यह सवाल उठना है कि क्या मायावती सभी को पछाड़ कर आगे बढ़ पाएगी! लोकसभा चुनाव 2024 के लिए सत्ता पक्ष और विपक्षी दल अपने-अपने चौसर पर गोटियां सेट करने में लग गए हैं। दोनों तरफ की सेनाएं तय हो गई हैं। पर सबसे चौंकाने वाली बात है कि देश की सियासत में बड़ी हैसियत रखने वाली बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती इस जंग में किनारे खड़ी हैं। दरअसल, ये मायावती की राजनीति का तरीका भी रहा है। वह खुद के फैसले से कई बार राजनीतिक पंडितों को चौंकाती रही हैं। अब जबकि 2024 के लिए सभी योद्धा तैयार हो चुके हैं वहीं दूसरी तरफ बीएसपी सुप्रीमो की सियासत क्या रहेगी इसपर सबकी नजरे हैं। यूपी जैसे बड़े प्रदेश की सीएम रह चुकीं माया के मूव पर विश्लेषकों की पैनी नजर है। मायावती ने बेंगलुरु में बने विपक्षी दलों के गठबंधन को जातिवादी करार दे दिया है। यहां यह बताना जरूरी है कि विपक्षी दलों की बैठक में मायवाती के दल को बुलावा नहीं था। सियासत में मायावती का ये मिजाज कोई नया नहीं है। वह चाहे 2019 के चुनाव में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करना हो या फिर भारतीय जनता पार्टी के साथ सरकार बनाना। माया के फैसलों ने सबको चौंकाया था। यही नहीं, पिछले कुछ वक्त से बीएसपी ने कांशीराम के स्लोगन ‘बहुजन समाज’ को बदलकर ‘सर्वजन समाज’ कर दिया। माया का ये भी एक अप्रत्याशित कदम था। पर उनकी राजनीति का तरीका ही यही है। वह हर बार चौंकाती हैं।
विपक्षी गठबंधन की बेंगलुरु में खत्म हुई बैठक के ठीक अगले दिन मायावती ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर आरोप लगाया कि कांग्रेस ने जातिवादी दलों के साथ गठबंधन किया है। इसके साथ ही उन्होंने छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश में अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया। उल्लेखनीय है कि इन तीनों राज्यों में बीजेपी और कांग्रेस में सीधा मुकाबला होता है। जाहिर है माया के दांव ने इन चुनावी राज्यों में मुकाबले को त्रिकोणीय बनाएगा। नफा-नुकसान किसका होगा ये तो चुनाव बाद तय हो जाएगा।
2007 में यूपी के सीएम बनने के बाद बीएसपी का जनाधार लगातार कम होता गया है। 2007 के विधानसभा चुनाव में बीएसपी ने 206 सीटें जीती थी। 2012 में पार्टी को 80 सीटें और 2017 के विधानसभा चुनाव में महज 19 सीटें मिली। 2022 के चुनाव में तो बीएसपी महज एक सीट पर सिमटकर रह गई। वहीं, 2014 के लोकसभा चुनाव में बीएसपी को केवल एक सीट मिली थी। हालांकि, 2019 लोकसभा चुनाव में एसपी के साथ गठबंधन के बाद बीएसपी को राज्य में 10 सीटें मिली थी। पर इसके बाद से बीएसपी को झटके पर झटके ही लगे हैं। तो आखिर क्या है कि मायावती लगातार अकेले चलने की कोशिश कर रही हैं।
अब जबकि 2024 के लिए 26 विपक्षी दलों का गठबंधन पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ बन चुका है। दूसरी तरफ मायावती इस गठबंधन के खिलाफ बयान देकर अपनी मंशा साफ कर चुकी हैं। कांग्रेस पर निशाना साधने से ये साफ पता चल रहा है कि उनके निशाने मुख्यत: कांग्रेस है। इसके पीछे कारण भी साफ है। छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश में बीएसपी को कांग्रेस से ही टक्कर लेनी है। अगर इन तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव में बीएसपी कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने में सफल हो गई तो फिर लोकसभा चुनाव में विपक्षी दलों के गठबंधन का खेल बिगड़ना तय है। राजस्थान, यूपी, पंजाब, मध्य प्रदेश में बीएसपी एक मजबूत ताकत है। इन राज्यों में लोकसभा की 147 सीटें हैं। अगर यहां बीएसपी मजबूती से चुनाव लड़ती है तो विपक्षी गठबंधन के लिए मुश्किल जरूर बढ़ने वाली है।
बीएसपी का गठन दलित, अन्य पिछड़े वर्ग और आदिवासी के गठबंधन के साथ हुआ था। इसके साथ ही साथ पार्टी अल्पसंख्यकों के समर्थन की भी कोशिश की जाए। लेकिन बाद में सत्ता और सरकार के लिए बीएसपी ने अपने नीतियों में बदलाव भी किया। 2019 के चुनाव में माया ने एसपी के साथ गठबंधन कर लिया। इसका उन्हें फायदा भी मिला और वो 10 लोकसभा सीट जीतने में कामयाब रहीं जबकि एसपी को पांच सीटें ही मिली। यही नहीं माया 3 बार देश की दो बड़ी राष्ट्रीय पार्टी के समर्थन से सरकार बना चुकी हैं। माया ने दो बार बीजेपी के समर्थन से सरकार बनाया जबकि एक बार उन्होंने कांग्रेस का भी साथ मिला था।
दलित राजनीति की पुरोधा मायावती अपनी बिसात जिस तरीके से बिछा रही हैं उससे लग रहा है कि विपक्षी दलों को झटका लग सकता है। सर्वजन की बात कर माया पहले ही बड़ा दांव चल चुकी हैं। यूपी में दलित-ब्राह्मण का कामयाब गठजोड़ कर चुकी बीएसपी अब मुसलमानों को पार्टी से जोड़ने के लिए बड़ी तैयारी में जुटी है। ऐसे में अगर सवर्ण, दलित और मुस्लिम गठजोड़ बीएसपी के साथ आता है तो निश्चित तौर पर विपक्ष के I.N.D.I.A.को बड़ा झटका लगेगा, जो बीएसपी को इग्नोर कर चुकी है।