नीतीश कुमार पीएम मोदी के खिलाफ क्रांति लाना चाहते हैं! सत्ता के लिए पांच बार पाला बदलने वाले नीतीश कुमार के मन में इतिहास बनाने की चाह है। उनसे ज्यादा जल्दी उनकी पार्टी और तेजस्वी यादव को है। तेजस्वी की नजर सीएम की कुर्सी पर है। इसलिए राष्ट्रीय जनता दल का स्वार्थ तो समझा जा सकता है। नीतीश की पार्टी क्यों ऐसा कर रही, पता नहीं। जेडीयू के गलियारों से कुछ खबरें फैलाई जा रही है। इसमें से एक महत्वपूर्ण है। इसे जानकर राहुल गांधी परेशान हो सकते हैं। कर्नाटक की जीत से बूस्टर डोज उन्हें मिला है लेकिन हड़बड़ी में नीतीश कुमार हैं। राहुल अभी अमेरिका में इंटरनेशनल सपोर्ट हासिल कर रहे हैं और इधर खबर आ रही है कि नीतीश कुमार को विपक्ष का पीएम उम्मीदवार घोषित किया जा सकता है। कहा जा रहा है कि 12 जून को पटना में विपक्षी दलों की बैठक में इसकी घोषणा कर दी जाएगी। कल तक तो यही पता नहीं था कि इस बैठक में कांग्रेस शामिल होगी या नहीं। खैर, जयराम रमेश ने अब ये क्लियर कर दिया है। उनकी पार्टी से कोई न कोई जाएगा। लेकिन नीतीश के नाम पर मुहर लगेगी, इस पर घनघोर संदेह है। सिद्धारमैया से लेकर गहलोत तक अब राहुल को पीएम पद के लिए फिट मान रहे हैं। भारत जोड़ो यात्रा से उन्हें नए राहुल के अभ्युदय का आभास हो रहा है। राहुल कर्नाटक और हिमाचल की जीत से पहले ही कह चुके हैं कि अब वो राहुल नहीं रहा। ममता बनर्जी, शरद पवार, केसीआर, उद्धव ठाकरे, अखिलेश यादव, हेमंत सोरेन, अरविंद केजरीवाल और मल्लिकार्जुन खरगे से ताबड़तोड़ मुलाकात के बाद नीतीश इस मायने में कामयाब माने जाएंगे कि उनके कहने पर पटना में सभी विपक्षी दल जुट रहे हैं। पर विपक्षी दलों के बीच का वैचारिक-व्यावहारिक विरोधाभास खत्म हो गया है, ऐसा कहना मूर्खता होगी। खुद नीतीश कुमार इस मायने में विश्वसनीयता खो चुके हैं। इसे ऐसे समझिए। पांच जून, 1974 के दिन पटना के गांधी मैदान से जयप्रकाश नारायण ने संपूर्ण क्रांति का नारा दिया था। इंदिरा गांधी को हटाने के लिए। कांग्रेस की सत्ता मिटाने के लिए। और नीतीश कुमार अपनी राजनीति ही जेपी को समर्पित करने की बात करते रहे हैं।
वही नीतीश उस ऐतिहासिक घटना की गोल्डन जुबली साल में कांग्रेस के साथ मिलकर भाजपा को भगाने का दम भरेंगे। ये बात कांग्रेस और ममता दोनों को मालूम है कि नीतीश की राजनीति वाजपेयी से लेकर मोदी काल तक भाजपा के साथ घूमती रही है। चाहे बिहार में भाजपा ने जेडीयू से ताकत पाई हो या नीतीश ने बीजेपी से। या फिर दोनों ने एक दूसरे से। लेकिन क्या नीतीश कुमार लोकसभा चुनाव 2024 में वन टू वन फॉर्म्युले को लागू करा पाएंगे। ये फॉर्म्युला है भाजपा के खिलाफ हर सीट पर विपक्ष का एक साझा उम्मीदवार खड़ा करना। मतलब बीजेपी 200 से ज्यादा सीटों पर चुनाव ही न लड़े। कर्नाटक की जीत के बाद क्या राहुल गांधी इसके लिए तैयार होंगे?
नीतीश की कोशिश और मोदी को हटाने की मोदी की चाहत के बीच कुछ आंकड़े दिलचस्प कहानी बयां करते हैं। लोकसभा की 543 सीटों में से 190 ऐसी हैं जिन पर भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला है। इनमें से 92.1 परसेंट सीटों पर भाजपा के सांसद हैं। मतलब 175 सीटों पर भगवा परचम फहरा रहा है। कांग्रेस सिर्फ 15 सीटों पर काबिज है। आगे 185 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां भाजपा का मुकाबला गैर कांग्रेसी दलों से है। पिछले चुनाव में इनमें से 128 पर भाजपा और 57 पर अन्य दलों की जीत हुई। अब 71 सीटों पर कांग्रेस का मुकाबला गैर भाजपा दलों से है जो नीतीश की अगुआई में पटना में मिलेंगे। पिछले चुनाव में इन 71 सीटों में से 37 पर कांग्रेस जीती और 34 पर दूसरे क्षेत्रीय दलों की जीत हुई। पूरे देश के मैप में हर एक लोकसभा सीट की समीक्षा करना मुश्किल है लेकिन अगर जीते हुए और दूसरे नंबर पर रहे उम्मीदवारों के दलों को देखें तो पांच इलाके साफ तौर पर सामने आते हैं।
मध्य और उत्तर भारत के 12 राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों में 161 सीटें हैं। इनमें से 147 पर दोनों राष्ट्रीय दल आमने -सामने हैं, 12 सीटों पर भाजपा या कांग्रेस का मुकाबला किसी क्षेत्रीय पार्टी से है और दो सीटें ऐसी हैं जहां मुख्य मुकाबला क्षेत्रीय दलों के बीच ही है। अगर 2019 के नतीजों को देखें तो भाजपा ने 161 में 147 सीटों पर कब्जा कर लिया। कांग्रेस सिर्फ 9 सीटें जीत सकी और अन्य के खाते में पांच सीटें गईं। आप चार्ट में देख सकते हैं मध्य प्रदेश, गुजरात और छत्तीसगढ़ की सभी सीटों पर भाजपा ने जीत हासिल की। मध्य प्रदेश की सभी 29 और छत्तीसगढ़ की 11 सीटों पर भगवा झंडा लहराया। कर्नाटक में 28 सीटों में से 21 पर भाजपा जीती। गुजरात की सभी 26 सीटें भाजपा के खाते में गई। राजस्थान में भी 25 में से 24 पर भाजपा की जीत हुई। हरियाणा में 11 में 10 बीजेपी के खाते में गई। असम की 14 में 9 पर भाजपा जीती। अन्य राज्यों की सभी 18 सीटों पर भी भाजपा को जीत नसीब हुई।
तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, मिजोरम और सिक्किम की 66 लोकसभा सीटों पर भाजपा कहीं सीन में नहीं है। यहां क्षेत्रीय दल मजबूत हैं जिन्होंने पिछले इलेक्शन में 58 सीटें जीती। तमिलनाडु की 39 सीटों में से 12 पर कांग्रेस या भाजपा का वजूद दिखा लेकिन ऐसा उनके स्थानीय सहयोगी दलों के कारण हो पाया।
ऐसी परिस्थिति में नीतीश कुमार का वन टू वन फॉर्म्युला कितना कारगर हो पाएगा, ये समझना मुश्किल नहीं है। वो भी तब जब वाईएसआर कांग्रेस के जगनमोहन रेड्डी, जेडीएस के एचडी देवगौड़ा और बीजू जनता दल के नेता नए संसद भवन के उदघाटन में मोदी से गर्मजोशी के साथ मिलते नजर आए तो मायावती ने अपना शुभ संदेश भेज दिया।