रूस और चीन बहुत अच्छे मित्र रहे हैं! भारत और रूस की दोस्ती मिसाल दुनिया देती है। अमेरिका के साथ तनाव हो या पाकिस्तान के साथ युद्ध रूस ने भारत का खुलकर साथ दिया है। भारत-रूस दोस्ती पर चीनी ड्रैगन का साया मंडराने लगा है। यूक्रेन युद्ध की वजह से रूस की हालत बहुत खराब है और यही वजह है कि भारत के दुश्मन चीन पर पुतिन सरकार की निर्भरता लगातार बढ़ती जा रही है। चीन अब रूस का सबसे बड़ा विदेशी साझीदार बनता जा रहा है। अमेरिकी विशेषज्ञों का मानना है कि रूस अब चीन का जूनियर पार्टनर बनता जा रहा है जो भारत और वियतनाम के लिए खतरे घंटी है। इससे भविष्य में रूस भारत और वियतनाम के साथ अपने रिश्ते को कम करके चीन के साथ जुगलबंदी को मजबूत कर सकता है। आइए समझते हैं पूरा मामला
विदेश मामलों की अमेरिका की चर्चित पत्रिका फॉरेन अफेयर्स की रिपोर्ट के मुताबिक यूक्रेन युद्ध ने रूस को ज्यादातर पश्चिमी देशों से काट दिया है। यही नहीं रूस के खिलाफ बड़े पैमाने पर प्रतिबंध लगाए गए हैं जिससे वह खुद को अकेला पा रहा है। रूस को अब केवल चीन से ही बड़े पैमाने पर मदद की उम्मीद बची हुई है। 20वीं सदी तक सोवियत संघ चीन को गरीब भाई मानता था जिसकी मदद की जाए। कुछ दशक बाद ही अब स्थितियां बहुत ज्यादा बदल चुकी हैं और सोवियत संघ का उत्तराधिकारी रूस चीन से मदद की टकटकी लगाए बैठा है। चीन की अर्थव्यवस्था उछाल मार रही है और उसकी तकनीक दुनियाभर में धूम मचा रही है। यही नहीं अब चीन का वैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था में दबदबा रूस से काफी ज्यादा बढ़ चुका है। यही वजह है कि अब रूस में पुतिन सरकार को अपने अस्तित्व को बचाने के लिए चीन पर ज्यादा से ज्यादा निर्भर होना होगा। रूसी जनता को अब ज्यादा से ज्यादा चीनी सामानों को खरीदना पड़ेगा।
रिश्ते को कम कर सकता है रूस
फॉरेन अफेयर्स के मुताबिक चीन को खुश बनाए रखने के लिए रूसी नेताओं को ड्रैगन की शर्तों को मानना ही होगा। संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी रूस को चीन के पक्ष को समर्थन देने के लिए बाध्य होना होगा। यही नहीं रूस को भारत और वियतनाम जैसे अपने घनिष्ठ सहयोगियों के साथ रिश्ते को कम करने के लिए बाध्य होना होगा। पश्चिमी विश्लेषकों का मानना है कि चीन और रूस अक्सर एक जैसे नजर आते हैं। दोनों ही सर्वसत्तावादी शक्तियों की ओर से संचालित होते हैं और अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को बदलना चाहते हैं। हालांकि दोनों के बीच रिश्ता एक समान नहीं है। रूस की चीन पर बढ़ती निर्भरता चीन के लिए बहुत फायदेमंद है। चीन अब रूस का इस्तेमाल अमेरिका के खिलाफ कर सकता है। रूस पर चीन की निर्भरता की शुरुआत क्रीमिया संकट के समय शुरू हुई। पुतिन ने साल 2014 में क्रीमिया को यूक्रेन से अलग कर दिया था।
क्रीमिया पर रूस के कब्जे से पहले मास्को के कुल व्यापार में चीन का हिस्सा 10 प्रतिशत था लेकिन अब साल 2021 के अंत तक यह 18 फीसदी तक पहुंच चुका है। अब यूक्रेन युद्ध के बाद रूस का चीन के साथ व्यापार काफी बढ़ सकता है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि आने वाले समय में चीन रूस से होने वाले कुछ व्यापार का आधा नियंत्रित करेगा। यही नहीं चीन रूस के टेलिकम्यूनिकेशन जैसे 5जी, ट्रांसपोर्ट और ऊर्जा उत्पादन जैसे क्षेत्रों में तकनीक का बड़ा स्रोत बन जाएगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसी स्थिति में चीन का रूस पर दबदबा कायम हो जाएगा और वह इसका इस्तेमाल करने से नहीं हिचकेगा। चीन रूस को कह सकता है कि वह भारत और वियतनाम के साथ अपने रक्षा रिश्ते को तोड़े। इन दोनों ही देशों के साथ चीन का सीमा विवाद चल रहा है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन रूस का सबसे बड़ा राजनयिक भागीदार बन सकता है, वह भी तब जब भारत लगातार रूस को छोड़कर हिंद प्रशांत क्षेत्र और यूरोप के लोकतांत्रिक देशों के साथ अपने रिश्ते को मजबूत कर रहा है। चीन इस पूरे खेल में सबसे ज्यादा फायदे में रह सकता है। हालांकि चीन न तो रूस को आर्थिक संकट से पूरी तरह से उबारेगा और न ही उसकी अर्थव्यवस्था को आधुनिक बनाएगा। चीन की कोशिश रहेगी कि रूस में एक बीजिंग सरकार बनी रहे। चीन रूस से सस्ती दर पर प्राकृतिक संसाधनों को खरीदता रहेगा और अपनी तकनीक का निर्यात उसे करता रहेगा। चीन पूरे यूरोशिया में अपनी मुद्रा रेनमिनबी को डॉलर के मुकाबले खड़ा करेगा।
भारत और चीन के बीच सीमा विवाद को लेकर तनाव काफी बढ़ा हुआ है। दोनों ही देशों के लाखों सैनिक सीमा पर आमने-सामने हैं। भारत के करीब 60 फीसदी हथियार रूसी मूल के हैं। अगर रूस चीन के साथ जाता है तो भारत के लिए संकट बहुत बढ़ जाएगा। इससे पहले चीन ने भारत को रूसी हथियार बेचने पर कड़ी आपत्ति जताई थी। हालांकि फिलहाल रूस भारत की हर तरह से मदद कर रहा है लेकिन भविष्य में चीन पर निर्भरता बढ़ने पर दिक्कत हो सकती है।