Friday, October 18, 2024
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क्या ब्रिटेन में सफल प्रधानमंत्री साबित होंगे ऋषि सुनक?

ब्रिटेन के हालात के अनुसार सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या ऋषि सुनक सफल प्रधानमंत्री साबित हो पाएंगे? हर तरफ ऋषि सुनक की प्राथमिकताओं और चुनौतियों को लेकर चर्चाएं हैं, बाजार की निगाह उनपर है, अपने देश को लेकर उनके ‘विजन’ की चर्चा है, साथ ही कम राजनीतिक अनुभव के बावजूद सबको साथ लेकर चलने और एक ऐसा ब्रिटेन बनाने की उनकी परिकल्पना पर सबकी नजर है! महज 42 साल के इस उत्साही युवा की आंखों में ब्रिटेन की तस्वीर और तकदीर बदलने का जुनून देखा जा सकता है। बेशक लोग कहें कि ऋषि सुनक का राजनीतिक अनुभव बहुत कम है, लेकिन उनकी आर्थिक समझ और अपने देश को संकट से उबार लेने की उनकी योजनाएं मायने रखती हैं। उनका भारतीय मूल का होना भावनात्मक रूप से भले ही भारत के लिए अहम हो, लेकिन सब जानते हैं कि भारतवंशी होने से पहले ऋषि अपने देश और अपनी जनता के लिए सबसे बड़े भरोसे और उम्मीद का नाम है। हर तरफ ऋषि सुनक की प्राथमिकताओं और चुनौतियों को लेकर चर्चाएं हैं, बाजार की निगाह उनपर है, अपने देश को लेकर उनके ‘विजन’ की चर्चा है, साथ ही कम राजनीतिक अनुभव के बावजूद सबको साथ लेकर चलने और एक ऐसा ब्रिटेन बनाने की उनकी परिकल्पना पर सबकी नजर है, जिसका संकेत उन्होंने प्रधानमंत्री चुने जाने के बाद दिया।

यह सवाल गंभीरता के साथ उठाया जा रहा है कि ब्रिटेन जिस मंदी और बढ़ती ब्याज दरों के बुरे दौर से गुजर रहा है और बैंक ऑफ इंग्लैंड की ओर से मंहगाई पर काबू पाने की कोशिशें अभी तक नाकाम साबित हो रही हैं, साथ ही उपभोक्ताओं को बढ़ती लागत और गिरती आय का सामना करना पड़ रहा है, क्या ऋषि सुनक के पास इन चुनौतियों से निपटने की कारगर योजना है? और अगर योजना है भी तो क्या उनकी पार्टी के ही तमाम गुटों के लोगों या विपक्षी पार्टियों का उन्हें साथ मिल पाएगा? लिज ट्रस का ही उदाहरण देख लें। उन्होंने बेशक 44 दिनों में हार मान ली हो, अपने वादों को पूरा कर पाने में खुद को अक्षम बताकर इस्तीफा दे दिया हो, लेकिन क्या इसके पीछे सिर्फ टैक्स कटौती या उनके कुछ सख्त फैसले थे या फिर अपनी ही पार्टी के लोगों के विरोध ने उन्हें टिकने नहीं दिया? सबसे बड़ा उदाहरण बोरिस जॉनसन का ही देख लीजिए, आखिर क्यों जॉनसन ने हाथ पीछे खींच लिए या पद छोड़ने को मजबूर हो गए?

दरअसल इस वक्त ब्रिटेन की सबसे बड़ी दिक्कत वहां की सत्ताधारी कंजरवेटिव पार्टी के भीतर चल रही गुटबाजी है। यह पिछले कुछ सालों में साफ हो गया है। इतनी जल्दी जल्दी यानी महज कुछ ही महीने में ब्रिटेन ने तीन प्रधानमंत्री देख लिए औऱ अगर दावेदारों की फेहरिस्त देख लें, तो पार्टी का नेतृत्व और देश संभालने का सपना देखने वाले हर बार आपको दो-चार तो मिल ही जाते हैं, भले ही तकनीकी कारणों से वो पीछे रह जाते हों या रास्ता छोड़ देते हों, लेकिन ब्रिटेन की सियासत के इस संक्रमण काल का दुनिया देख रही है। पेनी मार्डंट हों, जॉनसन हों या लिज ट्रस– इन सभी नेताओं के अपने अपने मजबूत गुट हैं, जो ऋषि सुनक को नाकाम साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। जॉनसन समर्थकों की नजर में ऋषि ने जॉनसन के साथ धोखा किया है और उनकी सरकार में रहते हुए भी उन्हें हटाकर खुद प्रधानमंत्री बनने की कोशिश में लगे रहे, लिज ट्रस का भी उन्होंने सबसे पहले विरोध किया और उनकी नीतियों की खुलकर खिलाफत की। जानकारों के मुताबिक ऐसे में ये तमाम नेता सुनक को किसी भी हाल में कामयाब होने से रोकने की कोशिश करेंगे।

फिलहाल जो स्थितियां रही हैं, उसमें जॉनसन ने एक बार फिर खुद को रेस से बाहर कर लिया था और अंत समय में पेनी मार्डंट ने भी खुद को पीछे हटाकर सुनक की राह आसान कर दी। सत्ताधारी पार्टी यह संदेश देने की कोशिश कर रही है कि इस बार सब मिलकर ऋषि सुनक को देश को पटरी पर लाने का मौका देंगे, लेकिन सियासत और अंदरूनी खींचतान की इस अग्निपरीक्षा को ऋषि सुनक कैसे पार करेंगे, ये एक बड़ी चुनौती उनके लिए है।

लेकिन भारत और ब्रिटेन के रिश्ते और बेहतर होंगे, इसमें कोई संदेह नहीं है। सबसे पहले तो यही कि मुक्त व्यापार समझौते (FTA) को लेकर जो पांच बैठकें दोनों देशों के बीच हो चुकी हैं, उसे शायद अब अंतिम रूप दे दिया जाए। इस राजनीतिक अस्थिरता की वजह से FTA पर जो दस्तखत दीपावली से पहले होने थे, उसे टाल दिया गया। लेकिन ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था के लिए भी यह समझौता फायदेमंद होगा, इसलिए इसके अंजाम तक पहुंचने में अब और कोई अड़चन नहीं आएगी। हालांकि इसमें ऋषि सुनक के आने से कोई एतिहासिक परिवर्तन नहीं होने वाला, यह प्रक्रिया जॉनसन और लिज़ के जमाने से चल रही है और अब अपने अंतिम मुकाम पर है।

भारत और ब्रिटेन के बीच तकरीबन 23 अरब पाउंड का सालाना व्यापार होता है और ब्रिटेन को यह उम्मीद है कि मुक्त व्यापार के जरिये इसे 2030 तक दोगुना किया जा सकता है। इस वर्ष भारत और ब्रिटेन के बीच कई समझौते हुए हैं। इसमें ब्रिटेन द्वारा भारत को नए लड़ाकू विमानों और जल परिवहन की प्रौद्योगिकी एवं सुरक्षा के मसले पर भारत को सहयोग देने की बात कही गई है।

ऋषि सुनक के पहले संबोधन को अगर आपने सुना हो, तो उन्होंने साफ कहा है कि वो सबसे पहले अपने देश को मौजूदा आर्थिक संकट से उबारकर एक ऐसा ब्रिटेन बनाना चाहते हैं जहां एकता, सद्भाव, आत्मनिर्भरता के साथ साथ आने वाली पीढ़ियों तक के लिए आर्थिक सुरक्षा हो। वे चाहते हैं कि बैंक ऑफ इंग्लैंड को स्वतंत्रता से काम करने दिया जाना चाहिए और महंगाई कम करने के बाद ही वह टैक्स कटौती के पक्ष में हैं। सुनक ये भी कह चुके हैं कि उनकी प्राथमिकताओं में अपनी पार्टी को एकजुट और मजबूत करना है, जिसमें ब्रेग्जिट को लेकर या यूरोपीय यूनियन से रिश्ते को लेकर अलग-अलग राय है। साथ ही स्वास्थ्य और सुरक्षा बजट में कटौती को लेकर जो उनकी योजना है, उसे लेकर भी पार्टी में कोई मतभेद न उभरे क्योंकि अभी देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना उनका पहला काम है।

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