ये सवाल उठना लाजमी है कि मधुमिता को इंसाफ मिलेगा या नहीं! लखीमपुर खीरी जिले के मिशा टोला मोहल्ले की पतली गलियों में बसे उस घर में सबकुछ ठहरा हुआ सा है। यहां मधुमिता शुक्ला की पुरानी तस्वीर के साथ ही कवि सम्मेलनों में जीती ट्रॉफियां भी धूल खा रही हैं। सूटकेस और आल्मारी में केस से जुड़े कागजात भरे पड़े हैं। जिंदगी के 40 साल पार कर चुकीं निधि बीते कुछ दिनों से मायूस हैं। अमरमणि त्रिपाठी को कोर्ट से जमानत मिलना इसकी वजह है। मधुमिता शुक्ला के साथ ही खेल-कूदकर बड़ी हुईं निधि कहती हैं कि मेरी जिंदगी का ज्यादातर समय बहन को न्याय दिलाने और अमरमणि जैसे इंसान से लड़ने में गुजर गया। अब अगले करीब 20 साल जो बचे हैं, उनका क्या होगा? मधु की डेडबॉडी तक परिवार में सबसे पहले मैं पहुंची थी। मेरे हाथ खून में सने हुए थे। अगर उसी दिन मैंने खुद को जिंदा लाश में तब्दील ना कर लिया होता तो शायद डर और पागलपन से कबका मर गई होती।
24 घंटे यूपी पुलिस के 2 जवानों की सुरक्षा में रहने वाली निधि बताती हैं कि उनकी जिंदगी तबसे ही डर के साए में गुजरी है। ना जाने कितने धमकी भरे फोन, राह चलते अपरिचित लोगों से डर, हर बार नैनीताल कोर्ट जाते समय यह डर सताना कि जिंदा लौट भी पाऊंगी या नहीं। हर साल 15 अगस्त और 26 जनवरी को डर सताता था कि कहीं सरकार की तरफ से कैदियों की रिहाई में अमरमणि भी बाहर ना आ जाए। लेकिन आखिरकार यह डर सच साबित हुआ।निधि बताती हैं कि उन्होंने खुद का जीवन मधुमिता को न्याय दिलाने में समर्पित कर दिया। दो बड़े भाइयों को केस से दूर रखा, क्योंकि उनके परिवार और बच्चे हैं। मां को एक रिलेटिव के घर पर शिफ्ट कर दिया। दो साल पहले एक सेल्स मैनेजर से शादी की लेकिन कभी भी एक नॉर्मल शादीशुदा जिंदगी नहीं जी सकी। यह खतरा अब अमरमणि के बाहर आने के बाद और भी ज्यादा बढ़ गया है। हम सबकी जान को खतरा है।
2003 में मधुमिता हत्याकांड के बाद यूपी की राजनीति गरमा गई थी। लखनऊ की पेपर मिल कॉलोनी में 9 मई को मधुमिता की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। देहरादून फास्ट ट्रैक कोर्ट ने 24 अक्टूबर, 2007 को अमरमणि, मधुमणि, भतीजे रोहित चतुर्वेदी, पवन पांडेय और शूटर संतोष राय को दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई।
अमरमणि और मधुमणि कई साल से गोरखपुर जेल की अस्पताल में रहते आए हैं। कभी उनका गोरखपुर के मेडिकल कॉलेज तो कभी लखनऊ के केजीएमयू में इलाज चलता रहा है। निधि शुक्ला ने इस बात को लेकर भी यूपी सरकार से कई बार शिकायत की है। उन्होंने कहा कि वे लोग जेल से अधिक तो प्राइवेट वॉर्ड में आराम भरी जिंदगी जीते रहे। आपको बता दें कि अमरमणि त्रिपाठी 2007 से ही जेल में थे। लगभग 16 साल हो गए थे उनको आजीवन कारावास की सजा मिले हुए। इस मामले में वो अपने अच्छे आचरण का हवाला देकर सुप्रीम कोर्ट गए थे। सुप्रीम कोर्ट से भी रिहाई पर विचार करने के लिए कहा गया था। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में प्रदेश सरकार की तरफ से कोई कार्रवाई नहीं हुई, उसके बाद उन्होंने अवमानना की याचिका दाखिल की। उसमें भी सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को नोटिस जारी किया था। उसके बाद सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों को और इनके बेहतर आचरण के दावों को ध्यान में रखते हुए फिलहाल उनको रिहाई दी गई।
पहले हम अमरमणि त्रिपाठी के बारे में जान लें। पूर्वांचल में एक जिला है महाराजगंज। वहां से लक्ष्मीपुर और नौतनवां सीट, जो बाद में लक्ष्मीपुर बदलकर नौतनवां हो गई थी, वहां से अमरमणि त्रिपाठी चुनावी राजनीति करते थे। 80 के दशक में ये राजनीति में उतरे थे और उस समय पूर्वांचल में एक बड़े ब्राह्मण बाहुबली चेहरा के तौर पर उभरे थे हरिशंकर तिवारी। ये हरिशंकर तिवारी की परंपरा की राजनीति में आगे बढ़े थे। 90 के दशक में पूर्वांचल में ब्राह्मण बनाम ठाकुर की राजनीति थी। हरिशंकर तिवारी ने 1980 में इन्हें लक्ष्मीपुर में वीरेंद्र प्रताप सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ाए। हालांकि ये चुनाव हार गए। 1989 में अमरमणि त्रिपाठी पहली बार कांग्रेस से विधायक बने थे। फिर वो 1991 और 1993 के चुनाव हारे और 1996 में कांग्रेस से वो दोबारा जीत गए। यही वह दौर था जब उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर दल-बदल का खेल खेला गया था। और कांग्रेस और बीएसपी में टूटकर कल्याण सिंह की सरकार बनी थी। अमरमणि त्रिपाठी लोकतांत्रिक कांग्रेस में चले गए थे और पहली बार ये सरकार में मंत्री बने और 2001 तक मंत्री रहे। 2001 में बस्ती के एक व्यवसायी के बेटे का अपहरण हो गया था। बाद में व्यवसायी का बच्चा तो छूट गया लेकिन जब जांच हुई तो पता चला कि अपहरणकर्ता अमरमणि त्रिपाठी के घर में छिपे हुए थे।