाव ने समीकरण बदले। बीजेपी को इसमें 150 वॉर्डों में से 48 पर जीत हासिल हुई। ग्रेटर हैदराबाद में 15 विधानसभा क्षेत्र हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को इकलौती जीत इसी क्षेत्र से मिली थी। कुल मिलाकर खेल अभी खुला हुआ है। यह तय है कि बीजेपी को आने वाले पांच राज्‍यों के विधानसभा चुनावों में ज्‍यादा जोर लगाना पड़ेगा। इसके जरिये वह 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए अपनी पिच तैयार कर पाएगी।