जौ के फायदे सुनकर आप भी हैरान हो जाओगे!

0
239

सामान्य तौर पर जौ का प्रयोग खाने में किया जाता है, प्राचीन काल से जौ का उपयोग कई कामों के लिए किया जाता रहा है। ऋषियों मुनियों के आहारों में जौ भी शामिल होता था। इससे आप समझ ही सकते हैं जौ कितना पौष्टिकारक आहार है। जौ गेंहूं के जाति का ही एक आहार है जिसको पीसकर आटा बनाकर खाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।इसलिए आयुर्वेद में जौ का इस्तेमाल कई बीमारियों के इलाज के लिए औषधि के रुप में किया जाता है। जौ पेट दर्द, भूख न लगने की बीमारी, अत्यधिक प्यास लगना, दस्त, सर्दी, जुकाम जैसे अनेक रोगों से राहत पाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

जौ क्या है?

जौ का प्राचीन वैदिक काल तथा आयुर्वेदीय निघुण्टुओं एवं संहिताओं में वर्णन मिलता है। भावप्रकाश-निघण्टु में तीन प्रकार के भेदों का वर्णन प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त अथर्वेद में भी यव का वर्णन प्राप्त होता है। यह 60-150 सेमी ऊँचा, सीधा, शाकीय पौधा होता है। इसके पत्ते भालाकार, रेखित, अल्प संख्या में, सीधे, चपटे, 22-30 सेमी लम्बे, 12-15 मिमी चौड़े होते हैं। इसके फूल के स्पाईक (शूक सहित) 20-30 सेमी लम्बे, 8-10 मिमी चौड़े, चपटे होते हैं। इसके फल 9 मिमी लम्बे, छोटे नुकीले सिरों से युक्त होते हैं। यह दिसम्बर से अप्रैल महीने में फलता-फूलता है।

जौ प्रकृति से कड़वा, मधुर, तीखा, ठंडा, लघु, फिसलने वाला, रूखा, कफ पित्त कम करने वाला, बल बढ़ाने वाले, वृष्य, पुरीषजनक, अल्सर होने पर खाद्द रुप में; मूत्र संबंधी समस्या से राहत दिलाने वाला होता है।

यह व्रण,मधुमेह, रक्तपित्त (कान-नाक से खून बहना), कण्ठ रोग (गले का रोग), त्वक् रोग (त्वचा संबंधी रोग), पीनस, श्वास, खांसी,  पाण्डु या एनीमिया, ग्रहणी , प्लीहारोग, अर्श या पाइल्स तथा मूत्र रोग नाशक होता है। शूक रहित जौ बलवर्द्धक, वीर्यवर्धक, वृष्य तथा पुष्टिकारक होता है।

जौ के फायदे

जौ में फॉस्फोरस एसिड, सैलीसिलिक एसिड, पोटाशियम, कैल्शियम आदि पौष्टिक गुण होने के कारण ये कई सारे बीमारियों के इलाज के लिए इस्तेमाल किया जाता है। चलिये आगे इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।उम्र के साथ मोतियाबिंद की शिकायत हर वृद्धा या वृद्ध को होती है। जौ का औषधिय गुण इसके कष्ट को कम करने में सहायता करता है। 20-30 मिली त्रिफला के काढ़े में जौ को पकाकर, उसमें घी मिलाकर खाने से मोतियाबिंद में लाभ होता है।

मौसम बदला कि नहीं बच्चे से लेकर बड़े-बूढ़े सबको सर्दी-खांसी की शिकायत हो जाती है। जौ के सत्तू में घी मिलाकर खाने से नजला, जुकाम, खाँसी तथा हिचकी रोग में लाभ होता है। इसके अलावा जौ के काढ़े (15-30 मिली) को पीने से प्रतिश्याय में लाभ होता है।

डिप्थिरिया के परेशानी को कम करता है जौ। जौ के 5-10 मिली पत्ते के रस में 500 मिग्रा कृष्णमरिच चूर्ण मिलाकर सेवन करने से रोहिणी (डिप्थिरिया) में लाभ होता है।

गलसुआ की परेशानी से राहत दिलाने में जौ का औषधीय गुण बहुत फायदेमंद होता है। सरसों, नीम के पत्ते, सहजन के बीज, अलसी, यव तथा मूली बीज को खट्टी छाछ में पीसकर गले में लेप करने से गलगण्ड या गलसुआ में लाभ होता है, सांस लेने की तकलीफ से राहत दिलाने में जौ बहुत काम आता है। जौ के सत्तू को मधु के साथ सेवन करने से सांस की बीमारियों में अतिशय लाभ होता है।

अक्सर किसी बीमारी के साइड इफेक्ट के तौर पर प्यास लगने की समस्या होती है। इस समस्या से राहत पाने के लिए भुने अथवा कच्चे जौ की पेया बनाकर उसमें मधु एवं चीनी मिलाकर पीने से तृष्णा (अत्यधिक प्यास) बुझ जाती है।

आज कल के जीवनशैली में खान-पान में असंतुलन सभी से हो जाता है फल ये होता है कि हाइपरएसिडिटी की समस्या होने लगती है। छिलका रहित जौ, वासा तथा आँवले से निर्मित काढ़े (15-30 मिली) में दालचीनी, इलायची और तेजपत्ता का चूर्ण तथा मधु मिलाकर पीने से अम्लपित्त या हाइपरएसिडिटी में लाभ होता है।

गुल्म रोग से राहत पाने के लिए जौ से बनाए खाद्य पदार्थों में अधिक मात्रा में स्नेह एवं लवण या नमक मिलाकर दूध के साथ सेवन करने से लाभ होता है।

अक्सर मसालेदार खाना खाने या असमय खाना खाने से पेट में गैस हो जाने पर पेट दर्द की समस्या होने लगती है। जौ के आटे में यव क्षार एवं मट्ठा मिलाकर पेट पर लेप करने से दर्द से राहत मिलती है।

आजकल की भाग-दौड़ और तनाव भरी जिंदगी ऐसी हो गई है कि न खाने का नियम और न ही सोने  का। फल ये होता है कि लोग को मधुमेह या डायबिटीज की शिकार होते जा रहे हैं। मधुमेह में जौ से बने हुए विविध-प्रकार के आहार का सेवन करना चाहिए। छिलका-रहित जौ के चूर्ण को त्रिफला काढ़ा में रातभर भिगोकर, छाया में शुष्ककर उसका सत्तू बनाकर मधु मिलाकर, मात्रानुसार प्रतिदिन पीने से प्रमेह या डायबिटीज में लाभ होता है।