आरजेडी और जेडीयू एक साथ आ सकते हैं! क्या नीतीश कुमार की जनता दल (यूनाइटेड), लालू की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल में समा जाएगी? साल 2023 तक लालू-नीतीश मिलकर एक नई पार्टी बनाएंगे? तीर और लालटेन की जगह किसी तीसरे चुनाव चिन्ह पर 2024 का चुनाव लड़ा जाएगा? बिहार की राजनीति के लिए आनेवाला वक्त बेहद अहम है। इस राजनीतिक उथल-पुथल पर ब्यूरोक्रेसी की भी नजर है। तभी तो नीतीश कुमार 11 दिनों तक दर्द से कराहते रहे और बिहार के अधिकारियों ने मीडिया को बताया कि मुख्यमंत्री को हल्की चोटें आईं है और वो ठीक हैं। 26 अक्टूबर को जब सीएम नीतीश पत्रकारों से मिले तो उन्होंने कुर्ता उठाकर अपनी चोट दिखाई और परेशानियों को बताया। दरअसल, राज्य के नौकरशाह ये मान कर चल रहे हैं कि आनेवाले महीनों में नीतीश कुमार कुर्सी त्याग देंगे और इनके उत्तराधिकारी तेजस्वी यादव होंगे। उसी हिसाब से राज्य की IAS लॉबी अपनी गोटियां सेट करने में लगी है। तो भला नीतीश की फिक्र क्यों करे? नीतीश कुमार के सामने भी धर्म संकट है। जिस लालू के खिलाफ लड़कर उन्होंने पहचान हासिल की, उन्हीं के हवाले पार्टी और सत्ता दोनों कर दें!
दिल्ली में 10 अक्टूबर 2022 को आरजेडी के राष्ट्रीय सम्मेलन में लालू यादव 12वीं बार राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। तभी भोला यादव ने पार्टी संविधान में संशोधन का प्रस्ताव रखा। तालियों की गड़गड़ाहट के बीच पास भी हो गया। तब उतनी चर्चा नहीं हुई। बड़ी चालाकी से मीडिया को जारी बयान में इसका जिक्र नहीं किया गया। इस संशोधन में राष्ट्रीय जनता का नाम बदलने और चुनाव सिंबल चेंज करने का अधिकार लालू यादव के उत्तराधिकारी तेजस्वी यादव को सौंप दिया गया। छोटे नेताओं को किसी भी बड़े मुद्दे पर बोलने से मना कर दिया गया। अब अनुमान लगाया जा रहा है कि 2023 में लालू-नीतीश मिलकर एक नई पार्टी बनाएंगे। जिसमें जेडीयू और आरजेडी मर्ज कर जाएगी। न तो तीर रहेगा, ना ही लालटेन। इन तमाम उथल-पुथल के बीच नीतीश की पार्टी जेडीयू ने सांगठनिक चुनाव की घोषणा कर दी। जिसके बाद इन संभावनाओं को और भी बल मिल रहा है।
अक्टूबर में आरजेडी ने अपने अधिवेशन में सब कुछ पक्का कर लिया है। पार्टी से जुड़े सारे अधिकार अपनी मुट्ठी में लेकर तेजस्वी यादव बैठ गए। अब दिसंबर में जेडीयू का अधिवेशन दिल्ली में है। अनुमान लगाया जा रहा है कि इसमें, नीतीश कुमार सारे अधिकार अपने पास जुटा लेंगे। इसके बाद तीसरी पार्टी की डायग्राम सामने आ जाएगा। मतलब 2023 में कुछ बड़ा सियासी उलटफेर होने की प्रबल संभावना है। नीतीश कुमार के सामने JDU का वजूद बचाने की चुनौती है। वहीं, RJD ने पार्टी का नाम और चुनाव चिन्ह बदलने का अधिकार तेजस्वी यादव को दे दिया है।
नीतीश कुमार पर JDU को RJD में विलय करने का दबाव है। कहा तो ये जा रहा है कि इसी शर्त पर लालू प्रसाद दोबारा नीतीश कुमार के साथ आने को तैयार हुए। चर्चा तो ये भी है कि नीतीश कुमार ने ही ये शर्त रखी कि RJD को भी अपना नाम और सिंबल छोड़ना होगा। यानी एक नई पार्टी के साथ दोनों दल 2023 में सामने आ सकते हैं। बीजेपी को सबक सिखाने के लिए नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद की शर्तों को उस वक्त तो मान लिया लेकिन अब नीतीश दिल से बिल्कुल नहीं चाहते कि JDU का वजूद खत्म हो। जबकि लालू चाहते हैं कि नीतीश कुमार JDU और बिहार का मोह त्याग कर अब दिल्ली की ओर अपना रूख करें। तेजस्वी यादव का बिहार में ताजपोशी अपने हाथों से कर दें।
नीतीश कुमार फिलहाल अपनी बातों से पीछे हटते दिखना नहीं चाहते हैं। लिहाजा, जेडीयू में सांगठनिक चुनाव कराए जाने की घोषणा कर दी गई। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी ने संगठनात्मक चुनाव के लिए शेड्यूल जारी कर दिया। आने वाले 13 नवंबर से जेडीयू के सांगठनिक चुनाव की शुरुआत हो जाएगी। नवंबर के महीने में ही जेडीयू के प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव संपन्न करा लिया जाएगा जबकि राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव दिसंबर के महीने में करा लिया जाएगा। 10 और 11 दिसंबर को दिल्ली में जेडीयू का खुला अधिवेशन आयोजित होगा। जिसमें पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की घोषणा कर दी जाएगी। फिलहाल जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह हैं, जबकि प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा है। जब आरसीपी सिंह राष्ट्रीय अध्यक्ष थे तो उमेश कुशवाहा को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था। अब राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह हैं।
बिहार की राजनीति काफी दिलचस्प मोड़ पर है। इसमें कोई दो राय नहीं कि नीतीश कुमार माहिर राजनेता हैं। जिनके सामने बीजेपी तो क्या लालू प्रसाद जैसे दिग्गज राजनेता भी नतमस्तक नजर आए। लेकिन इस बार नीतीश कुमार एक धुरंधर टेक्नोक्रेट (प्रशांत किशोर) के भी चक्कर में पड़ गए हैं। जो उनकी सारी कमजोरियों और ताकत को जानता है। यही वजह है कि सिर्फ बिहार में इनके घूमने भर से जेडीयू का हर बड़ा नेता परेशान है। ये जानते हुए भी कि प्रशांत किशोर का कोई जनाधार नहीं है, फिर भी इतनी परेशानी क्यों? प्रशांत किशोर से जुड़े किसी भी सवाल पर नीतीश कुमार असहज हो जाते हैं। पत्रकारों के सामने हाथ जोड़ देते हैं। पुराने सबंधों की दुहाई देने लगते हैं। प्रशांत भी जानते हैं कि नीतीश कुमार संबधों के सभी दरवाजे बंद नहीं करते। चाहे वो कोई भी दल हो। लिहाजा नीतीश कुमार, न तो प्रशांत के लिए और ना ही बीजेपी के लिए शटर डाउन करना चाहते हैं।
सत्ता का सुख सिर्फ नेता ही नहीं भोगते, ब्यूरोक्रेसी भी इसका भरपूर लुत्फ लेती है। बिहार की ब्यूरोक्रेसी भी नीतीश के हर मूव पर नजर बनाई हुई है। उसको लगता है कि आनेवाले दिनों में पावर सेंटर नीतीश कुमार के पास से तेजस्वी यादव की ओर शिफ्ट हो जाएगा। इसकी बानगी भी दिखने लगी है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को जब चोट लगी तो अधिकारियों ने बात छिपा ली। ऐसा कहा जा रहा है। 11 दिन बाद जब नीतीश कुमार मीडिया के सामने आए तो इसका खुलासा हुआ। उन्होंने कहा कि उनके पेट और पैर में चोट लगी है। चोट इतनी ज्यादा है कि कई दिनों बाद भी वो दर्द में हैं। घटना 15 अक्टूबर की है, जब नीतीश कुमार छठ महापर्व की तैयारियों का जायजा ले रहे थे। उस वक्त मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का स्टीमर जेपी सेतू से टकरा गया था। नीतीश ने अपना कुर्ता उठाकर दिखाया है कि उनके पेट में कितनी चोट लगी है। आखिर इस खबर को छिपाने की जरूरत अधिकारियों को क्यों हुई? घटना के दिन तो अफसरों ने कहा था कि मुख्यमंत्री को हल्की चोटें आईं है और वो ठीक हैं।