हमारे वैदिक विज्ञान में कई प्रकार की औषधियों का वर्णन किया गया है! तिल्ली और इसके तेल से सब परिचित हैं। जाड़े की ऋतु में तिल के मोदक बड़े चाव से खाए जाते हैं। रंग-भेद से तिल तीन प्रकार का होता है, श्वेत, लाल एवं काला। आयुर्वेद में औषधि के रुप में काले तिलों से प्राप्त तेल अधिक उत्तम समझा जाता है। भारतवर्ष में तिल की प्रचुर मात्रा में खेती की जाती है। तिल (बीज) एवं तिल का तेल भारतवर्ष के प्रसिद्ध व्यावसायिक द्रव्य हैं। आज कल अधिकांश लोग पतंजलि तिल के तेल का इस्तेमाल करते हैं।
तिल्ली क्या है?
तिल सीधा, 30-60 सेमी ऊँचा, तीखे महक वाला, शाखित अथवा अशाखित, शाकीय पौधा है। इसका तना सूक्ष्म अथवा रोम वाला, ऊपरी भाग की शाखाएं एवं तना चतुष्कोणीय एवं खांचयुक्त होती हैं। इस पौधे पर जगह-जगह स्रावी-ग्रंथियां पाई जाती हैं। इसके पत्ते बड़े, पतले, कोमल, रोमयुक्त, ऊपर के तरफ के पत्ते कुछ लम्बे होते हैं और 6-15 सेमी लम्बे एवं 3-10 सेमी चौड़े होते हैं। इसके फूल बैंगनी, गुलाबी अथवा सफेद बैंगनी रंग के, पीले रंग के चिन्हों से युक्त होते हैं। इसकी फली 2.5 सेमी लम्बी, 6 मिमी चौड़ी, रोमश, सीधी, चतुष्कोणीय तथा 4-खांचयुक्त होती है। तिल के बीज अनेक, 2.5-3 मिमी लम्बे, 1.5 मिमी चौड़े, चिकने भूरे अथवा सफेद रंग के होते हैं। इसका पुष्पकाल एवं फलकाल अगस्त से अक्टूबर तक होता है।
तिल प्रकृति से तीखी, मधुर, भारी, स्वादिष्ट, स्निग्ध, गर्म तासीर की, कफ तथा पित्त को कम करने वाली, बलदायक, बालों के लिए हितकारी, स्पर्श में शीतल, त्वचा के लिए लाभकारी, दूध को बढ़ाने वाली, घाव भरने में लाभकारी, दांतों को उत्तम करने वाली, मूत्र का प्रवाह कम करने वाली होती है।कृष्ण तिल सर्वोत्तम व वीर्य या अंदुरनी शक्ति बढ़ाने वाली होती है, सफेद तिल मध्यम तथा लाल तिल हीन गुण वाले होते हैं।कृष्ण तिल(काली तिल ) श्रेष्ठ होते है।सफेद तिल मध्यम, अन्य तिल से कम गुणी होता है।तिल तेल मधुर, पित्तकारक, वातशामक, सूक्ष्म, गर्म, स्निग्ध, पथ्य तथा तीखा होता है।तिल का पेस्ट मधुर, रुचिकारक, बलकारक तथा पुष्टिकारक होता है।तिल पिण्याक मधुर, रुचिकारक, तीक्ष्ण, रक्तपित्त (नाक-कान से खून बहना) तथा आँख संबंधी रोगों को उत्पन्न करने वाली, रूखी, कड़वी, पुष्टिकारक, बलकारक, कफवात को कम करने वाली तथा प्रमेह या डायबिटीज कंट्रोल करने में सहायक होती है।
इसके फायदे
आज के प्रदूषण और असंतुलित जीवनयापन का फल है बालों की समस्याएं। बालों का झड़ना, असमय सफेद बाल होना, गंजापन, रूसी की समस्या आदि ऐसी समस्याएं हैं जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग परेशान रहते हैं। तिल के तेल का इस्तेमाल इन बीमारियों में बहुत फायदेमंद साबित होता है।
तिल की जड़ और पत्ते का काढ़ा बनाकर काढ़े से बाल धोने से बाल सफेद नहीं होते।
काले तिल के तेल ( तिल का तेल पतंजलि) को शुद्ध अवस्था में बालों में लगाने से बाल असमय सफेद नहीं होते। प्रतिदिन सिर में तेल की मालिश करने से बाल सदैव मुलायम, काले और घने रहते हैं।
तिल के फूल तथा गोक्षुर को बराबर लेकर घी तथा मधु में पीसकर सिर पर लेप करने से बालो का झड़ना तथा रूसी दूर होती है।
समान मात्रा में आँवला, काला तिल, कमल केसर तथा मुलेठी के चूर्ण में मधु मिलाकर सिर पर लेप करने से बाल लम्बे तथा काले होते हैं।
ट्राइजेमिनल न्यूरालजिया नामक बीमारी में जबड़े से कान की तरफ जो ट्राइजेमिनल नर्व होता है उसमें उसमे तेज दर्द होता है। इस कंडिशन को न्यूरालजिया कहते हैं-इसके लिए दूध से तिल को पीसकर, वेदनायुक्त स्थान का स्वेदन करने से या मस्तक पर लगाने से सूर्यावर्त नामक सिरदर्द में लाभ होता है।
तिल के पत्तों को सिरके या पानी में पीसकर मस्तक पर लेप करने से सिरदर्द कम होता है।
तिल फूलों पर शरद्-ऋतु में पड़ी ओस की बूंदों को मलमल के कपड़े या किसी और प्रकार से उठाकर शीशी में भरकर रख लें। इन ओस कणों को आंख में डालने से लाभ होता है।
काले तिलों का काढ़ा बनाकर आँखों को धोने से नेत्र संबंधी रोगों से राहत मिलती है।
80 तिल के फूल, 60 पिप्पली, 50 चमेली के फूल तथा 16 काली मिर्च को जल से पीसकर, बत्ती जैसा बनाकर, घिसकर काजल जैसा लगाने से मोतियाबिंद आदि आँख संबंधी रोगों में लाभ मिलता है।
तिल तेल ( तिल का तेल पतंजलि), बहेड़ा तेल, भृंगराज रस तथा विजयसार काढ़ा को मिलाकर लोहे की कड़ाही में तेल पकाने के बाद प्रतिदिन 1-2 बूंद नाक से लेने से देखने की शक्ति बढ़ती है।
अगर खान-पान में गड़बड़ी या किसी बीमारी उपद्रव के तौर पर पेचिश हो गया है तो तिल के पत्तों को पानी में भिगोने से पानी में लुआब आ जाता है, यह लुआब को पिलाने से विसूचिका या हैजा, अतिसार या दस्त, आमातिसार या पेचिश, प्रतिश्याय और मूत्र संबंधी रोगों में लाभ होता है।तिल को दिन में 3-4 बार सेवन करने से गर्भाशय संबंधी रोगों में लाभ होता है।
30-40 मिली तिल काढ़े का सेवन करने से पीरियड्स के समस्याओं में लाभ होता है।
तिल के 100 मिली काढ़ा में 2 ग्राम सोंठ, 2 ग्राम काली मिर्च और 2 ग्राम पीपल का चूर्ण बुरककर दिन में तीन बार पिलाने से पीरियड्स या मासिक धर्म में लाभ होता है।
रूई के फाहे को तिल के तेल में भिगोकर योनि में रखने से श्वेतप्रदर या सफेद पानी में लाभ होता है। तिल के तेल के फायदे सफेद पानी यानि ल्यूकोरिया में होता है।
1-2 ग्राम तिल चूर्ण को दिन में 3-4 बार जल के साथ लेने से ऋतुस्राव यानि पीरियड्स नियमित हो जाता है।
तिल का काढ़ा बनाकर लगभग 30-40 मिली काढे को सुबह शाम पीने से मासिक-धर्म नियमित हो जाता है।