रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध का आज 11वां दिन है। इतने दिनों में रूस ने यूक्रेन के पूर्वी शहरों को बमों से पाट दिया है। प्रेसिडेंट जेलेंस्की लगातार आम लोगों से बंदूकें उठाने की अपील कर रहे हैं। एक लाख से ज्यादा लोग आगे भी आए हैं, लेकिन प्रॉपर ट्रेनिंग की कमी के चलते उनकी सीमाएं भी हैं। अमेरिकी एक्सपर्ट एडवर्ड लुटवक कहते हैं कि जेलेंस्की को फिनलैंड जैसे छोटे से देश से सीखना चाहिए था, जिसने 80 साल पहले आम नागरिकों के दम पर तीन महीने तक सोवियत आर्मी से टक्कर ली थी।
विंटर वॉर के नाम से चर्चित है फिन्स-रशियन युद्ध
80 साल पहले सेकेंड वर्ल्ड वॉर का दौर था। उस समय सोवियत संघ को हिटलर के खिलाफ जर्मनी पर हमला करना था। रास्ता फिनलैंड से होकर जाता था। रूस ने फिनलैंड से रास्ता मांगा, लेकिन फिनलैंड ने रूस से अपनी पुरानी रंजिश के चलते रास्ता देने से इनकार कर दिया। इस पर रूस ने फिनलैंड पर चढ़ाई कर दी।1939 में फिनलैंड और सोवियत संघ के बीच हुए इस युद्ध को विंटर वॉर के नाम से जाना जाता है। इस युद्ध में फिनलैंड के आम लोगों की गुरिल्ला सेना ने मिसाल कायम की थी। पोलैंड और बाल्टिक देशों ने भी आगे चलकर ये मॉडल एडॉप्ट किया।
क्या है फिनलैंड का गुरिल्ला मॉडल
फिन्स गुरिल्ला मॉडल के मुताबिक दुश्मन देश की फौज को अपने देश की सीमाओं के भीतर आने से रोकना नहीं है, बल्कि उनका इंतजार करना है। जैसे ही उनके टैंकों का आगे बढ़ना रुके, सोल्जर्स टॉयलेट के लिए या खाना बनाने और आराम करने के लिए बाहर आएं, बस उन पर टूट पड़ो, उन्हें घेरकर मार दो।
1914 से जारी थी रूस से दुश्मनी
1914 में फर्स्ट वर्ल्ड वॉर के दौर में जर्मनी ने फिनलैंड के युवाओं को मिलिट्री ट्रेनिंग दी थी। उस समय फिनलैंड सोवियत संघ के कब्जे में था और आजाद होने की कोशिशों में लगा हुआ था। फिनलैंड के स्टूडेंट्स ने हल्ला बोल दिया था। 1914-18 के बीच रूस के खिलाफ विद्रोह काम आया और 6 दिसंबर 1918 को फिनलैंड रूस से आजाद हो गया।
रूस से कैसे लड़ा फिनलैंड
फिनलैंड के शासकों को पता था कि रूस से उनका टकराव जारी रहेगा। इसके लिए 1918 से ही फिनलैंड ने युवाओं के लिए मिलिट्री ट्रेनिंग कंपल्सरी कर दी थी। यह ट्रेनिंग कुछ महीनों की होती है। इस तरह फिनलैंड ने आम लोगों की गुरिल्ला आर्मी तैयार की।1939 में जब सोवियत संघ ने जर्मनी पर अटैक करने के लिए फिनलैंड से होकर जाने वाले रास्ते के इस्तेमाल की परमीशन मांगी, तो फिनलैंड ने इनकार कर दिया। रूस ने फिनलैंड पर अटैक कर दिया। लेकिन फिनलैंड पूरी तरह तैयार था। एक छोटा सा देश जिसकी सेना सोवियत संघ के सामने मुट्ठी भर से ज्यादा नहीं थी, उसने अपने आम लोगों के बल पर रूस को टक्कर दी।
फिनलैंड के सामने दोगुना बड़ी आर्मी थी रूस की
युद्ध की शुरुआत में रूस के पास करीब सवा लाख सैनिक थे, जिसे बढ़ाकर रूस ने 7 लाख 60 हजार कर दिया था। वहीं फिनलैंड की आर्मी केवल 3 लाख सैनिकों की थी, जो बमुश्किल 3 लाख 40 हजार तक पहुंच सकी थी।रूस के पास शुरू में 2,514 टैंक थे, जिसे बढ़ाकर 6,500 तक कर दिया गया था। वहीं फिनलैंड के पास महज 32 टैंक थे। रूस के पास 3,880 लड़ाकू एयरक्राफ्ट थे जबकि फिनलैंड के पास केवल 114 जेट विमान थे।
फिनलैंड के पास करीब 1 लाख 80 हजार आम लोगों की गुरिल्ला आर्मी थी। हल्के हथियार होने के बावजूद फिनलैंड के लोग सोवियत आर्मी पर भारी पड़े थे। वजह ये थी कि इस सेना ने पहले से पोजिशन लेकर अटैकिंग मोड में काम किया। सोवियत सेना की तैयारी आर्मी से लड़ने की थी। उसे इस गुरिल्ला आर्मी की ताकत का अंदाजा नहीं था। इस तरह फिनलैंड ने तीन महीने तक सोवियत संघ की रेड आर्मी से टक्कर ली। इसके बाद सोवियत संघ और फिनलैंड के बीच समझौता हुआ और युद्ध खत्म हो सका।
यूक्रेन के प्रेसिडेंट जेलेंस्की कहां चूके
रूस के खिलाफ यूक्रेन की जंग 1939 के फिनलैंड-सोवियत संघ युद्ध से कम नहीं कही जा सकती है। इस युद्ध में भी प्रेसिडेंट वोलोदिमिर जेलेंस्की ने आम लोगों से हथियार उठाने की अपील की और लगभग दो लाख लोग सिविल डिफेंस से जुड़ भी चुके हैं। लोगों की एके-47, जेबलिन जैसी हथियार उठाए तस्वीरें भी सोशल मीडिया में जमकर शेयर हुईं।
जेलेंस्की को विदेशी नागरिकों से भी यूक्रेन के लिए लड़ने की अपील करनी पड़ी। कई विदेशी नागरिक भी गुरिल्ला आर्मी में शामिल भी हो चुके हैं। 3 मार्च को घमासान लड़ाई में बेलारूस के एक नागरिक लितविन की मौत भी हो चुकी है। फिनलैंड और यूक्रेन की तैयारी में यही फर्क है कि यूक्रेन ने फिनलैंड जैसी तैयारी नहीं की है, जबकि यूक्रेन को भी कई सालों से पता था कि वह रूस की आंखों में खटक रहा है।