यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या अब भारत में कैंसर का देशी इलाज होगा या नहीं! कैंसर के इलाज का एक स्वदेशी तरीका ईजाद किया गया है, जिसे दुनिया में सबसे सस्ता बताया गया है। अब तक CAR T-सेल थैरेपी से कैंसर के इलाज को सुगम और किफायती बनाया गया है। लेकिन भारत में तैयार की गई थैरेपी का नाम है- NexCAR19 CAR T-सेल थैरेपी। आईआईटी बॉम्बे और टाटा मेमोरियल सेंटर ने मिलकर जीन आधारित इस इलाज को तैयार किया है। आईआईटी बॉम्बे के निदेशक प्रोफेसर शुभाशीष चौधरी ने कहा कि विदेश में इस इलाज की कीमत तकरीबन चार करोड़ रुपये है, जबकि भारत में यह खर्च लगभग 30 लाख रुपये होगा। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने गुरुवार को इसे लॉन्च किया। कार्यक्रम आईआईटी बॉम्बे में हुआ। राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा, भारत की पहली जीन थैरेपी की शुरुआत कैंसर के खिलाफ हमारी लड़ाई में एक बड़ी उपलब्धि है। मेक इन इंडिया की पहल पर बनी इस थैरेपी के बारे में एक्सपर्ट का कहना है कि ये दुनिया की सबसे सस्ती थैरेपी है, जिससे आने वाले समय में कैंसर से लड़ने में देश को मजबूती मिलेगी।
सीएआर टी-सेल इम्यूनोथैरेपी और जीन थैरेपी का एक रूप है। इसमें वाइट ब्लड सेल्स और टी सेल्स को निकालकर फिर से बॉडी में अलग-अलग तरीके से डाला जाता है। टी-सेल्स को कैंसर से लड़ने के लिए प्रोग्राम किया जाता है। इसको इस तरह समझें, जैसे युद्ध पर जाने से पहले सेना को ट्रेनिंग दी जाती है। वैसे ही इस थैरेपी में हमारे शरीर की ही सेल्स को पावरफुल बनाकर कैंसर से लड़ने के लिए तैयार किया जाता है। द लैंसेट रीजनल हेल्थ साउथईस्ट एशिया जर्नल की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में साल 2019 में तकरीबन 12 लाख नए कैंसर के मामले और 9.3 लाख मौतें दर्ज की गई थीं। एशिया में इस बीमारी से जूझने वाला भारत दूसरा सबसे बड़ा देश है। NexCAR19 CAR T-सेल थेरेपी भारत की पहली ‘मेक इन इंडिया’ CAR T-सेल थैरेपी है, जिससे इलाज की लागत में काफी कमी आने की उम्मीद जताई गई है। एक्सपर्ट के मुताबिक सीएआर टी-सेल इम्यूनोथेरेपी और जीन थैरेपी का एक रूप है। जीन आधारित थैरेपी विभिन्न प्रकार के कैंसर को ठीक करने में मदद करेगी।
बता दे कि वेल्स की राजकुमारी केट मिडलटन को सिर्फ 42 साल की उम्र में कैंसर हो गया। उन्होंने खुद एक विडियो मेसेज जारी कर कैंसर होने की पुष्टि की है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि इतनी कम उम्र में केवल केट को ही नहीं, बल्कि भारत में भी कैंसर के मामलों में इजाफा हुआ है। कैंसर एक्सपर्ट का कहना है कि तंबाकू और स्मोकिंग का बढ़ता चलन, पॉल्यूशन, प्लास्टिक, नाइट लाइफ, जंक फूड, हैवी मेटल्स, इंडस्ट्री एक्सपोजर, कॉस्मेटिक का इस्तेमाल, माइक्रोवेव जैसी चीजें उम्र से पहले ही लोगों को कैंसर का शिकार बना रही हैं। जेनेटिक कारण से कैंसर होने का खतरा रहता है। यह माता-पिता में से किसी एक के जीन से बच्चे में आता है। ऐसे लोगों में कम उम्र में कैंसर होने की संभावना रहती है। लेकिन इसकी संख्या कम होती है। 50 साल से कम उम्र में सबसे ज्यादा मुंह और गले का कैंसर बढ़ रहा है। इसकी सबसे बड़ी वजह गुटखा, तंबाकू का सेवन है। 12 से 15 साल के बीच बच्चे गुटखा चबाना शुरू करते हैं और 40 साल के आसपास आते आते कैंसर के शिकार हो जाते हैं। कहीं से भी इस कैंसर की वजह जीन नहीं है।
लंग्स अक्सर 60 साल के बाद ही खराब होते हैं, तभी किसी को लंग्स कैंसर होता था। अभी स्मोकिंग के अलावा प्रदूषण लंग्स कैंसर की बड़ी वजह बन रहा है। 50 साल से कम उम्र में लंग्स कैंसर के मरीजों की संख्या काफी बढ़ी है। वहीं, महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर काफी तेजी से बढ़ रहा है। 5 से 10 पर्सेंट मामले में जेनेटिक वजह तो है, लेकिन इसके अलावा बाकी में लाइफस्टाइल की वजह से कैंसर हो रहा है। प्लास्टिक के सेवन से निकलने वाला केमिकल एंडोक्राइन को डिस्टर्ब करता है। प्लास्टिक में पाए जाने वाला थैलेड और बीएसए स्ट्रेजोन को प्रभावित करता है और इसकी वजह से ब्रेस्ट और ओवरी के कैंसर होते हैं।
नाइटलाइफ भी कैंसर पैदा करता है। यानी नॉर्मल साइकल रात में सोना और दिन में जगने की बजाए जो लोग रात में जागते हैं और दिन में सोते हैं, उनमें कैंसर का खतरा ज्यादा है। यूके में इस पर स्टडी हुई थी। अस्पतालों में जो नर्सेज रात में ड्यूटी करती थीं और नॉर्मल नर्सेज जो दिन में काम करती थी। दोनों में तुलना की गई तो रात में काम करने वाली महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर का खतरा ज्यादा पाया गया।