इस साल देश को नई राह देने के लिए निर्मला सीतारमण ने योजना बना ली है! भला किसे नौकरी नहीं चाहिए। विपक्ष इस मुद्दे पर मोदी सरकार को घेरता आया है। सवाल है कि क्या 1.4 अरब के देश में सरकार सभी को नौकरी दे सकती है? जवाब लाजिमी है। बिल्कुल नहीं। फिर सवाल उठता है कि क्या युवाओं को बिना रोजगार के सड़कों पर चप्पलें सटकाने के लिए छोड़ दिया जाए? दोबारा जवाब होगा कतई नहीं। आखिर सॉल्यूशन क्या है? जवाब आसान है। रोजगार की समस्या दूर करने के लिए देश को अगर पहले किसी एक चीज की जरूरत है तो वे हैं बेशुमार फैक्ट्रियां। रोजगार हवा में पैदा नहीं होते हैं। चीन का यही सबसे बड़ा ‘तिलिस्म’ है। इसके बूते आज वह दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका को भी आंखें दिखाने से नहीं घबरा रहा है। अपनी पॉलिसी में उसने फैक्ट्रियों को सर्वोच्च प्राथमिकता दी। स्टार्टअप जब उससे मैन्यूफैक्चरिंग के लिए मदद मांगने गए तो चीनी सरकार ने सिर्फ एक बात पूछी- प्रोडक्शन दुनिया के लिए करोगे न? इस अप्रोच ने चीन को दुनिया की फैक्ट्री बना दिया। जूते-चप्पल, खिलौनों से लेकर इलेक्ट्रॉनिक आइटम्स और वीडियो गेम्स तक वह सबकुछ दुनिया को सप्लाई करने लगा। इसने उसके विदेशी मुद्रा भंडार को दिन दोगुना और रात चौगुना बढ़ा दिया। बजट 2023 चीन के इस तिलिस्म को तोड़ने का मौका है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने चाह लिया तो इस बजट में इसके लिए रास्ता बना सकती हैं।
पिछले कई सालों से भारतीय अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के पीछे सर्विस सेक्टर रहा है। आईटी सेक्टर इसका ग्रोथ इंजन था। मैन्यूफैक्चरिंग पर फोकस मोदी सरकार के आने के बाद बढ़ा है। ‘मेक इन इंडिया’ मुहिम ने मैन्यूफैक्चरिंग का माहौल बनाया है। इसे रफ्तार देने के लिए सरकार ने 2020 में प्रोडक्शन लिंक्ड इनसेंटिव यानी पीएलआई स्कीम का ऐलान किया था। पीएलआई स्कीम के लिए सरकार ने चुनिंदा सेक्टरों को चुना है। इसमें मोबाइल फोन, बैटरी, सोलर पीवी मॉड्यूल, ड्रोन, सेमिकंडक्टर शामिल हैं। ये नए सेक्टर हैं। भारत को नए युग का मैन्यूफैक्चरिंग हब बनाने में ये सेक्टर मददगार बन सकते हैं। भारत खुलकर इन सेक्टरों में खेल सकता है। वह दुनिया को इन सेक्टरों में अपनी ताकत का प्रदर्शन कर सकता है।
चीन के तेवरों ने दुनिया खासतौर से अमेरिका और यूरोपीय देशों का मिजाज बदला है। वह चीन के बजाय खुशी-खुशी भारत को तवज्जो देने के लिए तैयार हैं। हर लिहाज से भारत उनकी नीतियों में ज्यादा फिट बैठता है। दुनियाभर में चीन विरोधी माहौल बना है। खुलकर दुनिया अब उसके बारे में बोलने लगी है। भारत इस मौके का फायदा उठा सकता है। भारत ने यूक्रेन युद्ध को लेकर जिस तरह की कूटनीति अपनाई है, इससे उसने अपने लिए हर जगह के दरवाजे खोल रखे हैं। किसी कैंप में शामिल नहीं होने से उसे सबसे बड़ा फायदा यह हुआ है कि वह दूसरों के मुकाबले बारगेनिंग करने की सबसे अच्छी स्थिति में खड़ा हुआ है। दुनिया भारत को हाथों-हाथ लेने के लिए तैयार है। चीन की फैक्ट्रियों की जगह लेने के लिए आज से बढ़िया शायद ही कोई मौका हो। यहां एक और पहलू है जो भारत के पक्ष में जाता है। भारत कोरोना की मुश्किलों से करीब-करीब पूरी तरह उबर चुका है। कोई भी लहर आज उसके लिए परेशानी का कारण नहीं बन रही है। इसके उलट चीन आज भी कोरोना की चुनौतियों से उबर नहीं पाया है। इसका उसकी सप्लाई चेन पर असर पड़ा है।
आगामी बजट में जिस एक चीज पर सबसे ज्यादा फोकस करने की जरूरत है वो है युवाओं की ट्रेनिंग। दुनिया की न्यू एज फैक्ट्री बनने के लिए उसे बड़े पैमाने पर युवाओं को कुशल बनाना होगा। इसके लिए सीतारमण को सरकारी खजाने का मुंह खोलने की जरूरत होगी। भारत के पास बेपनाह श्रमशक्ति है। सिर्फ इसे चैनलाइज कर देने की जरूरत है। मोदी सरकार एक नहीं कई बार यह करके दिखा चुकी है। जनधन योजना के जरिये देश में फाइनेंशियल इंक्लूजन का प्रोग्राम इसका उदाहरण है। मैन्यूफैक्चरिंग को प्रोत्साहित करने के लिए उसने पीएम गति शक्ति और नेशनल लॉजिस्टिक्स पॉलिसी जैसे प्रमुख कदम उठाए हैं। अब बात सिर्फ युवाओं को जोड़ने भर से बन सकती है। युवाओं को कुशल बनाकर उन्हें फैक्ट्रियों के साथ जोड़ने की व्यवस्था कर दी जाए तो बस बल्ले-बल्ले हो जानी है। बेरोजगार युवा अर्थव्यवस्था के लिए किसी भी तरह से अच्छा नहीं है। वह जिस श्रमशक्ति को लेकर बैठा हुआ है अगर उसका इस्तेमाल न हो तो यह देश की बदनसीबी होगी। एक बड़े पॉलिसी डिसीजन से इस पूरे इकोसिस्टम को सिर के बल खड़ा किया जा सकता है।