क्या उत्तर प्रदेश के पहले चरण में जीत पाएगी एनडीए?

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यह सवाल उठना लाजिमी है कि उत्तर प्रदेश के पहले चरण में एनडीए जीत पाएगी या नहीं! उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर राजनीति गरमाई हुई है। लोकसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को है। 17 अप्रैल की शाम को चुनावी प्रचार अभियान का शोर थम जाएगा। इससे पहले तमाम राजनीतिक दल अपनी बात जनता तक पहुंचने में जुटे हुए हैं। हर कोई जनता को रिझाने में जुटा हुआ है। मिशन-80 के दावे के साथ प्रदेश के चुनावी मैदान में उतरी भारतीय जनता पार्टी के लिए पहला चरण सबसे महत्वपूर्ण होने वाला है। दरअसल, उत्तर प्रदेश की जिन आठ लोकसभा सीटों पर 19 अप्रैल को मतदान होना है, पिछले चुनाव के दौरान पांच सीटों पर भारतीय जनता पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था। ऐसे में पार्टी ने इस चरण में पूरा जोर लगाया है। पीएम नरेंद्र मोदी स्वयं चुनावी मैदान में उतरे हैं। भाजपा के लिए यह चरण कितना महत्वपूर्ण है, इसका अंदाजा पीएम नरेंद्र मोदी की रैलियों से देखा जा सकता है। पीएम नरेंद्र मोदी ने अब तक पश्चिमी यूपी को साधने के लिए चार कार्यक्रमों में भाग लिया है। मेरठ से चुनावी रैली की शुरुआत करने के बाद पीएम मोदी सहारनपुर और पीलीभीत में जनसभा को संबोधित कर चुके हैं। वहीं, गाजियाबाद में रोड शो के जरिए उन्होंने पश्चिमी यूपी से खुद को जोड़ने की कोशिश की है। वहीं, अखिलेश यादव ने यूपी में अपने चुनावी अभियान का आगाज पीलीभीत से किया। वहीं, मायावती ने भी पश्चिमी यूपी में रैलियों के जरिए बसपा के अभियान को गति देने का प्रयास किया है। माना जा रहा है कि कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी और अखिलेश यादव बुधवार को सहारनपुर में रोड शो के जरिए पहले चरण के प्रचार अभियान का समापन एक इम्पैक्ट के साथ छोड़ने का प्रयास करेंगे। पश्चिमी यूपी की आठ सीटों पर पहले चरण के चुनाव को लेकर पूरा जोर लगाया है। भाजपा इस बार राष्ट्रीय लोक दल के साथ चुनावी मैदान में उतरी है। पीएम मोदी के चेहरे के साथ दावा इस बार पिछले चुनाव के रिजल्ट को पूरी तरह से ढकने का है। पीएम नरेंद्र मोदी के साथ-साथ केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्‌डा, सीएम योगी आदित्यनाथ, यूपी भाजपा अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी लगातार चुनावी रैलियों को संबोधित कर रहे हैं। इनके अलावा विपक्षी गठबंधन की रणनीति को मात देने के लिए आरएलडी अध्यक्ष जयंत चौधरी भी लगातार रैलियों को संबोधित कर रहे हैं। क्षेत्रों में घूमकर एनडीए की जीत का गणित तैयार करने में जुटे हैं।

विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. के बैनर तले सपा और कांग्रेस कैंडिडेट की कोशिश लगातार भाजपा को पछारने की है। अखिलेश यादव की ओर से लगातार माहौल बनाया जा रहा है। वहीं, मायावती भी पश्चिमी यूपी को मथ रही हैं। उनके भतीजे और बसपा में उनके उत्तराधिकारी आकाश आनंद भी लगातार रैलियों के जरिए खोए जनाधार को जुटाने की कोशिश में हैं।

सहारनपुर लोकसभा सीट पर त्रिकोणीय मुकाबले के आसार जताए जा रहे हैं। नक्कशीदार लकड़ी के लिए मशहूर सहारनपुर से किसकी किसकी किस्मत को नक्काशीदार यहां के मतदाता बनाएंगे, यह 19 अप्रैल को तय होगा। भाजपा ने लोकसभा सीट से पूर्व सांसद राघव लखनपाल को एक बार फिर उम्मीदवार बनाया है। राघव ने 2014 में सहारनपुर लोकसभा सीट से जीत दर्ज की थी। हालांकि, 2019 में यह सीट सपा-बसपा गठबंधन के तहत बसपा के पाले में गई। बसपा के फजलुर्हमान ने इस सीट से जीत दर्ज की। इस बार, विपक्षी गठबंधन के तहत यह सीट कांग्रेस के खाते में गई है। कांग्रेस ने यहां से इमरान मसूद को मैदान में उतारा है। इमरान मसूद ने पीएम मोदी को लेकर बोटी-बोटी वाले बयान से सुर्खियां बटोरी। वे राघव को कड़ी टक्कर देते दिख रहे हैं।

बसपा ने यहां से माजिद अली को टिकट दिया है। मुस्लिम कैंडिडेट के जरिए बसपा ने इमरान मसूद की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। वहीं, भाजपा की ओर से केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव को सहारनपुर, बिजनौर और नगीना जैसी सीटों के लिए रणनीति तैयार करने की जिम्मेदारी दी थी। बसपा के कैंडिडेट ने चुनावी मुकाबला दिलचस्प बना दिया है। भाजपा-कांग्रेस की जंग में क्या बसपा बाजी मारेगी? या फिर कांग्रेस-बसपा उम्मीदवारों के बीच बंटते विपक्षी वोट भाजपा की जीत की राह बनाएंगे? समीकरण इसी समीकरण के आसपास घूम रहा है।

मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर इस बार ठाकुरों की नाराजगी सत्ताधारी भाजपा के लिए चुनौती बन सकती है। भाजपा के डॉ. संजीव बालियान यहां पर वर्ष 2014 से सांसद है। 2019 के लोकसभा चुनाव में काफी कम अंतर से जीत दर्ज करने में कामयाब हुए थे। इस चुनाव में सपा-बसपा और रालोद ने भाजपा के सामने कड़ी चुनौती पेश की थी। इस बार जयंत चौधरी भाजपा के साथ हैं। डॉ. संजीव बालियान एक बार फिर चुनावी मैदान में हैं। उनके सामने चुनावी मैदान में उतरे सपा कैंडिडेट हरेंद्र मलिक मुस्लिम, जाट और बालियान से नाराज वोटरों को साधने में जुटे हैं। हरेंद्र मलिक पिछली बार कांग्रेस के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरे थे। बसपा ने यहां से दारा सिंह प्रजापति को चुनावी मैदान में उतार दिया है। मायावती की इस रणनीति ने दलित वोटरों को साधने की कोशिश की है। ऐसे में मुश्किलें डॉ. संजीव बालियान की बढ़ती दिख रही है।

मुरादाबाद लोकसभा सीट पर इस बार हसन फैक्टर काम कर सकता है। दरअसल, सपा ने डॉ. एसटी हसन का टिकट काट दिया। डॉ. हसन ने लोकसभा चुनाव 2019 में भाजपा के सर्वेश सिंह से सीट छीनी थी। अखिलेश यादव ने आखिरी वक्त में टिकट काटकर बिजनौर से पूर्व विधायक रुचि वीरा को चुनावी मैदान में उतार दिया। इसके बाद डॉ. हसन की नाराजगी भी सामने आई है। वहीं, भाजपा ने एक बार फिर सर्वेश सिंह को चुनावी मैदान में उतारा। रुचि वीरा को आजम खान की करीबी के तौर पर देखा जाता है। बसपा ने यहां से इरफान सैफी को चुनावी मैदान में उतार कर मुस्लिम वोट बैंक को साध्सने की कोशिश की है। ऐसे में सपा उम्मीदवार की चुनौती बढ़ती दिख रही है।

रामपुर में होने वाले चुनावों में पिछले तीन दशकों में आजम फैक्टर हावी दिखता था, लेकिन इस बार चुनाव से वह अलग हैं। पिछली बार उन्होंने इस सीट पर जीत दर्ज की थी। लेकिन, कोर्ट से सजा के ऐलान के बाद उनकी सांसदी और विधायिकी चली गई। अभी भी वे जेल में बंद हैं। रामपुर सीट पर भाजपा ने एक बार फिर घनश्याम सिंह लोधी पर दांव लगाया है। घनश्याम लोधी ने लोकसभा उप चुनाव 2022 में जीत दर्ज की थी। आजम खान की नाराजगी के बाद भी अखिलेश ने रामपुर सीट पर मौलाना मोहिबुल्लाह नदवी को उम्मीदवार बना दिया। इसके बाद सपा में आजम बनाम अखिलेश यादव दो फाड़ होते दिख रहे हैं। 19 अप्रैल को होनेवाले मतदान पर इसका असर दिख सकता है। वहीं, बसपा कैंडिडेट जीशान खान अपनी अलग उम्मीदों के साथ चुनावी मैदान में हैं। 52 फीसदी मुस्लिम मतदाता वाली इस लोकसभा सीट पर अखिलेश से नाराज मुस्लिम समाज का साथ मिलने की उम्मीद बसपा प्रत्याशी को है।