सऊदी अरब अब ब्रिक्स में शामिल हो सकता है! सऊदी अरब ने ब्रिक्स का सदस्य बनने में अपनी रुचि जताई है। यह खुलासा दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा ने रियाद की दो दिवसीय राजकीय यात्रा के बाद किया है। रामफोसा ने कहा कि क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान बिन अब्दुलअजीज अल सऊद ने ब्रिक्स का हिस्सा बनने की सऊदी अरब की इच्छा व्यक्त की थी। उन्होंने बताया कि वह एकमात्र देश नहीं है, जो ब्रिक्स का हिस्सा बनना चाहता है। कुछ महीने पहले ईरान ने भी ब्रिक्स का सदस्य बनने की इच्छा जताई थी। ब्रिक्स दुनिया की पांच उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों का समूह है। इसके सदस्य देशों में ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं। इन्हीं देशों के अंग्रेजी के पहले अक्षरों B, R, I, C और S को मिलाकर इस समूह का नामकरण (BRICS) हुआ है। ब्रिक्स का पहला शिखर सम्मेलन 2009 में आयोजित किया गया था। इस समूह को पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं के प्रभुत्व के विकल्प के रूप में देखा गया है।
रामफोसा ने कहा कि हमने कहा था कि ब्रिक्स अगले साल दक्षिण अफ्रीका की अध्यक्षता में शिखर सम्मेलन कर रहा है। इस दौरान ही नए देशों की सदस्यता के मामले पर विचार किया जा सकता है। कई देश ब्रिक्स सदस्यों से संपर्क कर रहे हैं और हमने उन्हें वही जवाब दिया है जिस पर ब्रिक्स के भागीदारों से चर्चा की जाएगी और उसके बाद एक निर्णय किया जाएगा। किसी भी देश को ब्रिक्स का सदस्य बनने के लिए सभी सदस्य देशों की सहमति की जरूरत होती है। सदस्यों में से ही कोई एक देश सदस्यता पाने वाले देश के नाम का प्रस्ताव पेश करता है। जिसके बाद समूह के बाकी देश अपनी सहमति और असहमति जताते हैं। सभी देशों से मंजूरी मिलने के बाद ही किसी भी देश को ब्रिक्स की सदस्यता मिलती है। भारत ब्रिक्स का संस्थापक सदस्य है। इस संगठन की स्थापना के बाद सिर्फ एक सदस्य दक्षिण अफ्रीका को 2010 में सदस्यता दी गई थी।
सऊदी अरब तेल और गैस के सबसे बड़े उत्पादक देशों में से एक है। वह तेल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक पर भी पूरा नियंत्रण रखता है। पिछले कुछ साल में सऊदी अरब का पश्चिमी देशों से मोहभंग हो चुका है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन तो तेल उत्पादन घटाने के फैसले पर सऊदी अरब को अंजाम भुगतने की भी चेतावनी दे चुके हैं। उनके चुनाव प्रचार में भी सऊदी अरब को अलग-थलग करने और मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिए जवाबदेह ठहराने की बात की गई थी। ऐसे में सऊदी अरब यह जानता है कि उसे अपने देश के विकास के लिए पश्चिमी देशों को छोड़ उनके धुर विरोधी देशों की तरफ भी झुकना होगा। ब्रिक्स की स्थापना ही पश्चिम प्रभुत्व वाली अर्थव्यवस्था के काट के तौर पर की गई थी। इसमें रूस और चीन जैसे कट्टर अमेरिका विरोधी देश शामिल हैं। ऐसे में सऊदी अरब भी इस गुट का हिस्सा बनकर अमेरिका को सख्त संदेश देने की कोशिश कर रहा है।
सऊदी अरब और भारत के बीच बहुत ही मधुर संबंध हैं। दोनों देश तेल और गैस के व्यापार के अलावा रणनीतिक भागीदारी और प्रवासी कामगारों को लेकर भी नजदीक से जुड़े हैं। भारत की कच्चे तेल और एलपीजी जरूरतों का क्रमश 18 प्रतिशत और 30 प्रतिशत आपूर्ति सऊदी अरब से पूरी होती है। सऊदी अरब में सबसे ज़्यादा काम करने वाले लोग भी भारत के ही हैं। सऊदी में काम करने वाले 26 लाख भारतीय हर साल लगभग 8 बिलियन डॉलर भारत भेजते हैं। वित्त वर्ष 21/22 में भारत और सऊदी अरब के बीच 42.68 बिलियन डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार हुआ था। इसी के साथ सऊदी अरब, भारत का चौथा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन गया था, जबकि भारत अब सऊदी अरब का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है। ऐसे में सऊदी अरब का ब्रिक्स में जुड़ना भारत के लिए अच्छी बात हो सकती है।
ब्रिक्स को आर्थिक तौर पर पश्चिम के विकल्प के तौर पर गठित किया गया है ताकि उनके मोलभाव की ताकत बढ़ सके। इसके अलावा बाकी दुनिया की पश्चिम के ऊपर निर्भरता भी खत्म की जा सके। वर्तमान में पांच सदस्यों में से दो चीन और रूस खुले तौर पर अमेरिका विरोधी हैं। ईरान ने पहले ही ब्रिक्स की सदस्यता के लिए दावा पेश किया है, जो अमेरिका का सबसे बड़ा दुश्मन है। इसके अलावा आज कल सऊदी अरब के साथ भी अमेरिका से संबंध ठीक नहीं है। ऐसे में सऊदी के शामिल होने के बाद ब्रिक्स में अमेरिका विरोधी देशों की संख्या चार हो जाएगी। वहीं, बाकी के सदस्य देश जैसे भारत, दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील की अमेरिका को लेकर नीति मध्यमार्गी है। रूस को छोड़कर ब्रिक्स के बाकी सदस्य देश अभी विकासशील हैं और अपनी अर्थव्यवस्था को तेजी से बढ़ा रहे हैं। 2019 तक पांचों ब्रिक्स देश दुनिया की कुल 42 फीसदी आबादी का प्रतिनिधित्व करते थे। एक अनुमान के मुताबिक इन पांचों देशों का संयुक्त विदेशी मुद्रा भंडार चार खरब अमेरिकी डॉलर से भी ज्यादा है। इन देशों की जीडीपी 15 खरब डॉलर है। ब्रिक्स देश वैश्विक जीडीपी में 23 फीसदी का योगदान करते हैं। विश्व व्यापार में इन पांच देशों की हिस्सेदारी 18 फीसदी है।