क्या पृथ्वी पर अगली पीढ़ी को मिल पाएगा पानी?

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आज हम आपको बताएंगे कि क्या पृथ्वी पर अगली पीढ़ी को पानी मिल पाएगा! पानी का नल घंटों तक खुला रहता है, नहाने में एक से ज्यादा बाल्टी पानी का इस्तेमाल करते हैं, गाड़ी धोने के लिए बेहिसाब पानी बहा देते हैं तो सतर्क हो जाइए। अगर पानी की बर्बादी की सिलसिला ऐसे ही जारी रहा है तो आपकी अगली पीढ़ी को पानी के दर्शन मिलना भी मुश्किल हो जाएगा। विशेषज्ञों का कहना है 1947 के बाद से प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता में लगभग 75 प्रतिशत की गिरावट आई है। अगर पानी की बर्बादी को अब नहीं रोका गया तो आने वाले समय में हालात और बदतर हो सकते हैं। दरअसल पानी की बर्बादी को रोकने के मद्देनजर हर साल 22 मार्च को विश्‍व जल दिवस मनाया जाता है। साल 2019 में स्वतंत्रता दिवस के मौके पर पीएम मोदी ने 2024 तक हर ग्रामीण घर में नल का पानी पहुंचाने का लक्ष्य रखा और तब से देश ने इस पर जबरदस्त प्रगति की है। भारत के 19.4 करोड़ ग्रामीण परिवारों (59%) में से 11.4 करोड़ से अधिक को पहले ही कवर किया जा चुका है, इसलिए यह वादा अगले साल पूरा होने की संभावना है। हालांकि बड़ा सवाल यह है कि क्या सभी घरों को नियमित रूप से सही गुणवत्ता वाले पानी की सप्लाई की जा सकती है। भारत अगले 40 वर्षों में पानी की कमी वाला देश हो सकता है। केंद्रीय भूजल बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी) के आंकड़े बताते हैं कि 2022 में देश में कुल 7,089 आंकी गई इकाइयों में भूजल का अंधाधुंध उपयोग 4% (260) हो गया, जबकि 14% (1,006 यूनिट) का अत्यधिक दोहन के रूप में मूल्यांकन किया गया।

भारत में नदियों और झीलें जोखिम में हैं, भूजल का 87% सिंचाई के लिए निकाला जाता है। ऐसे में पानी की कमी में इजाफा हो रहा है। भूजल की गुणवत्ता में गिरावट देश व्यावहारिक रूप से भूजल पर निर्भर है, जो भारत की 62% सिंचाई जरूरतों, 85% ग्रामीण जल आपूर्ति और 50% शहरी जल आपूर्ति को पूरा करता है। इसलिए इसे विवेकपूर्ण तरीके से इस्तेमाल किया जाना चाहिए और संदूषण से बचाया जाना चाहिए। विभिन्न रिपोर्टों से पता चलता है कि अगले साल तक सरकार के ‘जल जीवन मिशन’ (JJM) के तहत सार्वभौमिक नल-जल आपूर्ति के लक्ष्य को प्राप्त करने में भूजल का प्रदूषण प्रमुख चुनौतियों में से एक है।

देश की राजधानी में हर साल आबादी में इजाफा होने के साथ ही पानी की कमी की दिक्कत बढ़ती जा रही है। खास तौर पर गर्मियों में पानी की किल्लत और बढ़ जाती है। राजधानी अपनी पानी की जरूरत के लिए सबसे ज्यादा यमुना पर निर्भर है, लेकिन यह नदी बदहाली की मार झेल रही है। दिल्ली जल बोर्ड के अनुसार राजधानी पानी के मामले में 90 प्रतिशत से अधिक पड़ोसी राज्यों पर निर्भर हैं। भूजल के अतिरिक्त गंगा, यमुना और सिंधु बेसिन से कच्चा पानी मिलता है। इस समय राजधानी में 93 प्रतिशत घरों में पाइपलाइन से पानी जा रहा है। एक्सपर्ट्स के अनुसार जिस हिसाब से राजधानी में अन्य शहरों की आबादी आ रही है, यहां पानी की डिमांड तेजी से बढ़ती जा रही है। आने वाले वक्त में दिल्ली के लोगों के आगे पानी का बड़ा संकट खड़ा होगा।

हर साल विश्व जल दिवस मनाने के पीछे का उद्देश्य है लोगों को जल संरक्षण के लिए जागरूक करना और सभी लोगों तक स्वच्छ जल पहुंचाना है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा हर साल एक थीम को निर्धारित किया जाता है । इस साल 2023 की विश्व जल दिवस की थीम है – Accelerating the change to solve the water and sanitation crisis यानी परिवर्तन में तेजी’ । इसका अर्थ हुआ कि पानी और सैनिटेशन के क्राइसिस को दूर करने के लिए तेज गति से बदलाव करने होंगे। संयुक्त राष्ट्र के पिछले 45 वर्षों में जल पर पहले बड़े सम्मेलन की पूर्व संध्या पर मंगलवार को जारी एक नयी रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया की 26 प्रतिशत आबादी को सुरक्षित पेयजल उपलब्ध नहीं है, जबकि 46 फीसदी लोगों को बुनियादी स्वच्छता तक पहुंच हासिल नहीं है। ‘संयुक्त राष्ट्र वर्ल्ड वाटर डेवलपमेंट रिपोर्ट 2023’ में 2030 तक स्वच्छ पेयजल और स्वच्छता तक सभी लोगों की पहुंच सुनिश्चित करने के संयुक्त राष्ट्र के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए आवश्यक कदमों को भी रेखांकित किया गया है। रिपोर्ट के प्रधान संपादक रिचर्ड कोनोर ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि लक्ष्यों को पूरा करने की अनुमानित वार्षिक लागत कहीं न कहीं 600 अरब डॉलर से एक हजार करोड़ डॉलर के बीच है।