सामान्य तौर पर राय का प्रयोग खाने की वस्तु में किया जाता है! राई का पहाड़ बनाने वाली कहावत तो आपने जरूर सुनी होगी। जी हां, ये वही राई है जिसकी खेती देश भर में की जाती है और लगभग सभी घरों में राई का उपयोग भी किया जाता है। इसके बाद भी राई की पहचान को लेकर कुछ भ्रम आज भी है। कुछ लोग सरसों तथा राई को एक ही मानते हैं, लेकिन सच यह है कि ये दोनों एक नहीं है। आमतौर पर लोग राई या राई के तेल का प्रयोग केवल आहार के लिए करते हैं। यही कारण है कि लोगों को राई के उपयोग के बारे में पूरी जानकारी नहीं है। क्या आप जानते हैं कि राई एक बहुत ही गुणी औषधि भी है जिसके प्रयोग से एक-दो नहीं बल्कि अनेक रोगों को ठीक किया जा सकता है?
आयुर्वेदिक किताबों के अनुसार आप राई का प्रयोग कर कफ-पित्त दोष, रक्त विकार को ठीक कर सकते हैं। राई खुजली, कुष्ठ रोग, पेट के कीड़े को खत्म करता है। राई के पत्तों की सब्जी स्वादिष्ट होने के साथ-साथ पौष्टिक भी होती है। इससे भी कई रोग ठीक होते हैं। राई का तेल सिर दर्द, कान के रोग, खुजली, कुष्ठ रोग, पेट की बीमारी में फायदेमंद होता है। यह अपच, भूख की कमी, बवासीर और गठिया में भी लाभदायक होता है। राई मूत्र रोग में भी उपयोग होता है। इतना ही नहीं, काली राई त्रिदोष को ठीक करने वाला और बवासीर में फायदेमंद होता है। यह सांसों की बीमारी, अपच, दर्द, गठिया आदि में भी लाभदायक होता है। आइए आपको राई के उपयोग से होने वाले एक-एक फायदे के बारे में बताते हैं।
सरसों और राई से सब परिचित हैं और अधिकांश लोग दोनों को एक ही मानते हैं लेकिन दोनों पूरी तरह से भिन्न-भिन्न है। चिकित्सा कार्यों में राई की दो प्रजाति का प्रयोग किया जाता है।राई का पौधा सीधा, 1.5 मीटर तक ऊँचा, शाखा-प्रशाखायुक्त होता है। इसके फूल चमकीले पीले रंग के होते हैं। बीज छोटे, लाल-भूरे रंग के, गोलाकार तथा झुर्रीदार होते हैं। इसमें फूल एवं फल खेती के तीन माह बाद होता है।
काली राई का पौधा 60-90 सेमी ऊँचा, कठोर, बहुशाखीय होता है। इसके फूल पीले रंग के होते हैं। इसकी फली 0.6-1.2 सेमी लम्बी होती है जिसमें आगे के भाग पर नुकीली होती है। बीज भूरे-श्यामले रंग के, 3-5 की संख्या में, गोलाकार होते हैं। बीज लगभग एक पंक्ति में व्यवस्थित होते हैं। इसमें फूल एवं फल दिसम्बर से जनवरी तक होता है। इसके पौधे में कैलस, अनॉक्सीकारक एवं जीवाणुरोधी गुण होता है।राई का काढ़ा बनाकर उससे सिर धोने से बाल गिरने बन्द हो जाते हैं तथा सिर के जूं, फुंसी तथा खुजली आदि रोग दूर हो जाते हैं।
कक्षा (बगल या काँख) में होने वाली गांठ को पकाने के लिए, गुड़, गुग्गुल और राई को बारीक पीसकर, जल में मिला लें। इसे कपड़े की पट्टी पर लेप कर चिपका दें। गांठ पककर फूट जाती है, राई को पीसकर मस्तक पर लगाने से सिर दर्द में लाभ होता है।आंखों की पलकों पर फुन्सी होने पर राई के दाने के चूर्ण को घी में मिला लें। इसका लेप करने से यह बीमारी तुरन्त ठीक हो जाती है।
राई के फायदे से आप जुकाम का इलाज कर सकते हैं। इसके लिए 500-750 मिग्रा राई तथा 1 ग्राम शक्कर को मिलाकर जल के साथ सेवन करें। इससे जुकाम दूर हो जाता है।राई के आटे को सरसों के तेल या एरंड तेल में मिलाकर कान के जड़ पर लेप करें। इससे कान के जड़ के आस-पास होने वाली सूजन में लाभ होता है।
100 मिली सरसों तेल या तिल तेल को अच्छी प्रकार से उबालें। उबाल आने पर आंच बन्द कर दें। कुछ ठंडा होने पर 10 ग्राम राई के दाने, 10 ग्राम लहसुन और डेढ़ ग्राम कपूर डालकर ढक कर रख दें। ठंडा होने पर छानकर, बोतल में भरकर रख लें। इसे कान में 4-5 बूंदे डालते रहने से कान का बहना रुक जाता है और कान के घाव ठीक होते हैं।
राई को पीसकर गुनगुने जल में मिलाकर कुल्ला करने से दांत का दर्द का ठीक होता है, राई के तेल में सेंधा नमक मिलाकर दांतों पर मलने से मसूड़ों से सम्बन्धित विकारों में लाभ होता है।आप राई के फायदे सांसों के रोग में भी ले सकते हैं। 500 मिग्रा राई चूर्ण में घी तथा मधु मिलाकर, सुबह-शाम सेवन करें। इससे सांसों के रोग में लाभ होता है।
खांसी हो और कफ गाढ़ा हो जाए तथा आराम से कफ ना निकलता हो तो, 500 मिग्रा राई, बनाएं 250 मिग्रा और मिश्री मिलाकर सुबह-शाम लें। इससे कफ पतला होकर सरलता से बाहर निकलने लगता है।हृदय में कम्पन या दर्द हो, व्याकुलता और बैचेनी हो, कमजोरी महसूस होती हो तो हाथ-पैरों पर राई के चूर्ण की मालिश करने से लाभ होता है।
हैजा में जब रोगी को बहुत उलटी दस्त होते हों तो राई को पीसकर पेट पर लेप करने से उलटी-दस्त बन्द हो जाते हैं।
किसी भी प्रकार की उलटी-दस्त में पेट पर राई का लेप करने से लाभ होता है।
हैजे की शुरुआती अवस्था में 1 ग्राम राई को शक्कर के साथ सेवन कराने से लाभ होता है।
राई के फायदे उल्टी को रोकते हैं। राई तथा कर्पूर को पीसकर थोड़ा गर्म कर पेट पर लेप करने से उल्टी में लाभ होता है।1-2 ग्राम राई चूर्ण में, शक्कर मिलाकर सेवन करें। ऊपर से आधा कप जल पीने से पेट का दर्द ठीक होता है।
2 ग्राम राई में शक्कर मिलाकर सेवन करें और ऊपर से 750 मिग्रा से 1 ग्राम चूने को आधा कप जल में मिलाकर पिलाने से पैट की गैस में लाभ होता है।बनाए और राई के दाने को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। 500 मिग्रा-1 ग्राम चूर्ण को गोमूत्र के साथ पीने से लिवर, तिल्ली विकार में लाभ होता है।
मासिक–धर्म की रुकावट हो या मासिक धर्म के समय कष्ट होता हो या मासिक धर्म स्राव कम होता हो तो गुनगुने जल में राई का चूर्ण मिला लें। रोगी स्त्री को इस जल में बैठाने (कमर में डूबे) से लाभ होता है।