आने वाले लोकसभा चुनावों में यूपी में खेला हो सकता है! उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव की तैयारी तमाम राजनीतिक दलों में शुरू कर दी है। एनडीए को टक्कर देने के लिए विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. पूरी ताकत के साथ चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी कर रही है। देश के सबसे बड़े राज्य और सबसे अधिक 80 लोकसभा सीटों वाले प्रदेश यूपी में विपक्षी दल अलग रणनीति के साथ चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं। हालांकि, अभी तक यह तैयारी कागजों पर ही होती दिखी है। विधानसभा चुनाव को लेकर विपक्षी दलों की एकता की बात अब तक सामने नहीं आ पाई है। राज्यों में चुनाव की घोषणा हो चुकी है। भारतीय जनता पार्टी उम्मीदवारों के नाम का ऐलान कर रही है, लेकिन विपक्षी गठबंधन का स्वरूप चुनावी राज्यों में क्या होगा? यह अभी तक सामने नहीं आ पाया है। दरअसल, इस साल नवंबर- दिसंबर में पांच राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और मेघालय में विधानसभा चुनाव होने हैं। यहां भारतीय जनता पार्टी और विपक्षी गठबंधन के बीच मुकाबला होता दिख रहा है।विधानसभा चुनाव वाले अधिकांश राज्यों में सीधा मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच है, लेकिन विपक्षी गठबंधन के सहयोगी कांग्रेस से चुनावी राज्यों में अपने हिस्सेदारी मांग रहे हैं। कांग्रेस इन जगहों पर सहयोगियों को सीट देने को तैयार होती अब तक नहीं दिख रही है। ऐसे में उत्तर प्रदेश में होने वाला लोकसभा चुनाव का मसला गरमाने लगा है। समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पहले ही कहा था कि उत्तर प्रदेश में हम विपक्षी गठबंधन के तहत सीट सहयोगियों को देंगे। वहीं, अन्य राज्यों में होने वाले चुनाव में हम सीनियर दलों से सीट लेने की कोशिश करेंगे। एक प्रकार से अखिलेश यादव ने विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. में खुद की भूमिका तय कर ली है। यूपी में वह बड़े भाई की भूमिका में खुद को देखना चाहते हैं। अन्य सहयोगी दलों को अपने हिसाब से चुनावी मैदान में उतरने की उनकी तैयारी है।
लोकसभा चुनाव 2019 के दौरान यूपी की राजनीतिक तस्वीर बदली हुई थी। माय (मुस्लिम + यादव) समीकरण की राजनीति करने वाली समाजवादी पार्टी और दलित राजनीति को धार देकर सत्ता में आने वाली बहुजन समाज पार्टी करीब 26 साल बाद एक साथ चुनावी मैदान में थी। इससे पहले वर्ष 1993 में मुलायम सिंह यादव और कांशीराम साथ आए थे तो यूपी की राजनीति में एक नारा खूब प्रचलित हुआ था। 1992 के बाबरी मस्जिद विध्वंश के बाद भाजपा हिंदुत्व के घोड़े पर सवार होकर यूपी जीतने के इरादे से चुनावी मैदान में थी। लेकिन, ‘मिले मुलायम- कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्रीराम’ नारे के साथ आए दोनों दलों ने भाजपा को सत्ता से बेदखल कर दिया। हालांकि, यह समीकरण 2019 में काम नहीं कर पाया।
अखिलेश यादव और मायावती ने 2019 में महागठबंधन बनाया। इसमें राष्ट्रीय लोक दल भी शामिल हुई। महागठबंधन के तहत बसपा 38, सपा 37 और रालोद तीन सीटों पर चुनावी मैदान में उतरी। एनडीए से भाजपा 78 और अपना दल एस 2 सीटों पर उम्मीदवार उतारे। यूपीए तब तीसरे गठबंधन के रूप में चुनावी मैदान में थी। कांग्रेस ने इस चुनाव में 67 सीटों पर उम्मीदवार उतारे। जेएपी ने तीन और आईएनडी ने यूपीए के सहयोगी के तौर पर एक सीट पर अपना उम्मीदवार उतारा। इस चुनाव में भाजपा 62, सहयोगी अपना दल एस 2 और महागठबंधन की ओर से बसपा ने 10 एवं सपा ने 5 सीटों पर जीत दर्ज की। कांग्रेस को महज एक सीट पर जीत मिली।
अखिलेश यादव को इस स्थिति में झटका मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव की रणनीति में लग सकता है। इन राज्यों में कांग्रेस बड़े भाई की भूमिका में है। ऐसे में उत्तर प्रदेश में होने वाले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को सपा बड़ा झटका दे सकती है। इस प्रकार की राजनीतिक स्थिति ने प्रदेश में होनेवाले लोकसभा चुनाव और गठबंधनों के भविष्य पर चर्चा छेड़ दी है। सवाल यह है कि यूपी के प्रमुख राजनीतिक दलों की क्या स्थिति है? वे किसके साथ हैं, किसके खिलाफ?
भाजपा लोकसभा चुनाव की तैयारी कर रही है। पार्टी सभी 80 सीटों पर संगठन को मजबूत करने की तैयारी में है। वर्ष 2019 में पार्टी ने दो सीटों पर सहयोगी अपना दल एस को लड़ाया था। दोनों सीटें पार्टी के खाते में आई थीं। भाजपा ने 62 सीटें जीतीं। इस बार पार्टी की ओर से मिशन 80 बनाया गया है। इसके लिए तैयारी की जा रही है। अपना दल एस एनडीए के सहयोगी के तौर पर चुनावी मैदान में उतरती रही है। इस बार भी अनुप्रिया पटेल के रुख में कोई भी बदलाव होता नहीं दिख रहा है। वे एक बार फिर भाजपा के सहयोगी के तौर पर चुनावी मैदान में उतरती दिखेंगी।
निषाद पार्टी: निषाद पार्टी ने अब तक लोकसभा चुनाव में एनडीए के सहयोगी के तौर पर किस्मत नहीं आजमाई है। यूपी की योगी सरकार में मंत्री संजय निषाद अब तक एनडीए के सहयोगी के तौर पर दिख रहे हैं।
राष्ट्रीय लोक दल के जयंत चौधरी ने खीर किसे अच्छी नहीं लगती है, जैसा बयान देकर राजनीति गरमाते रहते हैं। हालांकि, वे खुद को I.N.D.I.A. के सहयोगी के तौर पर पेश कर रहे हैं, लेकिन गठबंधन के तहत 12 से 15 लोकसभा सीटों पर उम्मीदवार खड़े करना चाहते हैं। ऐसे में रालोद की उम्मीदों को अखिलेश किस हद तक पूरा सकते हैं, यह देखना दिलचस्प होगा। वैसे रालोद के कांग्रेस के भी आसपास जाती दिखती रही है। मायावती के नेतृत्व में बहुजन समाज पार्टी अब तक चुनावी मैदान में अकेले दम पर उतरती दिख रही है। पार्टी की ओर से अपनी रणनीति को साफ नहीं किया गया है। पर्दे के पीछे बसपा और कांग्रेस के बीच खिचड़ी पकने की चर्चा है। लेकिन, केंद्र की मोदी सरकार के प्रति बसपा सुप्रीमो का नरम रुख भी चर्चा में है। ऐसे में मायावती दलित वोट बैंक को जोड़कर रखने और चुनावी मैदान में उनकी सफलता को लेकर अभी से कयासबाजियों का दौर शुरू हो गया है।