लिज ट्रस के इस्तीफा देने के बाद भारत पर असर पड़ता है! ब्रिटेन की पीएम लिज ट्रस ने अचानक इस्तीफे का ऐलान कर दिया। महज 45 दिन तक सत्ता में रहीं लिज का जाना भारत के लिहाज से भी महत्वपूर्ण है। भारत और ब्रिटेन के बीच प्रस्तावित मुक्त व्यापार समझौता FTA फिर अधर में लटक गया है। दोनों पक्षों ने उम्मीद जताई थी दिवाली से पहले FTA हो जाएगा लेकिन परिस्थितियां ऐसी बदलीं कि 2023 से पहले कोई समझौता होने की संभावना नहीं दिखती। भारत की कुछ शर्तें हैं जो वह FTA में चाहता है और उनके बिना समझौते को राजी नहीं। हालांकि, ताजा अड़ंगा ब्रिटेन के राजनीतिक तूफान की वजह से लगा है। बदलती दुनिया में इस FTA की जरूरत भारत से ज्यादा ब्रिटेन को है। पिछले दिनों ब्रिटेन को पछाड़कर भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना है। उसकी आर्थिक प्रगति दुनिया में सबसे तेज रहने का अनुमान है। ऐसे में ब्रिटेन जल्द से जल्द FTA की ओर बढ़े, वही उसके हित में होगा। शायद ब्रिटिश नीति नियंताओं को भारत के बदलते तेवरों का अंदाजा नहीं है। मौका सही है कि वह नवंबर 2019 के गुलाबी मौसम को याद करें। कैसे ऐन मौके पर नरेंद्र मोदी सरकार ने रीजनल कॉम्प्रिहेंसिंव इकॉनमिक पार्टनरशिप RCEP से रिश्ता तोड़ लिया था। RCEP की चीन की मौजूदगी उस फैसले की बड़ी वजह थी।
पिछले कुछ सालों में द्विपक्षीय और बहुपक्षीय समझौतों को लेकर भारत के तेवर बदले हैं। पीछे छूट जाने या अकेले पड़ जाने के डर से समझौतों पर जल्दबाजी नहीं होती। ऑस्ट्रेलिया और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के साथ समझौतों में बदले तेवर दिखे। भारत इन समझौतों के लिए बेकरार नहीं है। नवंबर 2019 में RCEP से हटकर भारत ने यही संकेत दिए थे। RCEP से भारत के हित नहीं सध रहे थे और मुख्य रूप से मुनाफा चीन को हो रहा था। RCEP के दायरे में दुनिया की 30% आबादी आती है। यहां 12.7 ट्रिलियन डॉलर का व्यापार होता है, ग्लोबल ट्रेड के एक-चौथाई से भी ज्यादा। इसके सदस्य देशों में 10 ASEAN देशों के अलावा चीन, ऑस्ट्रेलिया, जापान, न्यूजीलैंड और साउथ कोरिया शामिल हैं।
RCEP के जरिए ‘सबसे बड़े’ क्षेत्रीय व्यापार समझौते की तैयारी थी। 2013 से इस डील पर बातचीत शुरू हुई। भारत न सिर्फ उस चर्चा में शामिल था, बल्कि समझौते उसके हस्ताक्षर भी लगभग तय थे। 4 नवंबर, 2019 को अचानक सरकार ने ऐलान किया कि वह RCEP पर चर्चाओं से हट रही है। चीन की मौजूदगी से भारत को पहले ही दिक्कत थी, ऊपर से सीमा पर बढ़ते तनाव ने मोदी सरकार का मूड बदल दिया। RCEP पर चर्चाओं में जिन बातों पर सहमति नहीं बन पाई थी, उनमें से अधिकतर चीन और भारत के मुकाबले वाले ही थे। RCEP में शामिल 15 में से 11 देशों के साथ भारत का ट्रेड डेफिसिट है। ऐसे में वह द्विपक्षीय FTAs के जरिए इन देशों संग व्यापार बढ़ा सकता है।
ट्रस के इस्तीफे के बीच, कॉमर्स सेक्रेटरी सुनील बर्थवाल ने गुरुवार को कहा कि भारत-ब्रिटेन के बीच प्रस्तावित FTA को लेकर बातचीत सही दिशा में चल रही है। बर्थवाल के अनुसार, दोनों पक्षों के बीच यह समझौता जल्द होने की उम्मीद है। बर्थवाल ने कहा कि बातचीत के दौरान कई चीजों को अंतिम रूप दे दिया है, जबकि कई पर अभी फैसला लिया जाना है। उन्होंने कहा कि पहले इस समझौते पर बातचीत दीपावली तक पूरी करने का इरादा था, लेकिन अब इस समय सीमा को टाल दिया गया है। समझौते के लिए नई समय सीमा के बारे में सवाल के जवाब में बर्थवाल ने कहा कि यह तो इस पर निर्भर करेगा कि बातचीत कैसे आगे बढ़ती है। हम बहुत अच्छी तरह से आगे बढ़ रहे हैं और उम्मीद है कि जल्द ही समझौते पर पहुंच जाएंगे।
एक लाइन में कहें तो ब्रिटेन आर्थिक और राजनीतिक, दोनों तरह के संकट में है। लिज ट्रस सरकार 23 सितंबर को मिनी बजट लाई थी। अमीरों के लिए टैक्स में 45% तक की कटौती की गई जबकि गरीबों के लिए कुछ खास नहीं था। नतीजा, वित्तीय बाजार में अस्थिरता आ गई। हालात इस कदर बिगड़ गए कि वित्त मंत्री को आनन-फानन में हटाना पड़ा। नए वित्त मंत्री ने आते ही बजट प्रावधानों को ही वापस ले लिया। इससे ट्रस सरकार पर सवाल उठ गए कि न तो वह अपने चुनावी वादे पर टिकी रह पाईं और न ही उनके पास कोई ऐक्शन प्लान था।
कंजर्वेटिव पार्टी के भीतर ही उनके खिलाफ विरोध तेज हो गया। पहले वित्त मंत्री, फिर भारतीय मूल की गृह मंत्री सुएला ब्रेवरमैन ने इस्तीफा दिया। इस्तीफा क्या दिया, खुलेआम कह दिया कि पीएम अपने चुनावी वादे पर नहीं टिकी रह सकीं। दबाव बढ़ता देख ट्रस ने गुरुवार को इस्तीफे का ऐलान किया। वित्तीय संकट के बीच राजनीतिक अस्थिरता का माहौल ब्रिटेन के भविष्य के लिए ठीक नहीं। ऐसे में भारत के साथ FTA से UK की अर्थव्यवस्था को मजबूती ही मिलती। देखना होगा कि ब्रिटेन में नई, स्थायी सरकार बनने पर भारत संग FTA पर अंतिम सहमति कब बनती है।